उत्तर प्रदेश

छह राज्यों को मिली तीसी की नई वेरायटी

Admin Delhi 1
22 Aug 2023 9:45 AM GMT
छह राज्यों को मिली तीसी की नई वेरायटी
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32 फीसदी निकलता है तेल

भागलपुर: बिहार कृषि विश्वविद्यालय (बीएयू) ने देश के छह राज्यों को तीसी की नई वेरायटी ‘सबौर तीसी-4’ दिया है. करीब 14 वर्षों तक के शोध के बाद इसे तैयार किया गया है. अच्छे उत्पादन सहित कई अन्य विशेष कारणों के बाद केंद्र सरकार की ‘केंद्रीय वेरायटी रिलीज कमेटी’ (सीवीआरसी) ने इसे अनुशंसित किया है. इन छह राज्यों में बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, असम और नागालैंड शामिल हैं.

बीएयू के वैज्ञानिक डॉ. आरबीपी निराला ने बताया कि ‘सबौर तीसी-4’ धान की खेती के बाद 15 अक्टूबर से नवंबर अंत तक लगाया जा सकता है. यह फरवरी और मार्च मध्य तक कट जाता है और इसके बाद मूंग की फसल ली जा सकती है. ऐसे में खेत का उपयोग तो होगा ही. उत्पादन भी अच्छा होगा. तीसी की यह वेरायटी 15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर का उत्पादन दे देती है. जबकि परंपरागत वेरायटी 7-8 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उत्पादन देती है. जहां सिंचाई की सुविधा कम है, वहां के लिए यह वेरायटी उपयुक्त है. इस वेरायटी को तैयार करने के लिए 2007-08 से ‘ऑल इंडिया कॉर्डिनेटेड रिसर्च प्रोजेक्ट ऑन तीसी’ पर काम चल रहा है. तीसी की इस वेरायटी के तेल में ओमेगा-3 में 52 फीसदी तक पाया जाता है. यह हृदय रोग, कैंसर, प्रोस्टेट की बीमारियों से बचने व मस्तिष्क विकास के लिए काफी फायदेमंद है.

32 फीसदी निकलता है तेल

बिहार में करीब आठ हजार हेक्टेयर में तीसी की खेती होती है. इसकी खेती में प्रति हेक्टेयर 20-25 हजार रुपये लागत आती है. इसका बीज सरकारी दर पर करीब 65 रुपये किलो और खाने वाला तीसी बाजार में 80 रुपये किलो मिल जाता है. तीसी से करीब 32 फीसदी तेल निकलता है. बिहार में धान कटने के कुछ दिन पहले इसी खेत में तीसी की दूसरी वेरायटी छींट देते हैं और धान की कटाई कर लेते हैं.

सबौर तीसी-4 नामक नई वेरायटी केन्द्रीय प्रभेद के रूप में उत्तर-पूर्व भारत के छह राज्यों के लिये सीवीआरसी द्वारा निर्गत की गई है. यह प्रभेद सिंचित अवस्था के लिये अनुसंशित है. इस प्रभेद की अधिक उपज क्षमता का लाभ बिहार के अलावा अन्य राज्यों के किसानों को भी मिलेगा. -डॉ. डीआर सिंह, कुलपति, बीएयू

खासियत

● दाना अन्य वेरायटी से बड़ा है.

● इसके फूल का रंग नीला होता है, अन्य का नीला या सफेद होता है.

● इसकी खेती में बीज कम लगता है.

● केंद्रीय स्तर पर हो चुकी है जांच

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