उत्तर प्रदेश

शहर के विकास के मुद्दों को लेकर निगम की बोर्ड बैठक में हमेशा होता है जमकर हंगामा-प्रदर्शन

Admin Delhi 1
16 Nov 2022 9:54 AM GMT
शहर के विकास के मुद्दों को लेकर निगम की बोर्ड बैठक में हमेशा होता है जमकर हंगामा-प्रदर्शन
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मेरठ न्यूज़: इतिहास गवाह है कि नगर निगम की बोर्ड बैठक में मामूली छोटा-मोटा हंगामा हमेशा होता हैं, परन्तु जब बोर्ड बैठक होती है, तब निगम का एक तरह से पूरा परिवार इकट्ठा होता हैं। उस दौरान शहर के विकास के मुद्दों को लेकर हमेशा हंगामा खड़ा होता हैं। हंगामा होना कोई नई बात नहीं, बल्कि हमेशा से होता आया हैं। निगम परिवार और समस्याओं को परिवार के मुखिया मेयर और नगरायुक्त के सामने रखते रहे हैं। आज नगर निगम बोर्ड की बैठक बुलाई गयी थी। नगरायुक्त अमित पाल शर्मा ने बोर्ड बैठक को एक तरह से युद्ध का मैदान बना दिया हैं। निगम के 67 कर्मियों की ड्यूटी टाउन हाल में बोर्ड बैठक में लगा दी हैं। ये तमाम कर्मचारी नगरायुक्त की सुरक्षा में तैनात रहेंगे। ऐसा पहली बार हो रहा है, इससे पहले कभी इस तरह से कर्मचारियों की तैनाती नहीं हुई। सफाई कर्मचारियों ने वेतन वृद्धि को लेकर पिछली बोर्ड बैठक से बाहर हंगामा कर दिया था। मेयर सुनीता वर्मा सफाई कर्मियों के हित में वेतन वृद्धि करने का प्रस्ताव लेकर आयी थी, लेकिन नगरायुक्त इस प्रस्ताव को लेकर नाखुश हैं। वह नहीं चाहते कि सफाई कर्मियों की वेतन वृद्धि की जाए। इसको लेकर तनातनी हो रही हैं। सफाई कर्मियों द्वारा फिर से कोई बवाल नहीं कर दिया जाए, इसको लेकर नगरायुक्त भयभीत हैं, जिसके चलते 67 कर्मचारियों की फौज टाउन हाल में तैनात करने के एक पत्र भी जारी कर दिया हैं।

60 पुलिस कर्मियों की तैनाती की मांग भी एसएसपी से की गई हैं। नगरायुक्त के इस कदम से बवाल भी हो सकता है। सफाई कर्मियों और निगम के तैनात किये जा रहे कर्मचारियों के बीच टकराव के हालात पैदा हो सकते हैं। ऐसी स्थिति में कानून व्यवस्था बिगड़ सकती हैं, जो शहर की शांति के लिए अच्छा कदम नहीं हैं। शहर की सुख-शांति को प्राथमिकता देते हुए मेयर सुनीता वर्मा ने बोर्ड बैठक को टाल दिया है।

उधर, मेयर सुनीता वर्मा का कहना है कि विकास के एजेंडे पर बोर्ड बैठक में चर्चाएं होनी थी। सफाई कर्मियों की वेतन वृद्धि का प्रस्ताव स्वीकृत होना था, जो जनहित का हैं। ऐसे में 67 कर्मचारियों की तैनाती कर नगरायुक्त बोर्ड बैठक को युद्ध का मैदान बना रहे हैं। नियम ये कहता है कि बोर्ड बैठक में सिर्फ विभागाध्यक्षों की तैनाती हो सकती हैं, कर्मचारियों की नहीं। नगरायुक्त ने जो कर्मचारियों को तैनात करने का निर्णय लिया हैं, वो किससे पूछ कर लिया हैं। इसमें मेयर ने सख्त आपत्ति व्यक्त की है तथा इसको लेकर कमिश्नर सेल्वा कुमारी को भी पत्र लिखा हैं। कहा है कि यदि नगरायुक्त इतने भयभीत है तो फिर कमिश्नर किसी अन्य अफसर की तैनाती कर बोर्ड बैठक कराये। पहले नगरायुक्त की तबीयत खराब होने पर बोर्ड बैठक स्थगित की गई थी। अब मेयर से भी नगरायुक्त ने नहीं पूछा और 67 कर्मचारियों की बोर्ड बैठक में तैनाती के आदेश दे दिये। सदन में सिर्फ विभागाध्यक्ष बैठ सकते हैं, कर्मचारी नहीं। ऐसा नियम कह रहा हैं। महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि मेयर सदन की अध्यक्ष होती है, वहीं अधिकारी सिर्फ जवाब देने के लिए मौजूद होते हैं। दरअसल, सफाई कर्मियों के वेतन में 16 हजार से 20 हजार रुपये के बीच में फिक्स करने के लिए सदन में प्रस्ताव स्वीकृत कराया जाना था। इसी मुद्दे को लेकर तनातनी चल रही हैं। मेयर इस प्रस्ताव को स्वीकृत कराने के पक्ष में है तथा नगरायुक्त इस प्रस्ताव के खिलाफ हैं। इसी वजह से सफाई कर्मचारी और नगरायुक्त आमने-सामने हो गए थे। नियमावली के अनुसार जिन कर्मचारियों की तैनाती सदन में की गई हैं, वो सदन में बैठ ही नहीं सकते। विभागाध्यक्ष बैठ सकते हैं, लेकिन नगरायुक्त अपनी जिद पर अड़े हैं, जिसके बाद ही मेयर ने बोर्ड बैठक को फिर से शनिवार तक के लिए टाल दिया हैं।

