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उत्तरप्रदेश | यमुना नदी में बढ़ते प्रदूषण के चलते इसका पानी जहर बन गया है. इससे पानी में कछुआ-मछली के साथ अन्य जलचरों की संख्या बड़ी तादात में कम हो गई है. इसके लिए जिम्मेदार कुंभकर्णी नींद में सोए हुए हैं.
श्रीकृष्ण नगरी में कालिंदी कहलाने वाली यमुना में इतना कलुष है कि इसमें जलचरों का जीवन खतरे में पड़ गया है. इससे यमुना में जलचरों की संख्या काफी कम हो गई है. इसमें रहने वाले कछुआ-मछली अब कहीं कहीं ही दिखाई देते हैं. इसमें होने वाला मछली आखेट तो लगभग बंद सा ही हो गया है. कछुए भी या तो मर गए या यमुना से निकलकर अन्यत्र चले गए हैं. यहां तो धर्मावलंबियों द्वारा दाना आदि डालने के कारण कुछ जलचर दिख जाते हैं लेकिन मथुरा से निकलकर तो यमुना की स्थिति और भी बदतर हो जाती है. आगे इसमें कहीं भी जलचर नजर नहीं आते.
हरनौल एस्केप से है राहत मथुरा में पतित पावनी का पानी आचमन तो दूर छूने लायक भी नहीं रह गया. इसमें हरनौल एस्केप से कभी-कभी गंगाजल छूटने से जीवों को थोड़ी राहत मिलती है, लेकिन उससे पहले पलवल, फरीदाबाद आदि क्षेत्र एवं यहां से आगे के क्षेत्र में इसमें कीचड़ बहती दिखती है.
मुख्य कारण गंदे नालों का पानी यमुना प्रदूषण का मुख्य कारण दिल्ली से यहां तक इसमें गिरते नाले एवं उनमें आता फैक्ट्रियों का केमिकल युक्त पानी व कचरा है. दिल्ली से निकलते ही यमुना में सिर्फ नालों का गंदा पानी ही दिखाई देता है. जबकि ठीक इससे पहले हथिनी कुंड बैराज तक स्थिति काफी ठीक है.
कुंभकर्णी नींद में सोए जिम्मेदार 300 साल तक जीने वाले कछुओं की संख्या यमुना में घटना ही पानी पर बड़ा सवाल है. मछली तो मामूली प्रदूषण से ही मर जाती हैं. प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड भी तमाम जांच में प्रदूषण बताता है. इसके बाद भी जिम्मेदार लोग कुंभकर्णी नींद में सोए हुए हैं.
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Harrison
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