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लखनऊ: टीबी मुक्त भारत की मुहिम में दवाओं का टोटा संकट बन रहा है. शासन से दवाओं की आपूर्ति रोक दी गई है. लोकल स्तर पर दवाओं की खरीद की जा रही है. उसमें भी जिस मरीज को पहले महीना भर की दवाएं दी जाती थीं, उन्हें से दिन की दवाएं देकर विदा किया जा रहा है.
टीबी ग्रसित मरीज को इस बीमारी से मुक्ति नियमित दवा का सेवन करने से ही छह से लेकर नौ माह के बीच मिल जाती है. दवा सेवन में जरा सी लापरवाही या एक-दो दिन का गैप होने से साधारण टीबी का केस बिगड़कर एमडीआर (मल्टी ड्रग रजिस्टेंट) बन जाता है. जिसमें दवाओं की मात्रा के साथ-साथ उपचार का समय बढ़ जाता है. ऐसे में दवाओं का संकट साधारण टीबी वाले मरीजों को एमडीआर टीबी की तरफ भी ढकेल सकता है, जिससे बीमारी का प्रसार अन्य स्वस्थ मरीजों में भी तेजी से होने की पूरी संभावना है. दवा संकट के बादल जल्द न छटे तो तक देश को टीबी मुक्त करने की मुहिम धड़ाम हो जाएगी.
जिला क्षय रोग अधिकारी डॉ.बीपी सिंह ने बताया कि स्टेट से टीबी की दवाओं की आपूर्ति बंद होने की वजह से संकट बढ़ा है.
शासन के आदेश के बाद लोकल स्तर पर दवाओं की खरीद की जा रही है ताकि मरीजों को नियमित रूप से दवा मिलती रहे. सीएमओ के स्तर से दवाएं भी मुहैया कराई गई हैं. महिला-पुरुष अस्पताल के सीएमएस के स्तर भी दवाएं क्रय करके दी जाएंगी. वर्तमान समय में साधारण और एमडीआर टीबी के करीब 750 मरीज है, जिनमें एमडीआर टीबी मरीजों की संख्या 5 है. एमडीआर टीबी के मरीजों की संख्या कम होने की वजह से इनकी दवाएं पर्याप्त मौजूद हैं, लेकिन साधारण टीबी के मरीजों की दवाओं में संकट है. लेकिन किसी भी मरीज को दवाओं से वंचित नहीं रखा गया है.