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छलका शशि थरूर का दर्द, कहा- खड़गे साहब का स्वागत होता है मेरा नहीं
कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए चुनाव हो रहे हैं और इसमे शशि थरूर व मल्लिकार्जुन खड़गे आमने सामने हैं। इस चुनाव को लेकर शशि थरूर ने आज मीडिया के सामने दावा किया कि यह बराबरी का मैदान नहीं है, दोनों को बराबरी की लड़ाई का अवसर नहीं मिल रहा है। हालांकि उन्होंने यह जरूर कहा है कि हम चुनाव लड़ रहे हैं, हमारी पार्टी के भीतर दुश्मनी का कोई भाव नहीं है। खड़गे साहब मेरे वरिष्ठ नेता हैं और मैंने उनके साथ करीब से काम किया है। यह चुनाव इस बात का है कि कैसे दोनों मिलकर पार्टी को मजबूत करेंगे। अपने लिए वोट अपील करते हुए कांग्रेस प्रतिनिधियों से शशि थरूर ने कहा कि अगर आपको लगता है कि पार्टी के भीतर सबकुछ ठीक है तो मुझे वोट मत दीजिए, मैं पार्टी के भीतर ऐसे बदलाव लाना चाहता हूं जिससे जो वोटर्स 2014-2019 में हमारे साथ नहीं आएं, वो वापस आएं।
वहीं कांग्रेस के केंद्रीय चुनाव प्राधिकरण के अध्यक्ष मधुसूदन मिस्त्री को लेकर शशि थरूर ने कहा कि मैं मिस्त्री साहब के खिलाफ कुछ भी नहीं बोलना चाहता था, सिस्टम में कुछ कमियां हैं वह हम सबको पता है, 22 साल से चुनाव नहीं हुआ। पहली लिस्ट 30 तारीख को मिली थी, पिछले बुधवार को एक और लिस्ट मिली। पहली लिस्ट में किसी का भी फोन नहीं नहीं है। पहली लिस्ट में सिर्फ ब्लॉक का नाम था, आधा पता था, तो लोगों को संपर्क करना मुश्किल था। लेकिन दोनों ही लिस्ट में अंतर है, नाम भी अलग हैं, पहली लिस्ट में कुछ नाम जो हैं वह दूसरी में नहीं है। मेरी यह शिकायत यह नहीं है कि यह जानबूझकर हो रहा है। 22 साल से चुनाव नहीं हुए हमारी पार्टी में, इसलिए इस तरह की कुछ गलतियां हुई हैं। मैं जानता हूं कि मिस्त्री साहब निष्पक्ष चुनाव कराने की कोशिश कर रहे हैं। 17 तारीख तक कोई गारंटी नहीं है मैं सबतक पहुंच जाऊं, क्योंकि सबके नंबर है नहीं है। मैं अंत में आप लोगों (मीडिया) से बात करके ही लोगों तक अपनी बात पहुंचाना चाह रहा हूं।
कुछ नेताओं ने जिस किस्म के काम किए हैं, उसको लेकर मैंने कहा है कि बराबरी की लड़ाई का मौका नहीं है यह। कई बार क्या होता है कि वरिष्ठ नेता मल्लिकार्जुन खड़गे साहब को बुलाते हैं, अपने साथ के नेताओं प्रतिनिधियों को बुलाते हैं, उनके साथ बैठकर बात करते हैं। लोगों को निर्देश जाते हैं कि आ जाओ, खड़गे साहब आए हैं। कई पीसीसी में यह हुआ है। कई बार मैं पीसीसी गया, लेकिन उस दिन अध्यक्ष नहीं रहे वहां, जिसकी वजह से बैठक नहीं हो सके। मैंने इस दौरान साधारण कार्यकर्ताओं से मिला। मेरा कहना है कि मेरे लिए साधारण कार्यकर्ता और वरिष्ठ दोनों ही बराबर हैं क्योंकि दोनों के वोट की महत्ता बराबर है। लेकिन जिस तरह से यह सब हो रहा है, उससे मैं कहना चाहता हूं कि यह बराबरी का मौका नहीं है।