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मेरठ: चुनाव परिणाम भले ही उप चुनाव के हो, लेकिन परिणाम भी इसके दूरगामी होंगे। सपा के बड़े मुस्लिम चेहरे आजम खां के राजनीतिक किले को भाजपा ने अवश्य ही ध्वस्त कर पीठ थपथपा ली हो, मगर भाजपा के लिए पश्चिमी यूपी में मुश्किलें खड़ी हो गई हैं। आजम खान को हराना भाजपा को सुकून दे सकता हैं, लेकिन उप चुनाव के निहितार्थ क्या होंगे? इसको लेकर भाजपा में ये परिणाम बैचेनी पैदा करने वाले हैं। मुजफ्फरनगर के खतौली में सपा-रालोद गठबंधन ने जो चुनावी फार्मूला अपनाया है, वो फार्मूला 2024 के लोकसभा चुनाव में भी अपना लिया तो भाजपा के लिये मुश्किल खड़ा होना लाजिमी हैं। खतौली विधानसभा के उप चुनाव में सपा-रालोद गठबंधन ने गुर्जर जाति के मदन भैय्या को चुनाव मैदान में उतारा। गुर्जर मतदाता भाजपा का वोट बैंक हैं, लेकिन एक रणनीति के तहत रालोद ने भाजपा के गुर्जर वोट बैंक में सेंध लगाई। जाटों को जयंत चौधरी ने खुद संभाला तथा डोर-टू-डोर घूमे तथा जाटों को साधने में कामयाब भी रहे।
फिर रही बात मुस्लिमों की तो मुस्लिम वर्ग के लोग भाजपा के खिलाफ मतदाधिकार का प्रयोग कर रहे हैं। इस तरह से तीन जातियों का एक साथ गठजोड़ हुआ। यही नहीं, चौथे दलित भी चन्द्रशेखर उर्फ रावण की एंट्री के चलते रालोद को मिले। उप चुनाव के परिणाम आने से सपा-रालोद के कार्यकर्ताओं का भी मनोबल बढ़ा हैं। वैसे उप चुनाव में पहले भी सपा-रालोद गठबंधन जीत दर्ज कर चुका हैं, लेकिन 2019 में भाजपा ने फिर से बड़ी सफलता हासिल कर सबको चौका दिया था। भाजपा नेता भी अति उत्साह में थे। उप चुनाव के परिणाम जो सामने है, उससे भाजपा को झटका लगा हैं। सपा-रालोद ने जो जातियों का गठजोड़ तैयार करने की रणनीति पर काम चल रहा हैं, वो भाजपा के लिए चिंता का विषय हैं। इस पर भाजपा को काम करना होगा। पूर्व प्रधानमंत्री स्व. चौधरी चरण सिंह की राजनीति भी मुस्लिम, जाट, यादव और गुर्जरों पर टिकी हुई थी। ये बिरादरी ऐसी हैं, जिसको चौधरी चरण सिंह ने अपने झंडे के नीचे रखा। जब तक ये बिरादरी एकजुट रही, तभी तक चौधरी चरण सिंह भी राजनीति में टॉप पर रहे, लेकिन स्व. चौधरी अजित सिंह के समय में जातियों का यह गठजोड़ टूटा तो चौधरी अजित सिंह को हर कदम पर हार का सामना करना पड़ा था।
लंबे समय से बाद रालोद सुप्रीमो जयंत चौधरी ने जातियों के इसी फार्मुले पर काम किया हैं, जो उप चुनाव में कामयाब रहा। 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए भी रालोद-सपा ने इसी फार्मूले पर काम किया तो भाजपा के लिए मुश्किल पैदा हो जाएगी। इसके लिए भाजपा को भी विशेष रणनीति बनाकर काम करना होगा। पश्चिमी यूपी ही नहीं, बल्कि पूरी यूपी का राजनीतिक परिदृश्य बदल सकता हैं। भाजपा के रणनीतिकार यहीं समझ रहे होंगे कि भाजपा की उपचुनाव में हार की वजह क्या हैं? तीन जातियों के एक प्लेटफॉर्म पर एकत्र होना सपा-रालोद की जीत का रास्ता खोल रही हैं। फिर किसान आंदोलन भी इसकी एक वजह है। किसान भी भाजपा से खफा चल रहे हैं। किसानों की ट्यूबवेल पर बिजली के मीटर लगाये जा रहे हैं, जो किसानों के बीच बड़ा मुद्दा बना हुआ हैं। गन्ना मूल्य घोषित नहीं किया गया। गन्ना सत्र चालू कर दिया, फिर गन्ना भुगतान को लेकर भी विपक्ष के तीर चले हैं।चुनाव परिणाम भले ही उप चुनाव के हो, लेकिन परिणाम भी इसके दूरगामी होंगे। सपा के बड़े मुस्लिम चेहरे आजम खां के राजनीतिक किले को भाजपा ने अवश्य ही ध्वस्त कर पीठ थपथपा ली हो, मगर भाजपा के लिए पश्चिमी यूपी में मुश्किलें खड़ी हो गई हैं। आजम खान को हराना भाजपा को सुकून दे सकता हैं, लेकिन उप चुनाव के निहितार्थ क्या होंगे? इसको लेकर भाजपा में ये परिणाम बैचेनी पैदा करने वाले हैं।
