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मुजफ्फरनगर: श्रीराम दरबार व राम कथा व अपने भजनों के लिए जाने जाने वाले शर्मा बन्धुओं को विविध संगीत के क्षेत्र में योगदान के लिए संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से नवाजा गया। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उन्हें साल 2019 के लिए पुरस्कार दिया गया है। शर्मा बन्धुओं ने को मिले इस पुरस्कार से न केवल जनपद का नाम रोशन हुआ है, बल्कि जनपद को एक नई पहचान मिली है। शर्मा बन्धुओं का भजन ‘सूरज की गर्मी से मिल जाये जलते हुए तन को तरूवर की छाया’ ने देश ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी प्रसिद्धी हासिल की थी।
बृहस्पतिवार को नई दिल्ली स्थित विज्ञान भवन में संगीत अकादमी की ओर से कार्यक्रम आयोजित किया गया। कोरोना संक्रमण के कारण पिछले तीन सालों से पुरस्कार वितरण कार्यक्रम नहीं हुआ था। शर्मा बंधुओं ने अगस्त 1966 से साल 2011 तक शहर के द्वारिकापुरी में श्रीराम दरबार में धार्मिक कार्यक्रमों का संचालन किया। इसके बाद वह मध्य प्रदेश के उज्जैन चले गए।
वर्तमान में स्थानीय स्तर पर श्रीराम दरबार का संचालन उनके पारिवारिक भाई कर रह हैं। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने शुकदेव शर्मा, गोपाल शर्मा, कौशलेंद्र शर्मा और राघवेंद्र शर्मा को सम्मानित किया। बता दें कि शहर के द्वारिकापुरी निवासी रामानंद शर्मा ने संगीत के सफर की शुरूआत की थी। वह महाराष्ट्र के प्रसिद्ध शास्त्रीय गायक वीडी पलुस्कर के शिष्य थे। रामानंद शर्मा ने अपने चारों पुत्रों को संगीत की शिक्षा दी। 20 अगस्त 1966 से रामकथा और भजनों के माध्यम से श्रीराम दरबार की शुरूआत की। यहां लोग उनके भजन सुनने आते थे। 2011 तक वह शहर में रहे और इसके बाद उज्जैन चले गए।
शर्मा बंधुओं के प्रसिद्ध भजन ‘सूरज की गर्मी से जलते हुए तन को मिल जाये तरूवर की छाया’ को 1971 में रिकॉर्ड किया गया था। इस भजन को न केवल देश में पसंद किया गया, बल्कि विदेशों में भी इस भजन को खूब पसंद किया जाता है। जब भी शर्मा बन्धुओं की बात होती है, तो उनके इस भजन को भी जरूर याद किया जाता है। कोरोना काल में भी शर्मा बन्धुओं ने ‘विश्वास ने छोड़िये ना, ये आस छोड़िया ना, जीतेंगे डरो नहीं, हारेगा कोरोना’ गाया था, जिसे खूब पसंद किया गया था।