उत्तर प्रदेश

दून और चंबा में होगा टीबी का उन्मूलन

Admin Delhi 1
20 Jan 2023 12:16 PM GMT
दून और चंबा में होगा टीबी का उन्मूलन
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गोरखपुर न्यूज़: उत्तर भारत के पहाड़ी क्षेत्रों में क्षय रोग (टीबी) के प्रकोप को नियंत्रित करने की पहल शुरू हो गई है. इसकी जिम्मेदारी गोरखपुर स्थित रीजनल मेडिकल रिसर्च सेंटर (आरएमआरसी) को मिली है. आरएमआरसी की टीम उत्तराखंड के देहरादून और हिमाचल प्रदेश के चंबा में टीबी के प्रसार, कारण और निवारण की पहचान करेगी. चिह्नित मरीजों का इलाज भी किया जाएगा. गोरखपुर स्थित आरएमआरसी के मुख्यालय की टीम इस पूरे अभियान की निगरानी करेगी.

अगले एक से डेढ़ महीने में दोनों जिलों में इसके लिए स्थानीय टीम का चयन पूरा हो जाएगा. इसमें स्थानीय स्तर पर विशेषज्ञों को नियुक्त किया जाएगा. साथ ही टीबी के जांच के आवश्यक उपकरण भी मुहैया कराए जाएंगे. चिह्नित मरीजों को टीबी के इलाज के अभियान से जोड़ा भी जाएगा.

आरएमआरसी के निदेशक डॉ. रजनीकांत ने बताया कि केंद्र सरकार ने आईसीएमआर के जरिए यह जिम्मेदारी आरएमआरसी को सौंपी है. यह प्रोजेक्ट तीन वर्ष का है. इस दौरान दोनों पहाड़ी जिलों में टीबी के बैक्टीरिया के संक्रमण के प्रसार की जांच को लेकर सर्वे किया जाएगा. इसे प्रीविलेंस सर्वे कहते हैं.

मरीजों की होगी जांच मरीजों की पहचान के लिए जांच की जाएगी. इस दौरान मोबाइल वैन को दोनों जिलों में भेजा जाएगा. चिह्नित किए गए मरीजों को टीबी उन्मूलन अभियान से जोड़ा जाएगा, जिससे उनका इलाज हो सके. इसके लिए स्थानीय स्तर पर टीम तैयार की जाएगी. यह टीम तीन साल तक टीबी उन्मूलन के क्षेत्र में काम करेगी. इसमें डॉक्टर से लेकर पैरामेडिकल स्टाफ व साइंटिस्ट भी शामिल है.

तलाशे जाएंगे छिपी हुए टीबी के मरीज

डॉ. रजनीकांत ने बताया कि टीवी का सबसे खतरनाक स्वरूप छिपी हुआ टीबी होता है. इसमें बैक्टीरिया निष्क्रिय अवस्था में मनुष्य के शरीर के किसी अंग में रहता है. अनुकूल माहौल मिलते ही बैक्टीरिया सक्रिय हो जाता है. इसे छिपी हुआ या लैटिन टीबी कहते हैं. आमतौर पर यह सामान्य जांच में पकड़ में नहीं आता. हालांकि, बैक्टीरिया की मौजूदगी समय-समय संकेत जरूर देती है. दोनों जिलों में ऐसे मरीजों की पहचान की जाएगी.

वातावरण का बैक्टीरिया के प्रभाव पर होगा रिसर्च

आरएमआरसी के निदेशक डॉ. रजनीकांत ने बताया कि मैदानी क्षेत्रों की तुलना में पहाड़ी क्षेत्रों का वातावरण अलग होता है. इसका असर बैक्टीरिया की सक्रियता पर भी पड़ता है. वातावरण का बैक्टीरिया पर पड़ने वाले प्रभाव का भी इसमें अध्ययन किया जाएगा.

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