उत्तर प्रदेश

भाजपा और कांग्रेस दोनों के लिए आसान नहीं है आगामी विधानसभा चुनाव

HARRY
13 Oct 2022 3:49 AM GMT
भाजपा और कांग्रेस दोनों के लिए आसान नहीं है आगामी विधानसभा चुनाव
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नईदिल्ली। दो माह के भीतर गुजरात और हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने जा रहे है। गुजरात में भाजपा को लेकर किसी के मन में कोई संशय नहीं है, लेकिन हिमाचल प्रदेश को लेकर भाजपा का शीर्ष नेतृत्व चिंतित है। भाजपा के चिंतित होने के दो कारण प्रमुख हैं। एक, 1985 के बाद हिमाचल प्रदेश की जनता ने लगातार दो बार किसी भी सरकार को राज करने का मौक़ा नहीं दिया है। राज्य में हर विधानसभा चुनाव के बाद सत्ता परिवर्तन हुआ है। भाजपा इस मिथक को तोड़ना चाहतीं है, वहीं कांग्रेस इस मिथक के दम पर सत्ता प्राप्ति को लेकर उत्साहित है।

हालाँकि पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल और शांता कुमार गुट ने पूरी कोशिश की थी कि जयराम ठाकुर की जगह किसी और को मुख्यमंत्री बना दिया जाए। हिमाचल भाजपा का एक गुट केन्द्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर को प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाना चाहता था लेकिन हिमाचल प्रदेश से आने वाले भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष नड्डा अनुराग ठाकुर को तो हिमाचल से दूर रखने में सफल रहे, लेकिन पार्टी में जारी गुटबाज़ी को रोकने में असफल रहे। हिमाचल भाजपा अन्य प्रदेशों की तरह मोदी के प्रति मतदाताओं के लगाव और भरोसे के कारण दूसरी बार सरकार बनाने को लेकर आशान्वित है। मोदी भी इस बात को समझ रहे है कि गुजरात के साथ साथ हिमाचल प्रदेश की नैया भी उन्हें पार लगानी है।

इस कारण मोदी 5 अक्टूबर को कुल्लू के मशहूर दशहरा मेले के लिए कुल्लू में थे। पहली बार किसी प्रधानमंत्री ने इस समारोह में शिरकत की। भाजपा का मानना है कि मोदी के इस प्रवास से राज्य में बहुसंख्यक मतदाताओं का साथ भाजपा को मिलना तय है। AD वहीं आतंरिक खींचतान की शिकार रही भाजपा को सत्ता से बेदखल करने के लिए कांग्रेस एकजुट होने की बजाय खुद ही गुटबाजी में उलझी हुई है।

कांग्रेस के लिए तगड़ा झटका तब लगा जब राज्य ईकाई की संचालन समिति की अध्यक्षता करनेवाले पूर्व केन्द्रीय मंत्री आनंद शर्मा ने पार्टी की ओर से 'निरंतर उपेक्षा और अपमान' का आरोप लगाते हुए 21 अगस्त को विरोध में वह पद ही छोड़ दिया। इसके अलावा कुछ दिन पूर्व हिमाचल कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष हर्ष महाजन ने भाजपा का दामन थाम लिया है। उनके पहले पूर्व कार्यकारी अध्यक्ष और विधायक पवन काजल तथा नालागढ़ से विधायक लखविन्दर राणा भी भाजपा का दामन थाम चुके हैं। इसके चलते कांग्रेस के हिमाचल प्रदेश प्रभारी और अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के सचिव राजीव शुक्ला को प्रदेश में एकजुटता बनाए रखने के लिए अधिकांश समय शिमला में बिताना पड़ रहा है।

स्थानीय राजनीति उन्हें चैन की सांस नहीं लेने दे रही। कांग्रेस के दिग्गज नेता रहे वीरभद्र सिंह के निधन ने हिमाचल कांग्रेस में एक ऐसा खालीपन ला दिया है जिसे कांग्रेस अभी तक भर नहीं सकी है। दिवंगत वीरभद्र सिंह की 60 साल पुरानी विरासत को जारी रखने के साथ साथ अन्य गुटों के साथ भी बढ़िया तालमेल बनाए रखते हुए हिमाचल कांग्रेस में सबको साथ लेकर चलना, काग्रेस के लिए एक चुनौती है। छह बार मुख्यमंत्री रहे वीरभद्र मंडी, कुल्लू, कांगड़ा, शिमला, सोलन और सिरमौर जैसे हिमाचल के पुराने क्षेत्रों पर अपनी मजबूत पकड़ के साथ गुटबाजी को खत्म करने में कामयाब रहे थे। साल 2017 में पार्टी के 21 में से 13 विधायक इन जिलों से आए थे। नवंबर 2021 में, उनकी मृत्यु के बाद कांग्रेस को सहानुभूति लहर का लाभ मिला और उपचुनावों में उसने तीन विधानसभा सीटों के साथ साथ मंडी लोकसभा सीट पर जीत हासिल की थी।

