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मेरठ: सिंचाई विभाग में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के आदेश कोई मायने नहीं रखते। शासन का आदेश है कि 3 वर्ष से ज्यादा एक पटल पर कर्मचारी की तैनाती नहीं रह सकती। बावजूद इसके सिंचाई विभाग में लंबे समय से पटल परिवर्तन हुआ ही नहीं, जिसके चलते सिंचाई विभाग के कर्मचारी बेलगाम हो गए हैं। एक तरह से इन कर्मचारियों पर अधिकारियों का अंकुश रहा ही नहीं। फिर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के जीरो टोलरेंस की नीति पर भी काम नहीं हो रहा है।
सिंचाई विभाग के कई खंड यहां पर मौजूद हैं। चीफ इंजीनियर भी यहीं पर बैठते हैं, लेकिन तमाम आॅफिस में जो क्लर्कों की तैनाती है। उसमें लंबे समय से किसी तरह का पटल परिवर्तन नहीं किया गया। क्लर्क अपने हिसाब से अधिकारियों से सेटिंग करते हैं और मलाईदार सीटों पर तैनाती पा लेते हैं, वही सब कुछ सेटिंग का खेल सिंचाई विभाग में चल रहा है। इस पर किसी तरह की नजर जाती ही नहीं है। क्योंकि सिंचाई विभाग में तेल की सफाई हो या फिर अन्य निर्मार्णों के ठेके, जिनमें बड़ा खेल चल रहा है।
इसको लेकर अधिकारी भी गंभीर नहीं है तथा जीरो टॉलरेंस की नीति पर भी काम नहीं कर रहे हैं। यही वजह है कि गंग नहर के किनारे जो जमीन सिंचाई विभाग की खाली पड़ी है। एक साल के लिए मनमर्जी से आवंटन किया जाता है। इसमें भी घालमेल के आरोप अधिकारियों पर लगे हैं, जिनकी जांच भी चल रही है, लेकिन मामले को अधिकारियों के स्तर पर जाकर रफा-दफा कर दिया जाता है।
अब बड़ा सवाल यह है कि सिंचाई विभाग के अधिकारिक स्तर के कर्मचारियों का पटल परिवर्तन क्यों नहीं कर रहे हैं? जब शासन ने तीन वर्ष की एक नीति निर्धारित कर दी है। उसके बावजूद पटल परिवर्तन क्यों नहीं किया जा रहा है? यह बड़ा सवाल है। इस मामले में अधिकारिक स्तर पर जांच की जानी चाहिए तथा जिन कर्मचारियों का पटल परिवर्तन नहीं हुआ। उनका पटल परिवर्तन किया जाए, तभी विभागों में पारदर्शिता संभव होगी।