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रोकटोक करने पर मच रहा बवाल, बच्चों के साथ माता-पिता को भी मोबाइल फोन दे रहा
डॉ. अमित शाही ने बताया कि बच्चे मोबाइल फोन में गेम शौक की वजह से नहीं खेल रहे हैं, बल्कि यह मस्तिष्क में गेम की लत लग गई है। नतीजा है कि गेम खेलने के लिए बच्चे कुछ भी करने को तैयार हो जा रहे हैं। गेम आक्रामक बना रहे हैं। एक्शन गेम सबसे ज्यादा नुकसानदायक है, जो कि दिमाग पर सीधा असर डाल रहा है। बच्चे दवा व काउंसिलिंग के बाद ठीक हो रहे हैं।
कोरोना महामारी के शुरू हुई ऑनलाइन पढ़ाई के दौरान बच्चों को मोबाइल फोन की ऐसी लत लगी कि परिजन परेशान हैं। मामला मनोचिकित्सकों के पास पहुंच रहा है। कुछ बच्चे ऐसे हैं, जो मोबाइल गेम खेलने से मना करने पर आपा खो दे रहे हैं। बहन के साथ ही माता-पिता से झगड़ने पर उतारू हो जा रहे हैं। खुद को एक कमरे में कैद कर ले रहे। मोबाइल एडिक्शन के शिकार हो गए हैं।
बीआरडी मेडिकल कॉलेज और जिला अस्पताल के मनोचिकित्सकों के पास आने वाले बालकों को न तो अपनी सेहत की चिंता है, न ही परिजनों की। जिला अस्पताल के मनोचिकित्सक डॉ. अमित शाही ने बताया कि कोरोना महामारी के बाद मोबाइल एडिक्शन के शिकार बच्चों के मामले बढ़े हैं। महामारी से पहले प्रति माह इक्का-दुक्का केस आते थे, लेकिन यह संख्या अब बढ़कर 10 से 12 के बीच हो गई है। बीआरडी मेडिकल कॉलेज के मनोचिकित्सा विभाग में भी 12 से 15 बच्चे इलाज कराने पहुंच रहे हैं।
शौक नहीं, मोबाइल गेमिंग की लत
डॉ. अमित शाही ने बताया कि बच्चे मोबाइल फोन में गेम शौक की वजह से नहीं खेल रहे हैं, बल्कि यह मस्तिष्क में गेम की लत लग गई है। नतीजा है कि गेम खेलने के लिए बच्चे कुछ भी करने को तैयार हो जा रहे हैं। गेम आक्रामक बना रहे हैं। एक्शन गेम सबसे ज्यादा नुकसानदायक है, जो कि दिमाग पर सीधा असर डाल रहा है। बच्चे दवा व काउंसिलिंग के बाद ठीक हो रहे हैं।
आंखों में दर्द, अनिद्रा की समस्या
बीआरडी मेडिकल कॉलेज के मनो चिकित्सा के विभागाध्यक्ष डॉ तपस कुमार का कहना है कि गेम खेलने के कारण बच्चों के आंखों में दर्द, चेहरे पर थकावट, सिर में दर्द, नींद की समस्या, कलाई और उंगलियों में दर्द की समस्या भी आ रही है। इसके अलावा चिड़चिड़ापन, भूलने की बीमारी, ध्यान केंद्रित ना कर पाना, निराश रहना, तनाव होना और किसी कार्य में मन नहीं लगना जैसी समस्याएं भी देखने को मिल रही हैं। अगर समय पर इसकी लत नहीं छूटी तो यह घातक हो जाता है।
अभिभावकों से छुपकर खेल में लगाते हैं पैसा
जिला अस्पताल के डॉ अमित शाही ने बताया कि कुछ वीडियो गेम्स निशुल्क होते हैं, लेकिन कुछ प्रीमियम फीचर होते हैं। इसमें धनराशि चुकाने के बाद ही आगे खेल सकते हैं। बेहतर खेलने के लिए और ऑनलाइन जुड़े गेमर्स को हराने के लिए स्टेज, हथियार, ताकत और हीरो को अनलॉक करने के लिए धनराशि चुकानी पड़ती है। बच्चे इस जीत को हासिल करने के लिए अभिभावकों से छुपकर पैसा खेल में लगाते हैं। ऐसे मामले भी सामने आए हैं।
ऐसे छुड़ाएं लत
गेम की आदत छुड़ाने के लिए जरूरी है कि माता-पिता बच्चों के साथ समय ज्यादा बिताएं। उनके साथ खेलें।
माता-पिता खुद भी मोबाइल फोन पर ज्यादा समय ना बीताएं।
छोटे बच्चों को मोबाइल ना दें।
अगर ऑनलाइन पढ़ाई के लिए मोबाइल दे रहे हैं तो उसमें यूपीआई या बैंक की एप आदि न रखें।
पढ़ाई के लिए अलग से मोबाइल दे सकते हैं, जिसमें अतिरिक्त एप ना हो।
बच्चों को आपके यूपीआई, बैंक एप के अनलॉक पिन और ट्रांजेक्शन पिन से भी अनजान रखें।
समय बीताने के लिए जब गेम खेलने की इच्छा हो तो मोबाइल छोड़कर टहलें, व्यायाम कराएं।
इस लत को पेंटिंग के जरिए आसानी से छुड़वाया जा सकता है। पेंटिंग में बच्चे ज्यादा समय बीताएं, ऐसी व्यवस्था करें।
केस- एक
सूरजकुंड का 13 वर्षीय बालक मोबाइल फोन पर बैटल गेम खेलता था। परिजनों मना कर रहे थे, लेकिन अनसुना कर रहा था। कुछ दिन बाद ऐसी स्थिति हो गई कि गेम खेलने से मना करते ही बालक मारपीट पर उतारू होने लगा। 17 साल की बहन के साथ ही माता-पिता से भी बदजुबानी करने लगा। परिजन मनोचिकित्सक के पास ले गए, जहां पर बच्चे की काउंसिलिंग जारी है।
केस- दो
राप्ती नगर फेज चार के 14 वर्षीय बालक को मोबाइल गेमिंग की ऐसी लत लगी कि खाना-पीना छोड़ दिया। परिजन मना करते तो बगावती तेवर अपना लेता। खुद को पूरे दिन कमरे में बंद रखता। गाली-गलौज और मारपीट कर लेता था। अब जिला अस्पताल के मनोचिकित्सक की देखरेख में इलाज चल रहा है।