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इलाहाबाद न्यूज़: मानव जीन पर हो रहे अनुसंधानों से बीमारियों के प्रभावी उपचार के नए रास्ते खुल रहे हैं. इसी तरह के एक शोध में पता चला है कि आयुर्वेद का फार्मूला नीरी केएफटी गुर्दे की बीमारियों के लिए जिम्मेदार छह जीन के व्यवहार को नियंत्रित करने की क्षमता रखता है. इससे गुर्दे की बीमारियों के बचाव और उपचार को नई दिशा मिल सकती है.
बायोमेडिसिन जर्नल में प्रकाशित शोध के मुताबिक नीरी केएफटी का असर जानने के लिए जामिया हमदर्द के सेंटर फॉर एक्सीलेंस में यह शोध किया गया. इन विट्रो अध्ययन यानी प्रयोगशाला में इंसानी कोशिकाओं पर किए अध्ययन में इस बात की पुष्टि हुई है. इसके लिए नेशनल सेंटर फॉर सेल साइंसेज (एनसीसीएस) से इंसान के गुर्दे की कोशिकाएं एचईके 293 मंगाई गई. नीरी केएफटी पुनर्नवा, गोखरू, वरुण, कासनी, मकोय, पलाश तथा गिलोय समेत 19 जड़ी-बूटियों से बनी है.
शोधपत्र के अनुसार नीरी केएफटी को गुर्दे की अनेक बीमारियों के लिए जिम्मेदार छह जीन सीएएसपी, आईएल, एजीटीआर-1, एकेटी, एसीई-2 तथा एसओडी-1 के व्यवहार को नियंत्रित करने में कारगर पाया गया है. ये जीन गुर्दे की कार्यविधि के संचालन के लिए जिम्मेदार हैं. जीन के व्यवहार से तात्पर्य किसी जीन में उपस्थित सूचना के प्रयोग से उत्पादन होना है, जो आमतौर पर प्रोटीन होते हैं.
सिस्पलेटिन के दुष्प्रभाव को करता है कम
शोध के अनुसार नीरी केएफटी गंभीर एवं पुराने गुर्दा रोग एवं उससे संबद्ध विकृतियों को नियमित करने के लिए मजबूत विकल्प है. यह जीन के व्यवहार को विनियमित करती है, वहीं गुर्दे के उपचार के दौरान कीमोथेरेपी में इस्तेमाल होने वाली दवा सिस्पलेटिन के दुष्प्रभावों को भी घटाती है. इसके अलावा यह ऑक्सीडेटिव और इंफ्लामेंट्री स्ट्रेस को भी कम करने में कारगर है, जो गुर्दे के संक्रमण के खिलाफ लड़ने के लिए जरूरी है.