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सपा, बसपा व कांग्रेस नगर निगमों में नहीं जुटा पाईं बहुमत
लखनऊ न्यूज़: निकाय चुनाव में उम्मीदवारों की तस्वीर अब धीरे-धीरे साफ होने लगी है. भाजपा को छोड़ दिया जाए तो सपा और भाजपा जातीय समीकरण को साधते हुए उम्मीदवार उतार रही हैं. पिछले चुनावों में भी कुछ ऐसा ही इन पार्टियों ने किया था, लेकिन शहरी सरकार की कमान पाने में यह समीकरण भी काम नहीं आया.
जाति नहीं योग्यता अहम मेयर का चुनाव सही मायने में देखा जाए तो शुद्ध शहरी होता है. इसीलिए पार्टियां पढ़े-लिखों को टिकट देने में तरजीह देती हैं. वर्ष 2017 के चुनाव में में 37 फीसदी परास्नातक और 31 फीसदी स्नातक उम्मीदवार थे. मेयर के चुनाव में शायद इसीलिए जातीय समीकरण काम नहीं आता है. भाजपा और सपा इसीलिए पढ़े-लिखे उम्मीदवारों को अधिक तरजीह दे रहे हैं.
लोकसभा के लिए फिजा बनाने की कोशिश निकाय चुनाव तो वैसे नवंबर 2022 में प्रस्तावित था, लेकिन आरक्षण की खामियों के चलते अब हो रहा है. निकाय चुनाव के चंद महीनों बाद ही लोकसभा चुनाव की तैयारियां शुरू हो जाएंगी. वर्ष 2024 में लोकसभा चुनाव प्रस्तावित है. यूपी में लोकसभा की कुल 80 सीटें हैं. वर्ष 2019 के चुनाव में सपा को पांच और बसपा को 10 और भाजपा को सबसे अधिक सीटें मिली थीं. इसीलिए अगर कहा जाए कि मेयर का चुनावी परिणाम लोकसभा चुनाव में पार्टियों की फिजा बनाने का काम करेगा तो कोई गलत नहीं होगा.
अयोध्या, आगरा, कानपुर, गाजियाबाद, गोरखपुर, झांसी, प्रयागराज, फिरोजाबाद, बरेली, मथुरा-वृंदावन, मुरादाबाद, लखनऊ, वाराणसी व सहारनपुर जीती
कौन कहां रहा नंबर दो पर
सीट पार्टी वोट
अयोध्या सपा 41041
अलीगढ़ भाजपा 115671
आगरा बसपा 143559
कानपुर कांग्रेस 291591
गाजियाबाद कांग्रेस 119118
गोरखपुर सपा 70215
झांसी बसपा 60709
प्रयागराज सपा 67013
सीट पार्टी वोट:
फिरोजाबाद एआईएमआईएम 56536
बरेली सपा 126343
मथुरा कांग्रेस 90938
मेरठ भाजपा 205235
मुरादाबाद कांग्रेस 73042
लखनऊ सपा 245810
वाराणसी कांग्रेस 113345
सहारनपुर बसपा 119201