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रिपोर्ट- हिमांशु शर्मा
शामली, यूपी: महाभारत काल में पानीपत की लड़ाई में जाते वक्त जिस स्थान पर रात्रि में विश्राम किया था उनका नाम करणनगरी पर गया था। जिसे आज कैराना के नाम से जाना जाता है। सालों से चल रही यह परंपरा देखनी हो तो कभी कैराना आइए। शामली जनपद के मुख्यालय से महज 12 किलोमीटर दूरी पर स्थित करण की इस नगरी को दोनों संप्रदाय के लोगों ने देश भर में अनोखी मिसाल कायम कर दिखा रहे है। कैराना की सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल पूरे देश में देखने लायक है हिंदू परंपरा के अनुसार श्री रामलीला महोत्सव पर शहर में शुरू हो चुका है लेकिन इसके बीच निकाले जाने वाले काल का जुलूस की परंपरा अभी कहीं देखने को नहीं मिलती है।
कैराना देश में एकमात्र ऐसा शहर है जहां पर आज भी यह परंपरा जारी है खास बात यह है कि काल के इस जुलूस में मुस्लिम बढ़-चढ़कर भाग लेते हैं और जुलूस निकालते हैं यही नहीं जहां तक होता है वहां तक सहयोग भी प्रदान करते हैं कैराना में रामलीला मंच का आयोजन कई सालों से किया जाता है उससे पहले यहां एक व्यक्ति को काले रंग से रंगकर काल बनाया जाता है उसके हाथों में एक लकड़ी की तलवार भी बना कर दी जाती है जब उसका श्रृंगार हो जाता है तब वह व्यक्ति काली माता के मंदिर में जाता है और काली माता की पूजा करने के बाद काल नगर में निकल पड़ता है।
भागता दौड़ता रहता है और लोगों को लकड़ी की तलवार से मारता भी है इस प्रथा को लोग भगवान का प्रसाद समझते हैं काले कपड़े करवाने के बाद भी उनको पैसे दिए जाते हैं। वहीं कुछ लोगों का मानना है कि रामायण काल में लंका के राजा रावण ने अपनी शक्ति के बल पर काल को बंदी बना लिया था क्योंकि रावण को घमंड था जब यह काल उसका बंदी है तो उसका कोई भी कुछ नहीं बिगाड़ सकता उसी परंपरा के आधार पर रामलीला के शुरू में ही काल को निकाला जाता है जिसे बाद में रावण द्वारा बंदी बना लिया जाता है और जब भगवान श्री राम लंका पर चढ़ाई कर रावण से युद्ध करते हैं तब रावण के विनाश के लिए काल को मुक्त भी कराया गया था।
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