उत्तर प्रदेश

लोकरंग सांस्कृतिक समिति का यह प्रयास, पूर्वांचल की धरती को दिया अंतर्राष्ट्रीय पहचान

Gulabi Jagat
2 April 2024 11:07 AM GMT
लोकरंग सांस्कृतिक समिति का यह प्रयास, पूर्वांचल की धरती को दिया अंतर्राष्ट्रीय पहचान
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उत्तर प्रदेश: 17 वर्षों से लोक संस्कृति के संवर्द्धन के लिए एक अभियान शुरू किया गया था. लोकरंग सांस्कृतिक समिति ने बिना अकादमिक सहयोग या NGO टाइप सहायत लिए, जनसंवेदना को बचाने के उद्देश्य से जनता और अपने समर्थकों के सहारे यह काम आगे बढ़ाया। बिना किसी अकादमिक सहयोग से इतने लम्बे समय तक इस अभियान को जिंदा रखना, सचमुच अविश्वसनीय लगता है मगर संस्था के जुझारू साथियों की वजह से यह सब होता गया।
लोकरंग सांस्कृतिक समिति, जोगिया जनूबी पट्टी, लोक संस्कृतियों को सहेजने की दिशा में प्रतिबद्ध एक गंवई संस्था है। इस संस्था ने धीरे-धीरे पूर्वांचल की धरती को एक अंतर्राष्ट्रीय पहचान दिया है। फूहड़पन के विरूद्ध, जनसंस्कृति के संवर्द्धन के उद्देश्य से शुरू किए गए इस अभियान ने देश के शीर्ष साहित्यकारों को गांव में आमंत्रित किया। विचार गोष्ठी आयोजित की। लुप्त होते लोकगीतों को सहेजा। लोकसंस्कृतियों को लिपिबद्ध किया। कुशीनगर के सभी परंपरागत लोकगीतों और लोक नृत्यों को मंच पर उतारा। चार पुस्तकें और दर्जन भर पत्रिकाएं प्रकाशित कीं। लुप्तप्राय हो चुके भोजपुरी के मशहूर लोक नाट्कार, रसूल मियां की खोज करने का श्रेय इस संस्था को दिया जाता है। आज रसूल, इग्नू सहित कई विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रमों में शामिल हो चुके हैं। कविता पोस्टर, भित्ति चित्रों से गांव को सजाने का एक अनूठा प्रयोग, लोकरंग की सहयोगी संस्था, संभावना कला मंच, गाजीपुर के सहयोग से किया जाता रहा है यद्यपि कि संस्था को एक बड़ा आधात डॉ. राजकुमार सिंह जैसे सहयोगी चित्रकार की कैंसर से असमय मृत्यु से हुई और उसकी भरपाई अभी तक नहीं हो पाई है।




7 सितम्बर, 2018 को नीदरलैंड के उत्रेच शहर में लोकरंग के प्रचार और सहयोग के लिए एक आयोजन हुआ, जिसके आयोजक नीदरलैंड के प्रसिद्ध सरनामी भोजपुरी गायक राजमोहन हरदिन थे। लोकरंग सांस्कृतिक समिति की गतिविधियां, www.lokrang.in वेब साइट के माध्यम से पूरी दुनिया में देखी और जानी-समझी जा रही है। लोकरंग के इस अभियान में सूरीनाम और नीदरलैंड के राजमोहन हरदिन, सूरज, पवन, गयाना और न्यूजर्सी के एस्टॉन रमदहल, शंकर रमदहल पधार चुके हैं। मारीशस से 27 महिला लोक कलाकारों की एक टीम सरिता बुधु जी के निर्देशन में पधार चुकी हैं जो मॉरीशस की भोजपुरी स्पीकिंग यूनियन, मिनिस्ट्री ऑफ आर्ट एण्ड कल्चर की अध्यक्ष हैं। दक्षिण अफ्रीका के चाँदलाल पधार चुके हैं.