मुजफ्फरनगर के खतौली में सपा-रालोद गठबंधन ने जो चुनावी फार्मूला अपनाया है, वो फार्मूला 2024 के लोकसभा चुनाव में भी अपना लिया तो भाजपा के लिये मुश्किल खड़ा होना लाजिमी हैं। खतौली विधानसभा के उप चुनाव में सपा-रालोद गठबंधन ने गुर्जर जाति के मदन भैय्या को चुनाव मैदान में उतारा। गुर्जर मतदाता भाजपा का वोट बैंक हैं, लेकिन एक रणनीति के तहत रालोद ने भाजपा के गुर्जर वोट बैंक में सेंध लगाई। जाटों को जयंत चौधरी ने खुद संभाला तथा डोर-टू-डोर घूमे तथा जाटों को साधने में कामयाब भी रहे।
फिर रही बात मुस्लिमों की तो मुस्लिम वर्ग के लोग भाजपा के खिलाफ मतदाधिकार का प्रयोग कर रहे हैं। इस तरह से तीन जातियों का एक साथ गठजोड़ हुआ। यही नहीं, चौथे दलित भी चन्द्रशेखर उर्फ रावण की एंट्री के चलते रालोद को मिले। उप चुनाव के परिणाम आने से सपा-रालोद के कार्यकर्ताओं का भी मनोबल बढ़ा हैं। वैसे उप चुनाव में पहले भी सपा-रालोद गठबंधन जीत दर्ज कर चुका हैं, लेकिन 2019 में भाजपा ने फिर से बड़ी सफलता हासिल कर सबको चौका दिया था। भाजपा नेता भी अति उत्साह में थे।
उप चुनाव के परिणाम जो सामने है, उससे भाजपा को झटका लगा हैं। सपा-रालोद ने जो जातियों का गठजोड़ तैयार करने की रणनीति पर काम चल रहा हैं, वो भाजपा के लिए चिंता का विषय हैं। इस पर भाजपा को काम करना होगा। पूर्व प्रधानमंत्री स्व. चौधरी चरण सिंह की राजनीति भी मुस्लिम, जाट, यादव और गुर्जरों पर टिकी हुई थी। ये बिरादरी ऐसी हैं, जिसको चौधरी चरण सिंह ने अपने झंडे के नीचे रखा। जब तक ये बिरादरी एकजुट रही, तभी तक चौधरी चरण सिंह भी राजनीति में टॉप पर रहे, लेकिन स्व. चौधरी अजित सिंह के समय में जातियों का यह गठजोड़ टूटा तो चौधरी अजित सिंह को हर कदम पर हार का सामना करना पड़ा था।
लंबे समय से बाद रालोद सुप्रीमो जयंत चौधरी ने जातियों के इसी फार्मुले पर काम किया हैं, जो उप चुनाव में कामयाब रहा। 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए भी रालोद-सपा ने इसी फार्मूले पर काम किया तो भाजपा के लिए मुश्किल पैदा हो जाएगी। इसके लिए भाजपा को भी विशेष रणनीति बनाकर काम करना होगा। पश्चिमी यूपी ही नहीं, बल्कि पूरी यूपी का राजनीतिक परिदृश्य बदल सकता हैं।
भाजपा के रणनीतिकार यहीं समझ रहे होंगे कि भाजपा की उपचुनाव में हार की वजह क्या हैं? तीन जातियों के एक प्लेटफॉर्म पर एकत्र होना सपा-रालोद की जीत का रास्ता खोल रही हैं। फिर किसान आंदोलन भी इसकी एक वजह है। किसान भी भाजपा से खफा चल रहे हैं। किसानों की ट्यूबवेल पर बिजली के मीटर लगाये जा रहे हैं, जो किसानों के बीच बड़ा मुद्दा बना हुआ हैं। गन्ना मूल्य घोषित नहीं किया गया। गन्ना सत्र चालू कर दिया, फिर गन्ना भुगतान को लेकर भी विपक्ष के तीर चले हैं।