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धंसने वाली नहीं चलने वाली सड़कों को बनाने की जरूरत, अधिवेशन में इंजीनियरों ने दिए अहम सुझाव

लखनऊ। सड़कों की गुणवत्ता में सुधार के लिए यह ध्यान देने की जरूरत है कि धंसने वाली नहीं बल्कि चलने वाली सड़कों को निर्माण होना चाहिए। इसके साथ ही सभी राज्यों में एक समान नियमावली के तहत सड़क निर्माण पर फोकस करने की जरूरत है इससे काफी हद तक हादसों में कमी आयेगी, और बार-बार बजट की बर्बादी नहीं होगी। ये बातें अलग-अलग राज्यों से लखनऊ आये इंजीनियरों ने कही। राजधानी के इंदिरा गांधी प्रतिष्ठान में चल रहे भारतीय रोड कांग्रेस के 81वें अधिवेशन के दूसरे दिन रविवार को यूपी सहित, महाराष्ट्र, केरल, मध्यप्रदेश, सहित कई राज्यों के इंजीनियरों ने अपने-अपने सुझाव प्रस्तुत किए हैं।
केरल में नारियल के जूट से बन रही टिकाऊ सड़कें
इंडियन रोड कांग्रेस में प्रेजेंटेशन के दौरान केरल के इंजीनियरों ने बताया कि नारियल के जूट से भी सड़के बनाई जा सकती हैं, ये टिकाऊ हैं और मजबूत भी हैं। इंजीनियरों ने बताया कि जूट से बने विशेष फैब्रिक क्वायर जियो-टेक्सटाइल से ग्रामीण क्षेत्रों में टिकाऊ सड़कें बनाई जा रही है। इस तकनीक से सड़क बनाने की लागत में भी 18 प्रतिशत तक कमी आती है। इंजीनियरों ने बताया कि जियो टेक्सटाइल का सबसे बड़ा लाभ यह है कि इसके प्रयोग के बाद सड़क धंसती नहीं है। इसे बारे में अधिक जानकारी देते हुए केरल स्थित केंद्रीय कॉयर शोध संस्थान की वरिष्ठ विज्ञानी अधिकारी सुमी सेबास्टियन ने भी बताया कि क्वायर को धरती का सबसे मजबूत रेशा माना जाता है। क्वायर-जियो टेक्सटाइल एक प्राकृतिक फैब्रिक है, जो बेहद मजबूत होने के साथ सबसे ज्यादा टिकाऊ, टूट-फूट, मोड़ और नमी प्रतिरोधी है।
तापमान और जलवायु परिवर्तन के अुनसार करना होगा क्ववालिटी का इस्तेमाल
आईआईटी दिल्ली के सिविल इंजीनियरिंग विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. अरविंद कृष्ण स्वामी ने सड़क निर्माण करते समय जलवायु के अनुसार निर्माण सामग्री इस्तेमाल करने का सुझाव दिया। उन्होंने इंजीनियरों को बताया कि हर इलाके में एक जैसी निर्माण सामग्री (बिटुमिन्स) का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। सड़कों की मजबूती के लिए उस इलाके में तापमान और अन्य जलवायु परिस्थितियों का ध्यान रखा जाना चाहिए। देश में प्रति एक हजार लोगों पर वाहनों की संख्या और हाइवे पर ट्रैफिक के दबाव को देखते हुए सड़क निर्माण की जरूरत है।
जल भराव की स्थिति का भी रखना होगा ध्यान
डॉ स्वामी कहा कि कहीं भी हाइवे या जिला स्तरीय सडकें बनाई जायें वहां जल भराव की स्थिति केा जरूर परखना होगा। यदि सड़क पर जल भराव होता है तो कितनी भी गुणवत्ता वाली सड़क हो वह एक दिन धंस सकती है। उन्होंने कहा कि देश में कुल रोड नेटवर्क का 1.7 प्रतिशत ही नेशनल हाइवे है, लेकिन उस पर ट्रैफिक का दबाव 40 प्रतिशत है।
हर साल देश में होती हैं पांच लाख मौतें
बता दें कि भारतीय रोड कांग्रेस अधिवेशन की शुरूआत करते हुए बीते शनिवार को बताया था कि उनके पास आकड़े हैं कि देश भर में हर साल सड़क हादसे में पांच लाख मौते हो रही हैं। इन मौतों को रोकना हम सभी का दायित्व है, उन्होंने इंजीनियरों सलाह देते हुए कहा कि सड़क बनाने वाले सभी इंजीनियरों को इस पर विचार करना होगा कि वह रोड सेफ्टी के मानकों को किस तरह से पूरा करते हैं। इस पर रविवार को कई इंजीनियरों ने चर्चा करते हुए माना कि पांच लाख मौते सड़क हादसे में हो रही हैं, इसके लिए गुणवत्तपूर्ण सड़के न होना एक अहम मुद्दा हैं।
यूपी में ये सड़के घोषित हैं नेशनल हाइवे
– इटावा-मैनपुरी-कुरावली रोड (73 किमी.)
– अलीगढ़-रामघाट रोड (51 किमी.)
-लखनऊ-बलिया रोड (120 किमी.)
-गाजीपुर-आजमगढ़ रोड (54 किमी.)
-इलाहाबाद गोरखपुर रोड (68 किमी.)
-बदायूं-बिजनौर रोड (66 किमी.)
– मेरठ-बदायूं रोड (65 किमी.)
-हंडिया-फूलपुर-सोरांव-कल्याणपुर-कटरा गुलाब सिंह-डेरवां लालगंज अजहरा रोड (98 किमी.)
-जगदीशपुर-गौरीगंज-अथेहा-लालगंज-अजहरा-अलापुर-लेहंदरी घाट-सैनी सिराथू-मंझीहानपुर रोड (134 किमी.)
-उतरौला-फैजाबाद-इलाहाबाद (85 किमी.)
-बलरामपुर-उतरौला-बेवा चरवाहा रोड (पीलीभीत-बस्ती रोड) (49 किमी.)
-इराइच-गुरसराय-मउरानीपुर (71 किमी.)
-कटरा-बिल्हौर हाइवे (एमडीआर-25) पर बिलग्राम-हरपालपुर-राजेपुर-बदायूं-मुरादाबाद (230 किमी.)
-लखनऊ-बांगरमऊ, बिल्हौर मोहन रोड (92 किमी.)
-बहराइच-सीतापुर रोड (94 किमी.)
-बुलंदशहर-सयाना-गढ़ रोड (50 किमी.)
-गजूरनाला-चांदपुर-नूरपुर-धामपुर (74 किमी.)
-कोतवाली-नेथौर-नूरपुर-अमरोहा जोया रोड (74 किमी.)
-बिजनौर-मंडवार-मंडावली रोड (39 किमी.)
-मथुरा-गोवर्धन डींग-भरतपुर रोड से आगरा-जयपुर रोड (एनएच रोड) (26 किमी.)
-मथुरा-गोवर्धन सोंख-गुनसारा रोड से भरतपुर-आगरा-जयपुर रोड (33 किमी.)
-भरतगंज-प्रतापपुर मार्ग (101 किमी.)
-बस्ती-डुमरियागंज-धेबरूआ रोड (79 किमी.)
न्यूज़ क्रेडिट: amritvichar