चुनावी वर्ष: नगरायुक्त की जिद… कहीं पड़ न जाए भाजपा पर भारी

ये नगर निगम की आखिरी बोर्ड बैठक हैं। इसके बाद स्थानीय निकाय के चुनाव होंगे। कभी भी निकाय चुनाव की अधिसूचना जारी हो सकती हैं। वाल्मीकि समाज भाजपा का वोट बैंक रहा हैं। चुनाव से ठीक पहले सफाई कर्मियों की वेतन वृद्धि के मुद्दे को लेकर वर्ग विशेष को नगरायुक्त नाराज कर रहे हैं, जिसका नुकसान भाजपा को मेयर के चुनाव में हो सकता हैं। क्योंकि वाल्मीकि समाज भाजपा का बड़ा वोट बैंक रहा हैं, लेकिन नगरायुक्त अमित पाल शर्मा की कार्यशैली से चुनावी वर्ष में भाजपा के लिए मुश्किले पैदा हो सकती हैं। इस बात को शहर के भाजपा के बड़े नेता भी जानते हैं, लेकिन वाल्मीकि समाज को नाराज करने की बजाय उनकी मान मनोव्वल होनी चाहिए थी, वो नहीं हो रही हैं। वर्तमान में भाजपा की सरकार प्रदेश और केन्द्र में हैं। यह वर्ष चुनावी वर्ष कहा जा रहा हैं, लेकिन फिर भी वाल्मीकि समाज को नाराज क्यों किया जा रहा हैं? यह बड़ा सवाल हैं। ये भाजपा नेताओं को मंथन करना चाहिए। क्योंकि ये मुद्दा चुनाव में भी हवा ले सकता हैं। क्योंकि भाजपा प्रत्याशियों को सफाई कर्मियों की वेतन वृद्धि के सवाल पर मुंह छुपाना पड़ सकता हैं।

नगरायुक्त चुनावी वर्ष में आखिर ऐसा कार्य क्यों कर रहे हैं, जो मेयर के चुनाव में भाजपा को नुकसान उठाना पड़ सकता हैं। चुनावी वर्ष में फूंक-फूंककर कदम रखने चाहिए, लेकिन यहां तो नगरायुक्त जिंद पर अड गए है कि सफाई कर्मियों की वेतन वृद्धि नहीं होने दी जाएगी। नगरायुक्त की ये जिद नगर निकाय चुनाव में भाजपा को भारी पड़ सकती हैं।

लठैतों की तैनाती…आखिर मंशा क्या है?

बोर्ड बैठक में लठैतों की तैनाती के पीछे आखिर नगरायुक्त की मंशा क्या हैं? नगरायुक्त नगर निगम के मुखिया हैं, कर्मचारी उनका पूरा परिवार हैं। परिवार में छोटे-छोटे विवाद भी हो जाते हैं, इसका मतलब यह तो नहीं कि अपने ही कर्मचारियों को आमने-सामने खड़ा कर खूनी संघर्ष करा दिया जाए? बोर्ड बैठक को लठैतों की तैनाती कर चलाना चाहते हैं नगरायुक्त। शहर को क्या संदेश देना चाहते हैं? सदन में जनता के चुने हुए जनप्रतिनिधि पहुंचते हैं। अपने-अपने वार्डों की समस्याओं को पार्षद बोर्ड बैठक में रखते हैं। इस दौरान बहस भी होती हैं। निगम बोर्ड ही नहीं, विधानसभा और लोकसभा में भी जनप्रतिनिधियों के बीच बहस हो जाती हैं, लेकिन इसका मतलब ये तो नहीं है कि सदन के बीच में लठैतों की तैनाती कर दी जाए? घर का मुखिया अपने ही सफाई कर्मियों पर जोर आजमाइश करना चाहते हैं, आखिर ऐसा क्यों कर रहे हैं? इससे तो निगम का ही नहीं, बल्कि शहर का भी माहौल खराब हो सकता हैं? सफाई कर्मी लड़ाई नहीं लड़ना चाहते हो, उन्हें जबरिया युद्ध के मैदान में आमंत्रित किया जा रहा हैं, जिससे कानून व्यवस्था तो बिगड़ेगी ही साथ ही नगर निगम का शांति और सौहार्द पूर्ण माहौल भी खराब होगा। इसके लिए पूरी तरह से जिम्मेदारी नगर निगम मुखिया नगरायुक्त की होगी? मामूली विवाद तो होते रहते हैं, लेकिन अपने ही सफाई कर्मियों पर नगरायुक्त लाठी-डंडे चलवाना चाहते हैं, जो उनके निगम परिवार के सदस्य हैं।

