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कानपूर: गोरक्षनगरी में निकलने वाले कचरे से जल्द टॉरीफाइड चारकोल (हरित कोयला) तैयार होगा. इसके लिए एनटीपीसी सुथनी में आधुनिक प्लांट लगाएगी. इसका इस्तेमाल बिजली उत्पादन के लिए बॉयलर में होगा. इसके लिए एनटीपीसी ने पर्यावरण प्रदूषण विभाग से एनओसी मांगा है. विभाग ने एनओसी के लिए उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड लखनऊ को भेज दिया है. उम्मीद जताई जा रही है कि एक सप्ताह के अंदर एनओसी मिल जाएगी. एनटीपीसी इस साल इस प्लांट को शुरू करने की तैयारी में है.
नगर निगम की तरफ से सहजनवा के सुथनी में सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट प्लांट बन रहा है. इस प्लांट के बनने के बाद से गीले कचरे से सीएनजी बनाई जाएगी, जो बाजार में भेजी जाएगी. लेकिन, सूखे कचरे का प्रबंध अब तक नहीं हो पा रहा था. इसे लेकर नगर निगम ने एनटीपीसी से संपर्क किया. एनटीपीसी ने सूखे कचरे से टॉरीफाइड फ्यूल बनाने के लिए हामी भर दी है. इससे पहले वाराणसी में एनटीपीसी ने प्रदेश का टॉरीफाइड फ्यूल बनाने का प्लांट लगा चुकी है. इस प्लांट में हरित कोयला बनाने का काम चल रहा है.
प्रदेश का दूसरा और देश का तीसरा प्लांट अब गोरखपुर में बनने जा रहा है. इसके लिए सुथनी में नगर निगम ने एनटीपीसी को जमीन भी दे दिया है. पूरे प्लांट का खर्च एनटीपीसी खुद उठाएगी. इसके एवज में वह फ्यूल बनाकर बड़े-बड़े बिजली घरों को बेचेगी. जरूरत के मुताबिक एनटीपीसी अपने बॉयलर में भी इस फ्यूल का इस्तेमाल करेगी. क्योंकि, एनटीपीसी के पास खुद भी कई बड़े-बड़े बॉयलर है. इसके अलावा अंबेडकरनगर सहित गीडा में लगे बॉयलर में भी इस फ्यूल का इस्तेमाल हो सकेगा.
500 टन होगी प्लांट की क्षमता क्षेत्रीय पर्यावरण प्रदूषण अधिकारी अनिल कुमार शर्मा ने बताया कि इस प्लांट की क्षमता 500 टन की होगी. एनटीपीसी का यह बड़ा प्रोजेक्ट है. यह प्रदेश का दूसरा प्लांट होगा, जहां पर हरित कोयले का निर्माण किया जाएगा. इससे पहले वाराणसी और भोपाल में प्लांट लगाया गया है. बताया कि प्लांट को चलाने के लिए सूखा कूड़ा नगर निगम निशुल्क उपलब्ध कराएगा. इसके लिए 30 साल का एग्रीमेंट भी नगर निगम और एनटीपीसी के बीच हो चुका है. इसकी तैयारियां भी तेज हो गई है. एनओसी के लिए आवेदन भी आ चुका है. इस साल के अंत तक प्लांट के शुरू होने की पूरी उम्मीद है. इस प्लांट के शुरू होने के बाद एकला बांध पर कूड़ा भी नहीं गिराया जाएगा.
टॉरीफाइल चारकोल प्राकृतिक कोयले के सामान है क्षेत्रीय पर्यावरण प्रदूषण अधिकारी अनिल कुमार शर्मा ने बताया कि टॉरीफाइड चारकोल (हरा कोयला) जो प्राकृतिक कोयले के समान है, उसे बिजली उत्पादन के लिए थर्मल पॉवर संयंत्रों में ईंधन के साथ सफलतापूर्वक मिश्रित किया जा सकता है. यह प्रक्रिया पर्यावरण के लिए सबसे कारगार है. अच्छी बात यह है कि इसमें इस्तेमाल सूखे कूड़े को जलाया नहीं जाता है, बल्कि इसे मैकॉबर बीके की विशेष रूपांतरण तकनीक का उपयोग करके रिएक्टर के अंदर संसोधित किया जाता है.