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धान की नई प्रजाति पर लगी मुहर, चावल अनुसंधान संस्थान व बीएचयू ने विकसित की है प्रजाति
वाराणसी न्यूज़: बीएचयू और ईरी के वैज्ञानिकों के संयुक्त प्रयास से विकसित की गई धान की नई प्रजाति को आईसीएआर (भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद) की स्वीकृति मिल गई है. असम के जोरहाट में हुई आईसीएआर की वैराइटल आईडेंटिफिकेशन कमेटी की 98वीं वार्षिक धान ग्रुप बैठक में इस नई प्रजाति पर मुहर लगाई गई.
अंतरराष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान (ईरी) और बीएचयू की तरफ से विकसित इस प्रजाति का तीन वर्ष तक अखिल भारतीय स्तर पर परीक्षण किया गया. इसके बाद 4 और 5 मई को आईसीएआर की बैठक में इसे स्वीकृति मिल गई. धान की इस नई किस्म का नाम ‘मालवीय मनीला सिंचित धान-1’ रखा गया है. बीएचयू के प्रो. श्रवण कुमार सिंह के नेतृत्व में वैज्ञानिकों की टीम डॉ. जयसुधा एस., डॉ. धीरेंद्र कुमार सिंह, डॉ. आकांक्षा सिंह तथा ईरी फिलिपींस के वैज्ञानिक डॉ. अरविंद कुमार तथा डॉ. विकास कुमार सिंह ने 15 साल की मेहनत के बाद यह नई किस्म विकसित की. आईसीएआर ने इस प्रजाति को उत्तर प्रदेश में रिलीज की अनुमति भी दे दी है.
प्रो. सिंह ने बताया कि यह एक जल्दी पकने वाली किस्म है जो 115 से 120 दिन में रोपाई की अवस्था में पक जाती है. मध्यम लम्बाई वाली इस किस्म की लंबाई 102 से 110 सेंटीमीटर है. इसकी उपज क्षमता 55 से 64 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है.
इसके चावल की लंबाई 7.0 मिलीमीटर तथा मोटाई 2.1 मिलीमीटर है जो एक लंबा पतला चावल है. यह बहुत सारे प्रमुख रोगों तथा कीट पतंगों लीफ स्पॉट, ब्राउन स्पॉट, बैक्टीरियल लीफब्लाइट, स्टेम बोरर, लीफ फोल्डर, ब्राउन प्लांट हापर, गालमिज आदि का प्रतिरोध करने में भी सक्षम है. इसका बीज अगले वर्ष खरीफ-2024 में उपलब्ध हो जाएगा.