उत्तर प्रदेश

मुखालफत दबाने को बनाई थी मौत के कुएं पर मीनार

Admin Delhi 1
15 Aug 2023 5:45 AM GMT
मुखालफत दबाने को बनाई थी मौत के कुएं पर मीनार
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अमानवीयता देख बेहोश हुए थे ब्रिटिश सिपाही

वाराणसी: मियांमीर में विद्रोह करने वाली 26वीं नेटिव इन्फेंट्री (बंगाल इन्फेंट्री) की सामूहिक कब्र बने कुएं को अंग्रेजों ने वर्षों तक मुखालफतों को दबाने के लिए नजीर के तौर पर इस्तेमाल किया. 282 सिपाहियों के नरसंहार के अगुवा रहे डिप्टी कमिश्नर फ्रेडरिक कूपर ने कुएं के ऊपर मिट्टी की मीनार खड़ी करा दी थी. ‘कालियावाला कूह’ को ब्रितानी हुकूमत की बुलंदी और नृशंस तरीकों के विजय स्तंभ के रूप में प्रचारित कराया गया.

1 अगस्त 1857 को अजनाला में 237 सिपाहियों की गोली मारकर हत्या और 45 सिपाहियों को कुएं में जिंदा फेंकवाने के बाद फ्रेडरिक कूपर ने उस कुएं को मिट्टी से पाटने का आदेश दिया. अगले ही दिन उसने अपने कमांडरों को गांव से और मिट्टी मंगाने को कहा और राजगीरों को लगाकर कुएं पर मिट्टी की बड़ी मीनार बनवाई. कूपर ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि यह मीनार मीलों दूर से नजर आती थी. इसपर अंग्रेजी, फारसी और गुरुमुखी में ‘रिबेल्स ग्रेव’ यानी विद्रोहियों की कब्र लिखवाया गया था.

कूपर ने लिखा है कि यह मीनार बनवाने के पीछे उद्देश्य स्थानीय लोगों के विरोध के स्वर को दबाना था. हालांकि उसके मुताबिक इस नरसंहार का असर और भी व्यापक हुआ. पंजाब के अलावा पूरे संयुक्त प्रांत (यूनाइटेड प्रोविंस) और बंगाल तक की छावनियों में शस्त्रविहीन कर छोड़ी गईं बटालियनों ने कोई विरोध नहीं किया. कूपर ने इन्हें एक स्थान पर ‘पूरबिया सिपाही’ का नाम भी दिया है.

कुएं के संरक्षण की तैयारी शुरू की गई

अजनाला के कुएं को लेकर केंद्र सरकार से लगाई गई गुहार का असर दिखने लगा है. शहीद सिपाहियों की डीएनए जांच करने वाली टीम के सदस्य रहे बीएचयू के प्रो. ज्ञानेश्वर चौबे ने केंद्र सरकार के साथ ही एएसआई और संस्कृति मंत्रालय को भी पत्र लिखा था. इस पत्र पर एएसआई ने कुएं के संरक्षण की तैयारी शुरू कर दी है. ऐसे में इन शहीदों की पहचान और परिवारों की तलाश को लेकर उम्मीद बढ़ी है.

अमानवीयता देख बेहोश हुए थे ब्रिटिश सिपाही

अजनाला में भारतीय सिपाहियों की कतार लगाकर गोली मारने की घटना का भी कूपर ने वर्णन किया है. उसने लिखा है कि सुबह से शुरू हुई इस प्रक्रिया की निगरानी के लिए एक मजिस्ट्रेट को लगाया गया था. सिपाहियों को ‘सजा’ देने की इस प्रक्रिया में सुबह से शाम हो गई क्योंकि गोली चलाने वाले कई ब्रिटिश सिपाही अचेत होकर गिर पड़े. इसकी वजह से बीच में कई बार रुकावट आई. इसके बाद शाम तक 237 सिपाहियों की गोली मारकर हत्या की गई और बचे हुए 45 को घायल और अचेत अवस्था में जिंदा ही कुएं में दफन कर दिया गया.

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