उस लय को बनाए रखने के लिए वीरभद्र की विधवा प्रतिभा सिंह की भूमिका काफी महत्वपूर्ण है। यह भी पढ़ें: कैडर आधारित पार्टी से दलबदलू नेताओं की पार्टी कैसे बन गयी भाजपा? इसलिए, इस साल अप्रैल में कांग्रेस ने उनके कट्टर विरोधियों मुकेश अग्निहोत्री और सुखविंदर सुक्खू को भी प्रमुख पद देकर शांत रखने का प्रयास करते हुए, प्रतिभा सिंह को राज्य इकाई का प्रमुख बनाया।

लेकिन बात तब बिगड़ गई जब प्रतिभा सिंह ने अपने बेटे और शिमला ग्रामीण क्षेत्र से विधायक विक्रमादित्य सिंह को यात्रा का प्रभारी बना दिया, जो पार्टी का मुख्य प्रचार कार्यक्रम हैं। इसलिए दिल्ली में पार्टी आलाकमान तुरंत चौकन्ना हुआ और उन्होंने हस्तक्षेप किया और विक्रमादित्य को हटाकर रथ की बागडोर उनकी मां को सौंपी गई। अग्निहोत्री और सुक्खू को भी महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां दी गई। कांग्रेस ने इस बार मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करने से परहेज करते हुए पार्टी में सबके लिए बराबर मौके होने का एक सूक्ष्म संकेत देने की कोशिश की हैं। वहीं, आम आदमी पार्टी जिसे पंजाब में अपनी शानदार जीत के बाद हिमाचल प्रदेश से भी बड़ी उम्मीद थी, उसकी शुरूआत खराब रही।

अप्रैल में इसकी पूरी राज्य ईकाई को भंग करना पड़ा, क्योकि इसके राज्य प्रमुख अनूप केसरी सहित कई बड़े नेता भाजपा में शामिल हो गए थे। फिलहाल आप के लिए हिमाचल जीतना दूर की कौड़ी है। हिमाचल में विधानसभा की कुल 68 सीटें है। भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस के प्रदर्शन की बात करे तों दोनो दलों का प्रदर्शन पिछले पांच चुनाव में कुछ इस प्रकार रहा है। 2003 में भाजपा ने 16, 2007 में 41, 2012 में 26 और 2017 में 44 सीटें जीती थी। वही कांग्रेस ने 2003 में 43 सीटें, 2007 में 23 सीटें, 2012 के चुनाव में 36 सीटें और 2017 के चुनाव में 21 सीटें जीती थी।

वोट प्रतिशत की बात करें तो भाजपा को 2003 के चुनाव में 35 प्रतिशत, 2007 के चुनाव में 44 प्रतिशत, 2012 के चुनाव में 36 प्रतिशत और 2017 के चुनाव में 49 प्रतिशत वोट मिले थे। कांग्रेस को 2003 के चुनाव में 41 प्रतिशत, 2007 में 39 प्रतिशत, 2012 में 43 प्रतिशत और 2017 में 42 प्रतिशत मत मिले थे। साल 2017 में कांग्रेस के वोट में महज 1.1 फीसद की गिरावट आई थी। इन सबके बीच, मुख्यमंत्री ठाकुर को युवाओं में नौकरी को लेकर नाराजगी, जीएसटी और आयातित सेबों की 'डंपिग' से सेब बगान मालिकों में रोष और पुरानी पेंशन योजना वापस लाने के लिए राज्य कर्मचारियों के संघर्ष और नाराजगी का भी सामना करना पड़ रहा है।

कोविड के बाद से राज्य के सकल घरेलू उत्पाद में 7 फीसद का योगदान करने वाले पर्यटन उद्योग की टूटी कमर से इस व्यवसाय से जुड़े लोगों में भी सरकार को लेकर नाराजगी है। जयराम ठाकुर को इन सबसे भी निपटना होगा। इन सबके बाद भी ठाकुर के पक्ष में जो बात जाती है, उनमें उनकी स्वच्छ छवि, सामाजिक क्षेत्र में योजनाओं को लागू करना, स्वास्थ और शिक्षा के क्षेत्र में बेहतर सुविधा उपलब्ध करने के अलावा हाटी जैसे समुदायों को अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल करना रहा है।

बहरहाल, हिमाचल प्रदेश का चुनाव इस बार किसी के लिए आसान नहीं रहने वाला है। हिमाचल प्रदेश में 1985 के बाद से सत्ता परिवर्तन की परंपरा है। हर पांच साल सत्ता में कांग्रेस और भाजपा को बारी बारी से सत्ता मिली है। इस मिथक से कांग्रेस को सत्ता मिलने की उम्मीद है और भाजपा इस मिथक को तोड़ने की हरसंभव कोशिश कर रही है।

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