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मेरठ जनपद में 300 से ज्यादा फर्जी विद्यालयों पर कसेगा शिकंजा
मेरठ न्यूज़: शिक्षा माफियाओं ने पूरे जनपद में अपना नेटवर्क फैला रखा है। इसका ही नतीजा है कि जनपद में सैकड़ों की संख्या में फर्जी विद्यालय चल रहे हैं। जिनकी कोई मान्यता नहीं है। इन स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों का भविष्य भी अंधकार में है। ऐसे स्कूलों पर शिकंजा कसने के लिए शासन ने कमर कस ली है और शिक्षा विभाग के अधिकारियों को बिना मान्यता के चल रहे स्कूलों को चिहिन्त करने के आदेश भी जारी किए हैं। जांच के लिए शिक्षा विभाग की ओर से टीम गठित करने की कवायद चल रही है। टीम जनपद में चल रहे बिना मान्यता प्राप्त विद्यालयों की जांच कर उनके कागज चैक करेगी। ताकि स्कूलों का फर्जीवाड़ा सामने आ सके। विभागीय सूत्रों का कहना है कि जनपद में करीब 300 विद्यालय ऐसे है जो अवैध रुप से संचालित किए जा रहे हैं।
गली मोहल्लों में चल रहे बगैर मान्यता वाले स्कूल: बच्चों के साथ गली मोहल्लों में चल रहे स्कूलों में शिक्षा के नाम पर मजाक किया जा रहा है। क्योंकि शिक्षा विभाग के अधिकारियों की माने तो शहर समेत देहात में भी सैकड़ों की संख्या में बगैर मान्यता प्राप्त स्कूलों को कक्षा एक से आठ तक संचालित किया जा रहा है। उसके बाद विद्यार्थी किसी अन्य स्कूल से प्रवेश दिखाकर बोर्ड परीक्षा में शामिल करा दिया जाता है। जिला विद्यालय निरीक्षक राजेश कुमार का कहना है कि जिले में चल रहे फर्जी विद्यालयों की गत वर्ष भी जांच कराई गई थी, शासन की ओर से जारी किए गए निर्देश अभी प्राप्त नहीं हुए है। यदि ऐसा है तो जांच की जाएगी।
बेखौफ मलाई काट रहे विद्यालय प्रबंधक: बिना मान्यता शिक्षा की दुकान चलाने वालों का धंधा चमकाने में बेसिक शिक्षा विभाग के अधिकारियों ने भरपूर साथ दिया है। फर्जी स्कूलों पर लगाम लगाने की उम्मीद जगी थी, लेकिन अधिकारियों की खामोशी से फर्जी विद्यालय संचालक मस्त हैं। ऐसे में नौनिहालों का भविष्य अंधकार में धकेल चुके अभिभावक भी अब विद्यालय की मान्यता को लेकर परेशान हैं। वहीं अब कार्रवाई की चिंता से मुक्त विद्यालय प्रबंधक आराम से मलाई काट रहे हैं।
शिक्षा नहीं, लूट का कारोबार: शिक्षा नहीं, लूट का कारोबार बनते जा रहे स्कूलों को नजरअंदाज किए जाने से प्रशासन की छवि पर गहरा असर देखा जा रहा है। पलेरा क्षेत्र में अवैध तरीके से आवासीय विद्यालयों का संचालन किए जाने से शासकीय स्कूलों की छात्र संख्या पर जहां असर पड़ रहा है। वहीं बेहतर शिक्षा का प्रलोभन देकर बच्चों का प्रवेश करने वाले इन संस्थान के संचालकों द्वारा बच्चों के अभिभावकों की जेबों पर डांका डाला जा रहा है। हजारों रुपये वसूलने वाली इन संस्थाओं को आवासीय बताकर स्कूल प्रबंधन मोटी रकम वसूलने में जुटी है। जबकि वास्तविकता यह है कि आवासीय विद्यालयों का संचालन करने के अधिकार किसी के पास नहीं है। लोगों में शिक्षा को लेकर जबरदस्त भूख है, लेकिन सरकार नए स्कूल खोलने में विफल है। न ही प्राइवेट स्कूल लाखों बच्चों के लिए शिक्षा मुहैया करा खोल पा रहे हैं।