लोकरंग के दो दिवसीय आयोजन का प्रारंभ, 23-24 मई 2008 को हुआ था। तब से यह अभियान लगातार जारी है। मात्र 2020 के कोराना काल में यह स्थगित रहा। इस आयोजन में लोकगीत, नृत्य, वादन, नाटक, भित्ति चित्र, कविता पोस्टर, विचार गोष्ठी आदि विविध प्रकार की लोक संस्कृतियों के दर्शन होते हैं। प्रति वर्ष लगभग 150 लोक कलाकार भाग लेते हैं। इस आयोजन में पूर्वांचल के सभी प्रकार के लोक गीतों एवं नृत्यों को स्थान दिया गया है जिनमें हुड़का, पखावज, गोड़उ, जांघिया, धोबियाऊ, पंवरिया और फरी नृत्य, जट-जटिन, कमला पूजा, मालवा नृत्य, वर्षागीत, कुटनी-पिसनी गीत, बाउल, झरखण्डी खड़िया आदिवासी नृत्य, एकतारा, खजड़ी, बांसुरी एवं सारंगी वादन, ईशुरी फाग, बिरहा, आल्हा, अंचरी, बृजवासी, निर्गुन, कजरी, देवीगीत, चइता, सूफी कौव्वाली, कहरवा, जोगी गायकी, बाकुम कवित्त, कबीर गायन, अवधी बिरहा, खड़िया आदिवासी नृत्य, बधाई और नौरता लोक नृत्य, झिझिया, गोदना, राजस्थानी कालबेलिया, घूमर, भवाई, अग्नि, बणजारा-बणजारी, ग्रामीण भवाई और चारी नृत्य। छऊ और करमा नृत्य, बीहू नृत्य, आम्रपाली लावणी नृत्य, सपेरा नृत्य, मालवा का बीर गायन, भगोरिया नृत्य, थारू नृत्य, सहित विविध भोजपुरी गीतों और नाटकों को मंच प्रदान किया गया है।
लोकरंग 2024 में नीदरलैंड से राजमोहन के अलावाए भोजपुरी पॉप रैपर, रग्गा मेन्नो, सोन्दर हीरा, वरुण नन्दा और किशन हीरा की प्रस्तुतियां पहली बार देखने को मिलेंगी। वरुण नन्दा, सुप्रसिद्ध सूरनामी ढोलक वादक हैं जबकि सोन्दर हीरा ने पूर्वांचल के लवंडा और अहीरवा नाच को सात समंदर पार जिंदा रखा हुआ है, जो गिरमिटिया मजदूरों के साथए दो सदी पूर्व सूरीनाम जा पहुंचा था।
हमेशा की तरह लोकरंग कार्यक्रम का उद्घाटन "लोकरंग 2024" पत्रिका के लोकार्पण से शुरू होगा। गांव की महिलाएं परंपरागत सोहर से सांस्कृतिक कार्यक्रम की शुरुआत करेंगी। परिवर्तन रंगमंडली, जीरादेई, सिवान, बिहार की टीम इस बार दोनों रात लोकगीतों के अलावा नाटक भी प्रस्तुत करेगी। कुशीनगर जनपद का सुप्रसिद्ध पंवरिया नृत्य और किन्नर नृत्य भी देखने को मिलेगा।
लोकरंग में पहली बार, उत्तर-पूरब के दो राज्यों की भागीदारी देखने को मिलेगी । असम का बागुरुम्बा, बोडो और भोरताल नृत्य प्रस्तुत किया जायेगा। सिक्कम की सांस्कृतिक टीम पहली बार आमंत्रित की गई है। ताल म्यूजिक एण्ड डांस अकादमी, नामची, सिक्किम द्वारा तमांग सेलोए मारुनी और कोडा डांस प्रस्तुत किया जायेगा।
