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उत्तरप्रदेश | विभाजन के समय सरहद पार करना असंभव प्रतीत हो रहा था. कोई शवों के बीच छिपकर आया तो कोई गृहस्थी छोड़कर लौटा. बंटवारे के समय सिंध प्रांत से पांच हजार परिवार लखनऊ पहुंचे. यहीं नए सिरे से जीवन की शुरुआत की.
अब अधिसंख्य परिवार सम्पन्न हैं, लेकिन विभाजन का दर्द कोई नहीं भूल सका. विभाजन विभीषिका दिवस के दिन आईजीपी में ऐसे परिवारों के लोग उस पीड़ा को बयां करेंगे. सिंधी समाज से ऐसे 100 लोगों को चुना गया है. इसके पूर्व समाज ने बैठक कर कार्यक्रम केलिए नाम की सूची तैयार की. किसी के दादा तो किसी के माता पिता बंटवारे के समय लखनऊ आ कर बसे थे. तत्कालीन सरकार ने उनके लिए आलमबाग में राहत शिविर लगाए थे. श्रीशचन्द्र के ताऊ अब भी पाकिस्तान में हैं और यहां आने के लिए प्रयास कर रहे हैं. विभाजन के समय आए परिवारों के लोगों ने बताया कि जो उस वक्त पाकिस्तान में रह गए, वे एक तरह से फंस गए हैं.
विभाजन विभीषिका का दर्द हमेशा सताएगा
आलमबाग वीआईपी रोड स्थित शिव शांति संत आंसूदाराम आश्रम पर विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस से पूर्व बैठक हुई. इसमें शहर भर के सिंधी समाज के लोगों ने हिस्सा लिया. लोगों ने चर्चा में कहा कि विभाजन विभीषिका का दर्द हमेशा याद आता रहेगा. बैठक में सिंधी अकादमी उपाध्यक्ष नानकचंद लखमानी ने बताया कि मुख्य कार्यक्रम आईजीपी में मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में होगा. सिंधु सभा अध्यक्ष अशोक मोतियानी, सिंधी वेलफेयर सोसायटी अध्यक्ष सतेंद्र भवनानी ने बताया कि पाकिस्तान में हिन्दू सिंधी परिवारों का अपहरण, धर्म परिवर्तन कैसे होता रहा और पकिस्तान में सिंधी समुदाय का
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Harrison
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