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उत्तर प्रदेश
यूपी : देवरिया कांड से ताजा हो गईं गोरखपुर के बौठा कांड की यादें, तीन घंटे में गिरी थी आठ लाशें
Tara Tandi
4 Oct 2023 9:10 AM GMT

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देवरिया जिले के रुद्रपुर के फतेहपुर गांव में सोमवार सुबह जमीन विवाद में हुई छह लोगाें की हत्या ने पूरे सूबे को हिला दिया है। इस जघन्य हत्याकांड ने तकरीबन 30 साल पहले 31 अगस्त 1993 को झंगहा थाने के बौठा गांव में हुए खूनी संघर्ष की याद दिला दी है। जिसमें राजनीतिक वर्चस्व में महज तीन घंटे में ही आठ लाशें गिरी थीं। उस घटना से उबरने में पूरे गांव को कई साल लग गए थे। इसी तरह जमीन व वर्चस्व को लेकर कई ऐसी घटनाएं हो चुकी हैं जिसे याद कर आज भी लोगों की रूह कांप उठती है।
जानकारी के मुताबिक, बौठा गांव में शिव सकल यादव और रामभवन यादव एक साथ रहते थे। दोनों राजनीति करते थे। दोनों का प्रभाव गांव में था। बाद में दोनों में राजनीतिक वर्चस्व को लेकर खटपट हो गई। दोनों ने अलग-अलग गुट बना लिया।
31 अगस्त 1993 को दोनों विशुनपुर गांव में अपनी-अपनी दुकान पर चले गए थे। बरसात का समय था, बारिश मूसलाधार हो रही थी। इसी बीच शाम करीब चार बजे शिव सकल यादव और उनके भाई रामसकल यादव की गांव के बाहर गोली मारकर हत्या कर दी गई थी।
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घटना के वक्त वे दोनों चौरीचौरा के ब्रह्मपुर ब्लाॅक से आ रहे थे। आरोप रामभवन यादव और उसके परिवार पर था। रामसकल के घर के लालमोहन यादव और उनके साथी पिता और चाचा के शव के पास नहीं गए। वे गांव में आ गए और तांडव मचाना शुरू कर दिए। दो नाली बंदूक गरजना शुरू कर दी।
रामभवन के तरफ का जो जहां मिला वहीं उसे मौत के घाट उतार दिया गया। दोनों पक्ष से उसी दिन आठ लोगों की जानें चली गईं। घटना के बाद गांव में चारों तरफ खौफ था। इस घटना से उबरने में गांव के लोगों को सालों लग गए। हालांकि वर्तमान में गांव पूरी तरह शांत है। लोग अपने रोजमर्रा के जीवन में व्यस्त हैं। लेकिन घटना का जिक्र आते ही वे सहम जाते हैं और चर्चा से भी इन्कार कर देते हैं।
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2012 में तिहरे हत्याकांड से दहल गया था जिला
घटना नौ अगस्त 2012 में खजनी इलाके के जैतपुर में हुई थी। जैतपुर का नाम आते ही लोगों के जेहन में तीन हत्याओं की घटना आ ही जाती है। यहां पूर्वांचल का सबसे बड़ा पशु बाजार लगता था। इस बाजार की शुरुआत 90 के दशक से हो गई थी। उसी समय विवाद ने भी जन्म ले लिया था। वजह यह थी कि दोनों पक्ष के पास अलग-अलग बाजारों का ठेका था।
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घटना वाले दिन जैतपुर में साप्ताहिक बाजार लोगों और पशुओं से खचाखच भरा था। दूर-दूर से व्यापारी और खरीदार पहुंचे थे। सबकुछ सामान्य था 3:30 बज चुके थे। अब धीरे-धीरे बाजार खत्म हो रहा था। बाजार लगवाने वाले अमटौरा गांव निवासी राणा सिंह का विवाद बाजार के रंजीत पांडेय से हो गया। वजह ये थी कि बाजार में गोवंशों को वाहनों पर चढ़ाने के लिए मिट्टी गिराकर ऊंचा किया गया था, जिसका अलग-अलग व्यापारियों से शुल्क लिया जाता था।
उस वक्त भी एक व्यापारी वाहन पर गोवंशों को चढ़ा रहा था, तभी एक गोवंश भागकर रंजीत के घर के सामने पहुंच गया। जिस पर रंजीत पक्ष ने व्यापारी को थप्पड़ जड़ दिया। इसकी जानकारी होने पर राणा पक्ष वहां पहुंचा और दोनों में झगड़ा शुरू हो गया। फिर रंजीत पांडेय और उनके दो बेटों की हत्या कर दी गई थी।
गोरखपुर में वर्चस्व व जमीन विवाद में हुई हैं हत्याएं
31 जुलाई 2016 को गोरखपुर के बांसगांव के धौसा में जमीन विवाद में हत्याएं हुई थीं। जमीन के विवाद में चल रहे पैमाइश के दौरान एक पक्ष के लोगों ने गोली मारकर बीडीसी सदस्य दिवाकर यादव उर्फ पिंटू की हत्या की। आक्रोशित दूसरे पक्ष ने भी प्रेमसागर तिवारी की हत्या की थी।
2019 में गगहा के शिवपुर में जमीन विवाद में अधिवक्ता राजेश्वर पांडेय की हत्या हुई थी।
अक्तूबर 2022 में गोरखनाथ में जमीन विवाद में हिस्ट्रीशीटर मेराजुल हक की हत्या हुई थी।
8 दिसंबर 2022 को जमीन विवाद में हरपुर में जितेंद्र की हत्या धर्मेंद्र ने की थी।
31 जुलाई 2023 को चौरीचौरा के देवीपुर निवासी सुरेंद्र की हत्या जमीन विवाद में चाचा ने की थी।
28 जुलाई 2023 को बांसगांव के फुलहर में जमीन विवाद में दुर्गावती की पीट-पीटकर हत्या की गई थी।
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