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उत्तर प्रदेश
लखनऊ में है 250 साल पुराना आस्था का अद्भुत अक्षय वट
Ritisha Jaiswal
26 July 2022 3:03 PM GMT

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ढाई सौ साल पुराना एक ऐसा बरगद का पेड़ जिसके अंदर लोग घूमते हैं, तो रास्ता भटक जाते हैं. इसकी शाखाएं अनगिनत हैं
ढाई सौ साल पुराना एक ऐसा बरगद का पेड़ जिसके अंदर लोग घूमते हैं, तो रास्ता भटक जाते हैं. इसकी शाखाएं अनगिनत हैं और लटें जमीन को छूती हैं. यह पेड़ ढाई एकड़ जमीन पर फैला हुआ है और इसके अंदर जाने पर यह महल जैसा लगता है. वहीं, इसके चारों ओर स्तंभ हैं. यह पेड़ बख्शी का तालाब में स्थित सिद्धपीठ मां चंद्रिका देवी से ढाई किलोमीटर दूर पर मंझी गांव में हरिवंश बाबा अक्षय वट आश्रम में मौजूद है. यहीं पर 300 साल पहले हरिवंश बाबा तपस्या करते थे.
बचपन में ही उनके माता पिता का साया उनके सिर के ऊपर से उठ गया था. इसके बाद वह घनघोर तपस्या में लीन हो गए थे. वह चंद्रिका देवी मां के बड़े भक्त थे और उनके रोजाना दर्शन करते थे. जब वह बुजुर्ग हो गए तो वह मंदिर नहीं जा पाते थे. ऐसी मान्यता है कि चंद्रिका देवी मां ने उनको वहां साक्षात दर्शन देकर कहा था कि तुम मेरी पूजा आराधना यहीं से करो तो हरिवंश बाबा ने वहीं से तपस्या करना शुरू कर दी थी. इसके बाद उन्होंने जीवित ही यहीं पर समाधि ले ली थी. वहीं, पुजारियों और स्थानीय लोगों ने बताया कि बाबा ने जहां समाधि ली थी, वहीं से इस अक्षय वट का जन्म हुआ था. अब इसकी जड़ें इतनी फैल गयी हैं कि ये खत्म कहां पर होती हैं यह किसी को नहीं पता है. यहां पर बॉलीवुड इंडस्ट्री से भी लोग आकर फिल्मों की शूटिंग करते हैं.
बाबा के दर्शन के बिना अधूरे हैं चंद्रिका देवी के दर्शन
इस मंदिर के मुख्य पुजारी काशीराम ने बताया कि यह पेड़ ढाई सौ साल पुराना है. वहीं, मुख्य संरक्षक कोमलानंद पुजारी ने बताया कि ऐसी मान्यता है कि जो भी चंद्रिका देवी दर्शन करने आता है अगर वह इस आश्रम में आकर अक्षय वट वृक्ष के दर्शन नहीं करता है तो उसके दर्शन अधूरे माने जाते हैं. ऐसा खुद चंद्रिका देवी मां ने हरिवंश बाबा को आशीर्वाद देते हुए कहा था. वह आगे बताते हैं कि यहां पर वट सावित्री व्रत का मेला लगता है. यज्ञ होता है और भक्तों की भारी भीड़ दर्शन पूजन करने पहुंचती है.
मन्नत पूरी होने पर मंदिर बनवाते हैं भक्त
इस पेड़ के आस पास कई भगवानों के मंदिर भी हैं.जिन्हें भक्तों ने मन्नत पूरी होने पर बनवाया था. हालांकि यहां के स्थानीय लोगों में इस बात की निराशा है कि सरकार इस ऐतिहासिक पेड़ पर बिल्कुल भी ध्यान नहीं दे रही है.सरकार अगर इस जगह पर ध्यान दे तो यह एक टूरिस्ट हब बन सकता है.
ऊंट की सवारी लुभाती है
यहां पर आने वाले लोगों को लुभाने के लिए ऊंट की सवारी भी उपलब्ध है, जो कि 200 मीटर तक कराई जाती है. इसको घुमाने वाले राम मूरत बताते हैं कि प्रति व्यक्ति 50 रुपए इसका किराया है. वह यहां पर आने वाले लोगों को घुमाते हैं. पेड़ के आस पास प्रसाद, फल और फूल की दुकानें भी हैं. यही नहीं अगर कोई पेड़ के ऊपर लिखता है या इस पेड़ को हानि पहुंचाने की कोशिश करता है तो उसके ऊपर 501 रुपए का जुर्माना भी लगाया जाता है.
Tagsलखनऊ

Ritisha Jaiswal
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