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सीतामढ़ी की इस छेना जलेबी का स्वाद बना देगा दीवाना, 50 साल पहले हुआ था ईजाद
जलेबी हमारे देश का एक ऐसा व्यंजन है जिसका नाम सुनते ही किसी के भी मुंह में पानी आ जाएगा। विदेश से अपनाई गई ये मिठाई आज हमारे देश का राष्ट्रीय व्यंजन बन चुकी है। हर राज्य के हर शहर में इसे अलग अलग तरीके और स्वाद के साथ खाया जाता है। अलग अलग नाम से पहचाने जाने वाला यह व्यंजन देश ही नहीं दुनियाभर में प्रसिद्ध है।
जलेबी हर व्यक्ति को पसंद आती है लेकिन अगर इसे छेना से बनाया गया हो तो इसका स्वाद और भी निराला हो जाता है। अगर आप स्वादिष्ट छेना जलेबी के बारे में नहीं जानते हैं तो आज हम आपको बताते हैं कि आखिरकार यह जलेबी सबसे पहले कहां बनाई गई थी, इसे कैसे बनाया जाता है और यह कितनी प्रसिद्ध है। ये मिठाई आज इतनी ज्यादा प्रसिद्ध है कि हर कोई इसका स्वाद चखना चाहता है।
50 साल पहले हुआ Chhena Jalebi का ईजादसीतामढ़ी के बेलसंड में रहने वाले मुंगालाल साह नामक हलवाई ने सबसे पहले छेना जलेबी का निर्माण किया था। 50 साल पहले उन्होंने अपनी मिठाई की दुकान में इसे तैयार किया था, अब वह तो नहीं रहे लेकिन उनका यह स्वाद आज भी लोगों की जुबान पर चढ़ा हुआ है।
मूंगालाल के चले जाने के बाद उनके परिवार के कुछ लोगों ने इस बिजनेस को संभाला और कुछ लोग दूसरे क्षेत्र में चले गए। परीजनों के मुताबिक वह कुछ अलग करना चाहते थे इसलिए उन्होंने छेना और मैदे के मिश्रण से जलेबी को तैयार किया। इस मिठाई का स्वाद लोगों को बहुत पसंद आया और देखते ही देखते वह पूरे क्षेत्र में प्रसिद्ध हो गए।
धीर धीरे आसपास के अन्य दुकानदारों ने भी इस मिठाई को बनाना शुरू किया और अब लगभग पूरे जिले में हर मिठाई की दुकान पर छेना वाली जलेबी मिल जाती है। बेलसंड में मिलने वाली जलेबी आज भी लोग चटकारे लेकर खाते हैं और अपने दोस्तों और रिश्तेदारों के लिए भी लेकर जाते हैं।
शुद्ध घी में बनती थी छेना जलेबी
मुंगालाल साह जब इस जलेबी को बनाते थे तो उसे शुद्ध घी में तैयार किया जाता था। स्थानीय लोगों के मुताबिक मुंगालाल की बनाई गई शुद्ध घी की जलेबी का स्वाद आज भी उन्हें याद है। आजकल बनाई जाने वाली मिठाई में वो टेस्ट नहीं आता जो 50 साल पहले आया करता था।
पहले शुद्ध घी में कम शकर के साथ बड़ी प्यार से इस जलेबी को तैयार किया जाता था। आजकल रिफाइंड ऑयल में इसे बनाया जाता है। पहले मिलने वाली 15 से 16 जलेबी का वजन 1 किलो तक पहुंच जाता था हालांकि समय के साथ अब इसमें बहुत बदलाव आ गया है।
बहुत कम लोग इस बात को जानते हैं लेकिन 50 साल पहले मुंगालाल अपने यहां आने वाले ग्राहकों को मिट्टी के बर्तन में जलेबी परोसा करते थे। जलेबी बनाना और उसे मिट्टी के बर्तन में परोसना ये दोनों ही उन्हीं के ईजाद हैं।
ब्रांड बनी छेना जलेबी
बेलसंड में मिलने वाली छेना जलेबी अपने स्वाद के चलते अब एक ब्रांड बन चुकी है। इस क्षेत्र की किसी भी जगह जाने वाला मेहमान अपने साथ जलेबी ले जाना नहीं भूलता है। घर पर आने वाले खास मेहमानों को भी यह व्यंजन परोसा जाता है।
नेता हो या अभिनेता अगर वह यहां आते हैं तो इस जलेबी का स्वाद लेने के साथ इसे अपने साथ पैक करवा कर ले जाना नहीं भूलते। इतनी प्रसिद्धि के बावजूद भी बेलसंड कि यह जलेबी अब भी जीआई टैग से दूर है, इसे प्रसिद्धि तो मिल चुकी है लेकिन बेलसंड के इस स्वाद को असली पहचान की जरूरत आज भी है।
अगर आप भी कभी सीतामढ़ी इलाके में जाते हैं तो यहां के बेलसंड में मिलने वाली छेना जलेबी का स्वाद लेना बिल्कुल ना भूलें। मुंगालाल के जैसे स्वाद की जलेबी आपको भले यहां ना मिले लेकिन फिलहाल यहां का जो स्वाद है वह भी आप का दिल जीतने में जरूर कामयाब होगा।