नगरायुक्त का सुरक्षा घेरा…या फिर कर्मियों को भिड़ाने की साजिश?

सफाई कर्मचारियों की वेतन वृद्धि और पिछली बोर्ड बैठक में दौड़ाया था तो सुरक्षा घेरे में 67 कर्मचारियों को तैनाती की गई हैं। 60 पुलिस कर्मियों की भी मांग की थी। सफाई कर्मियों की संख्या के बराबर सुरक्षा घेरा तैयार किया गया। इस दौरान टकराव भी हो सकता था। इनमें सुरक्षा में तैनात किये गए कर्मचारियों और सफाई कर्मियों के बीच टकराव के हालात भी बन सकते थे। मेयर ने सुझबुझ का परिचय देते हुए बोर्ड बैठक आगे टाल दी। क्योंकि कोई बवाल होता है तो ऐसे में मेयर को भी निशाने पर लिया जा सकता हैं। भयभीत नगरायुक्त अपनी असफलता को छुपाने के लिए सुरक्षा घेरा तो तैयार करने में जुट गए, लेकिन सफाई कर्मियों को फेस नहीं कर पा रहे हैं। सफाई कर्मचारी नेताओं से सीधे संवाद करने को तैयार नहीं हैं। सुरक्षा घेरे तो तैयार कर रहे हैं, लेकिन सफलता का रास्ता नहीं तलाशा जा रहा हैं। हालांकि सफाई कर्मियों की वेतन वृद्धि का कार्य नगरायुक्त स्तर का कार्य हैं। नगरायुक्त इस समस्या का समाधान कर सकते हैं, लेकिन समस्या का समाधान करने की बजाय समस्या को विकट किया जा रहा हैं? सफाई कर्मियों की वेतन वृद्धि का प्रस्ताव बोर्ड बैठक में कई बार स्वीकृत हो चुका हैं।

फिर भी सफाई कर्मियों के वेतन में वृद्धि क्यों नहीं की जा रही हैं? सफाई कर्मी निचले स्तर का कर्मचारी होता हैं, ऐसे में उसकी आर्थिक दशा भी कुछ अच्छी नहीं होती हैं। नगरायुक्त सफाई कर्मियों की वेतन वृद्धि करना क्यों नहीं चाहते हैं, यह बड़ा सवाल हैं। कहीं नगर निगम के अधिकारी कर्मचारियों को आपस में भिड़ाने की कोई चाणक्य नीति तो नहीं अपना रहे थे। कर्मचारी आपस में भिड़ेंगे तो इस पूरे बवाल को दूसरा रूप दे दिया जाएगा? वाल्मीकि भड़क गए तो शहर के हालात कैसे होंगे? नगरायुक्त की हठधर्मिता के चलते सफाई कर्मी शहर को कूड़े के ढेर में तब्दील कर सकते हैं। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि आखिर नगरायुक्त की हेकड़ी के चलते शहर को सफाई कर्मी नरक बना सकते हैं। शायद इसके बाद ही नगरायुक्त को समझ में आएगा। इसका सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता हैं। वाल्मीकि समाज के लोगों के भड़कने के बाद आगजनी जैसे हालात भी पैदा हो सकते हैं, मगर इसकी चिंता शायद नगरायुक्त को नहीं हैं। क्योंकि फिर ये पूरा बवाल कमिश्नर सेल्वा कुमारी जे. और डीएम दीपक मीणा को ही झेलना पड़ेगा। ये तो शुक्र है मेयर का, उन्होंने टकराव को देखते हुए बोर्ड बैठक को फिलहाल टाल दिया हैं, अन्यथा नगरायुक्त ने तो बोर्ड में लठैतों की तैनाती कर एक तरह से युद्ध का शंखनाद ही कर दिया था।

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