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पंजाब विधानसभा चुनाव की सभी सीटों पर वोटिंग हो चुकी और जनादेश ईवीएम में सील है.
पंजाब विधानसभा चुनाव की सभी सीटों पर वोटिंग हो चुकी और जनादेश ईवीएम में सील है. अब बारी यूपी के 'मिनी पंजाब' कहे जाने वाले तराई बेल्ट के इलाके की सीटों की है. चौथे चरण की जिन 9 जिलों की 60 सीटों पर बुधवार को वोटिंग होगी, उनमें पीलीभीत, लखीमपुर खीरी, सीतापुर और लखनऊ में सिख वोटर काफी अहम है. इसी के चलते यूपी का 'मिनी पंजाब' कहा जाता है, जहां बीजेपी, कांग्रेस, बसपा और सपा के बीच सियासी जंग है.
पिछले चुनाव में बीजेपी ने लखीमपुर खीरी, पीलीभीत और सीतापुर में शानदार प्रदर्शन किया था, लेकिन किसान आंदोलन और लखीमपुर खीरी की घटना के बाद यूपी के 'मिनी पंजाब' के सियासी हालात तेजी से बदले हैं. लखीमपुर खीरी मामले से देशभर में किसान आंदोलित हो गए थे. इस मामले में केंद्रीय गृह राज्यमंत्री अजय मिश्रा के बेटे आशीष मिश्रा पर आरोप लगे थे. वो हाल ही में जेल से जमानत पर बाहर आए हैं, जिसके चलते विपक्ष इस मुद्दे को धार देने में जुटा है. ऐसे में 'मिनी पंजाब' के क्षेत्र में बीजेपी पर 2017 जैसे प्रदर्शन को दोहराने की चुनौती है.
पीलीभीत की चार और लखीमपुर खीरी जिले में आठ सीटें हैं. 2017 के चुनाव में इन दोनों ही जिले की सभी 12 विधानसभा सीटों पर बीजेपी ने अपना परचम लहराया था जबकि सपा, बसपा और कांग्रेस खाता नहीं खोल सकी थी. इस बार बीजेपी ने आठ में से सात सीटों पर मौजूदा विधायकों को टिकट दिया है. आठवीं सीट (घौरहरा) से विधायक बाला प्रसाद अवस्थी सपा में चले जाने के चलते विनोद अवस्थी पर दांव लगाया है. वहीं, पीलीभीत जिले की चार में से दो सीटों पर बीजेपी ने अपने मौजूदा विधायकों को प्रत्याशी बनाया है जबकि बाकी दो सीटों पर मौजूदा विधायक पर भरोसा जताया है.
पीलीभीत जिले की सदर और पूरनपुर सीट पर बीजेपी से मौजूदा विधायक किस्मत आजमा रहे हैं जबकि बरखेडा सीट पर बीजेपी ने विधायक किशन लाल राजपूत की जगह जयद्रथ उर्फ स्वामी प्रवक्तानंद को उतारा है तो बीसलपुर सीट पर मौजूदा विधायक रामसरन वर्मा की जगह उनके बेटे विवेक वर्मा को टिकट दे रखा है. ऐसे में सिख प्रभाव वाले यूपी के 'मिनी पंजाब' की सियासत किस करवट बैठेगी, इस पर सिर्फ यूपी ही नहीं बल्कि देश की नजर है.
वरुण के विद्रोही तेवर
पीलीभीत और लखीमपुर खीरी में कांटे की टक्कर होने के पूरे आसार हैं. पीलीभीत से बीजेपी सांसद वरुण गांधी किसानों, बैंकों घोटाले जैसे मुद्दों पर केंद्र सरकार से लेकर राज्य सरकार को कठघरे में खड़ा कर रहे हैं, जो पार्टी के लिए चिंता बढ़ा रही है. वरुण गांधी के विद्रोही तेवरों से बीजेपी जूझ रही है तो सपा और बसपा के लिए पीलीभीत में सियासी संजीवनी बन रहा तो लखीमपुर खीरी में केंद्रीय गृह राज्यमंत्री अजय मिश्रा के बेटे आशीष मिश्रा की रिहाई को विपक्ष ने सियासी धार दे रही है, जो बड़ा चैलेंज बन गया है.