राजस्थान के तमाम परंपरागत लोक वाद्य यंत्रों की ध्वनि इस बार लोकरंग में गूंजेगी तो परंपरागत राजस्थानी नृत्य भी देखने को मिलेगा। चंदा लाल कालबेलिया एण्ड पार्टी, जयपुर, राजस्थान को इस बार आमंत्रित किया गया है। "भाई विरोध" और "दगा हो गए बालम" दो नाटक भी मंचित किए जायेंगे,जो परिवर्तन रंगमंडली, जीरादेई, सिवान, बिहार द्वारा प्रस्तुत किया जायेगा।
15 अप्रैलः सोमवार को प्रातः 11 बजे से विचार गोष्ठी आयोजित की गई है, जिसका विषय है, "लोकसंस्कृति के समावेशी तत्व"। इस गोष्ठी में देश के तमाम प्रसिद्ध साहित्यकारए प्रोफेसर और अध्यापक शामिल होंगे। देश के जाने माने वरिष्ठ साहित्यकार अवधेश प्रधानए प्रो. सदानंद शाही, प्रो. नीरज खरे, प्रो. दिनेश कुशवाह, प्रो. निरंजन सहाय, प्रो. अनिल राय, बी. आर. विप्लवी, प्रो. अनिल सिंह, प्रो. राजेश मल्ल, प्रो. कमलेश वर्मा, डॉ. रवि शंकर सोनकर, प्रो. राहुल कुमार मौर्य, डॉ. आशा सिंह, डॉ. महेन्द्र प्रसाद कुशवाहा, डॉ. विंध्याचल यादव, रामजी यादव, स्वदेश सिन्हा, डॉ. दीनानाथ कुशवाहा, मनोज कुमार सिंह और अशोक चौधरी शामिल होंगे।
हमेश की तरह इस कार्यक्रम का संचालनए प्रो. दिनेश कुशवाह, हिन्दी विभागाध्यक्ष, रीवा विश्वविद्यालय, मध्य प्रदेश करेंगे, जो देश के जाने-माने कवि हैं। अब तक इस आयोजन में दिवंगत प्रो. मैनेजर पाण्डेय, दिवंगत प्रो. केदारनाथ सिंह, दिवंगत प्रो. लाला बहादुर वर्मा, दिवंगत अनिल सिन्हा, प्रो. राजेंद्र सिंह, आनंद स्वरुप वर्मा, पंकज बिष्ट, प्रो. दिनेश कुशवाह, प्रेमकुमार मणि, चौथीराम यादव, प्रो जयप्रकाश कर्दम, डॉ लालरत्नाकर, हरिनारायण, सूर्यमोहन कुलश्रेष्ठ, दिवंगत डॉ प्रफुल्ल कुमार मौन, तैयब हुसैन, वेद प्रकाश पाण्डेय, प्रो. शम्भुगुप्त, प्रो. बजरंग तिवारी, दिवंगत प्रो. गोरेलाल चंदेल, वीरेंद्र यादव, प्रो. रविभूषण, हृषिकेश सुलभ, मदन मोहन, ताहिरा हसन, प्रो. अर्चना कुमार, प्रो. राजकुमार, धीरेन्द्रनाथ, डॉ महेंद्र प्रसाद कुशवाहा, मृदुला शुक्ल, विद्याभूषण रावत, रामजी यादव, अपर्णा, संतोष पटेल, स्वदेश सिन्हा, डॉ दीनानाथ मौर्य, शिवमूर्ति, प्रो. रामपुनियानी, महेश कटारे, जितेन्द्र भारती, अरुण असफल, बीआर विप्लवी, प्रो. सूरज बहादुर थापा, सृंजय, डॉ. रतनलाल, डॉ. बलभद्र, राम प्रकाश कुशवाहा, डॉ. महेंद्र शांडिल्य, शिव कुमार, डॉ. विजय कुमार चौरसिया, रामजी राय, जय प्रकाश धूमकेतु, संजय जोशी, सुधीर सुमन, केके पाण्डेय, प्रो. आशुतोष, विजय गौड़, गीता गौरोला, डॉ आशा सिंह के अलावा अन्य बीसियों साहित्यकार आदि पधार चुके हैं. लोकरंग सांस्कृतिक समिति के हदीस अंसारी, विष्णुदेव राय, भुवनेश्वर राय, सिकंदर, संजय, नितांत राय, मंजूर अली, अनुभव राय, बुलेट, जाहिद और इमरान, आयोजन को सफल बनाने के लिए रात-दिन मेहनत कर रहे हैं।
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