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उत्तर प्रदेश
बांदा के भूरागढ़ दुर्ग में लगता है प्रेमियों का मेला
Shantanu Roy
16 Jan 2023 10:43 AM GMT
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बड़ी खबर
बांदा। मकर संक्रांति का पर्व यूँ तो देश के हर हिस्से में मनाया जाता है, लेकिन बुन्देलखण्ड के बाँदा में मकर संक्राति में केन नदी के किनारे भूरागढ़ दुर्ग में आशिकों का मेला लगता है। प्रेम को पाने की चाहत में नटबली के प्रेम मन्दिर में हज़ारो जोड़े पूजा अर्चना कर प्रसाद चढ़ा कर मन्नत मांगते हैं। हर साल इस किले के नीचे बने नटबाबा के मन्दिर में मेला भी लगता है। बाँदा शहर के किनारे केन नदी के उस पार बने भूरागढ़ दुर्ग के ठीक नीचे हज़ारों लोगों का हुजूम उमड़ पड़ता है। किले की प्राचीर की नींव पर ही एक मंदिर अचानक आस्था के केंद्र में बदल जाता है। जी हाँ, ये नटबली का मन्दिर है। ये वो मन्दिर है जहाँ आने वालों की हर मन्नत पूरी होने की मान्यता है। इस मन्दिर में विराजमान नटबाबा भले इतिहास में दर्ज न हों, लेकिन बुन्देलियों के दिलों में नटबाबा के बलिदान की अमिट छाप है। ये जगह प्रेम करने वालाें के लिए किसी इबादतगाह से कम नहीं। मकर संक्रांति के मौके पर शादीशुदा जोड़े आशीर्वाद लेने आते हैं। प्रेमी प्रेमिकाएं अपने मनपसंद साथी के लिए मन्नत मांगती हैं।
मान्यता है कि 600 वर्ष पूर्व महोबा जनपद के सुगिरा के रहने वाले नोने अर्जुन सिंह भूरागढ़ दुर्ग के किलेदार थे। यहां से कुछ दूर मध्यप्रदेश के सरबई गाँव के एक नट जाति का 21 वर्षीय युवा बीरन किले में ही नौकर था। किलेदार की बेटी को इसी नट बीरन से प्यार हो गया और उसने अपने पिता से इसी नट से विवाह की ज़िद की, लेकिन किलेदार नोने अर्जुन सिंह ने बेटी के सामने शर्त रखी कि अगर बीरन नदी के उस पार बांबेश्वर पर्वत से किले तक नदी सूत (कच्चा धागे की रस्सी) पर चढ़कर पार कर किला आ जाए तो, उसकी शादी राजकुमारी से कर दी जाएगी। प्रेमी नट ने ये शर्त स्वीकार कर ली और ख़ास मकर संक्रांति के दिन प्रेमी नट सूत में चढ़कर किले तक जाने लगा। प्रेमी नट ने सूत पर चलते हुए नदी पार कर ली, लेकिन जैसे ही वह भूरागढ़ दुर्ग के पास पहुँचा। किलेदार नोने अर्जुन सिंह ने किले की दीवार से बंधे सूत को काट दिया और नट बीरन ऊँचाई से चट्टानों में गिर गया और उसकी मौत हो गयी। किले की खिड़की से किलेदार की बेटी ने जब अपने प्रेमी की मौत देखी तो वह भी किले से कूद गयीं। उसी चट्टान में उसकी भी मौत हो गयी। किले के नीचे ही दोनों प्रेमी युगल की समाधि बना दी गयी, जो बाद में मंदिर में बदल गयी। इसी कारण इसे नटबली मंदिर के नाम से जाना जाता है।
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