बंटवारे के दौरान पाकिस्तान से आए सिख
लखीमपुर खीरी और पीलीभीत का इलाका तराई के क्षेत्र में आता है. यहां बड़ी आबादी सिख समुदाय की रहती है, जिसके चलते इसे मिनी पंजाब कहा जाता है. देश की आजादी के बाद भारत-पाकिस्तान के बंटवारे के दौरान पाकिस्तान के सिंध और पश्चिम पंजाब से बड़ी संख्या में सिख समाज के लोगों का पलायन हुआ तो यूपी के विरल आबादी वाले तराई इलाके की ओर उन्होंने रुख किया और यहां आकर बसे.
रोजी-रोटी और छत की तलाश में आए सिख समुदाय के लोगों ने सात दशक पहले तराई इलाके की ज्यादातर खाली पड़ी जमीन की नब्ज पहचानकर कौड़ियों के मोल खरीदी. हाड़-तोड़ मेहनत के बाद अनुपयोगी पड़ी जमीनों को इस कदर उपजाऊ बनाया कि वह 'सोना' उगलने लगी. यूपी के तराई बेल्ट के पीलीभीत, बरेली, शाहजहांपुर, लखीमपुर खीरी, रामपुर, सीतापुर, बहराइच, गोंडा में सिख वोटर काफी हैं, जिसके चलते इन इलाकों में बड़ी संख्या में गुरुद्वारे भी नजर आएंगे.
पीलीभीत और लखीमपुर खीरी की कई सीटों पर सिख मतदाता बड़ी तादाद में हैं, जहां से सिख समुदाय के विधायक चुने जाते रहे हैं. 1980 में पीलीभीत सीट से चरनजीत सिंह व लखीमपुर खीरी की पलिया सीट से सतीश आजमानी जरूर कांग्रेस से विधायक बने. नेहरू गांधी परिवार की छोटी बहू संजय गांधी की पत्नी मेनका संजय गांधी ने सियासत में कदम रखा. मूल रूप से सिख परिवार की बेटी को तराई की सियासत भाने लगी तो 1989 में निर्दलीय सांसद बना दिया, तब से उन्होंने इसे अपनी कर्म भूमि बना लिया. मौजूदा समय में उनके बेटे वरुण गांधी सांसद हैं.
1993 में सरदार बीएम सिंह पूरनपुर सीट से चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे और मौजूदा दौर में किसान नेता के तौर पर अपनी पहचान बनाई. 1996 में सिख समाज की राजराय सिंह पीलीभीत शहर सीट से भाजपा प्रत्याशी बनकर चुनाव जीतीं और मंत्री भी बनीं. इसी चुनाव में सिखों के उत्पीड़न की लड़ाई लड़ने वाले हरजिंदर सिंह कहलो ने भी बसपा प्रत्याशी के रूप में पूरनपुर से किस्मत आजमाई, लेकिन हार गए. 2017 में रामपुर की बिलासपुर सीट से जीत दर्ज करने वाले बलदेव सिंह औलख सिख समाज से आते हैं और योगी कैबिनेट का हिस्सा हैं.
यूपी में कहां कितने सिख-पंजाबी
सूबे की चुनावी राजनीति में सिख समुदाय के लोगों का कभी वोट बैंक भी नहीं रहा, लेकिन वक्त के साथ कभी कांग्रेस तो कभी सपा के साथ खड़े नजर आए. मोदी के केंद्रीय राजनीति में कदम रखने के बाद 2014 में बीजेपी के साथ मजबूती से जुड़ गए और तराई के बेल्ट में कमल खिलाने में अहम भूमिका रही है. यूपी की करीब दो दर्जन विधानसभा सीटों पर खासा असर है तो उत्तराखंड की आधा दर्जन सीटों को प्रभावित करते हैं.
यूपी के पीलीभीत में 30000, बरखेड़ा में 28000, पूरनपुर में 40000, बीसलपुर में 15000 पुवायां में 30000, लखीमपुर खीरी में 23000 सिख समाज के वोटर हैं. इसके अलावा बाकी सीटों पर 5 हजार से 15 हजार के बीच है. ऐसे में सिख बहुल इस सीट पर मुकाबला काफी दिलचस्प हो गया है, जहां देखना है कि सपा और बीजेपी, कांग्रेस व बसपा में किसका पल्ला भारी रहता है.
Deepa Sahu
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