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स्टेम सेल से बीमारी का निकाला तोड़, तीन को दी रोशनी
कानपूर न्यूज़: जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज ने आंखों की लाइलाज रतौंधी और हिरडोमैकुलर डिजनरेशन बीमारी को नवजात की मैसनखाइमल स्टेम सेल थेरेपी से दूर करके तीन लोगों को नई जिन्दगी दी है. तीनों की आंखों की रोशनी वापस आ गई है. एक और मासूम बच्ची का इलाज हो रहा है. देश में पहली बार इस थेरेपी से लंबे समय से गायब रोशनी वापस मिलने का दावा किया गया है.
प्रत्यारोपण करने वाले डॉ. परवेज खान ने बताया कि रेटिना में स्टेम सेल को इमप्लांट किया गया, जिससे बीमारी दूर करने में कामयाबी मिली. प्रत्यारोपण की इस सफल टेक्नोलॉजी को इंटरनेशनल जनरल में प्रकाशित करने के लिए भेजा जाएगा. उनके मुताबिक देश में पहली बार ऐसा प्रत्यारोपण हुआ है.
मेडिकल कॉलेज के नेत्र रोग विभाग के डॉ. परवेज खान और उनकी टीम करीब डेढ़ साल से स्टेम सेल थेरेपी पर काम कर रही थी. 15-16 मरीजों पर ट्रायल किया गया. पहले बोन मैरो, फिर ब्लड और एडिपोस टिशू से आंखों की रोशनी वापस लाने का प्रयास किया गया. वह सफल नहीं हो सका. बीते चार महीने से चल रहे मैसनखाइमल स्टेम सेल थेरेपी के चौथे ट्रायल से सफलता हासिल हुई है.
बाराबंकी की महिला का पहला सफल ऑपरेशन हुआ
डॉ. परवेज खान ने बताया कि रतौंधी और हिरडोमैकुलर डिजनरेशन बीमारी में धीरे-धीरे आंखों की रोशनी पूरी तरह से चली जाती है. सबसे पहले बाराबंकी की रतौंधी से पीड़िता उषा वर्मा (43) का स्टेम सेल थेरेपी प्रत्यारोपण के लिए ऑपरेशन किया गया. फिर मध्यप्रदेश के मुकेश कुमार (42) और उन्नाव निवासी व सीतापुर में सिपाही के पद पर तैनात मोहम्मद आसिम खान (45) का इलाज स्टेम सेल प्रत्यारोपण से किया गया है. बिहार की एक मासूम बच्ची का भी इलाज हो रहा है.
कोलंबिया विश्वविद्यालय में बताएंगे तकनीक
डॉ. परवेज खान ने बताया कि इससे पहले वह आप्टिकनियरोराइटिस पर सफलतापूर्ण काम कर चुके हैं. इसमें आंखों की सूख चुकी नसों को दोबारा प्रत्यारोपित किया जाता है. जनरल में प्रकाशन के बाद अप्रैल में कोलंबिया विश्वविद्यालय में छात्रों को इसकी जानकारी देने के लिए बुलाया गया है.