उत्तर प्रदेश

सरोज कुमार पाण्डेय जन सरोकार के कवि: Kaushal Kishore

Gulabi Jagat
7 Oct 2024 10:26 AM GMT
सरोज कुमार पाण्डेय जन सरोकार के कवि: Kaushal Kishore
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Deoria देवरिया। जनपदीय काव्य-संस्कृति की समृद्ध परंपरा रही है। भले ही साहित्य महानगरीय हो गया हो या होता जा रहा हो, इसके बावजूद आज भी कविता में लोक और कस्बाई व नागरीय जीवन, उसकी अनुभूतियां तथा संघर्ष व्यक्त हो रहा है। इसे हम सरोज कुमार पांडे के हिंदी और भोजपुरी में लिखे गीतों और कविताओं में बखूबी देख सकते हैं। ये जन सरोकार के कवि हैं। इनकी कविता में लोकधर्मिता है। इसमें व्यवस्था को लेकर तंज मिलता है।
यह विचार लखनऊ से आए वरिष्ठ कवि तथा 'रेवान्त' के प्रधान संपादक कौशल किशोर ने सरोज कुमार पांडेय की कविताओं पर बतौर मुख्य अतिथि टिप्पणी करते हुए व्यक्त किए। 5 अक्टूबर को पांडेय जी का 68 वां जन्मदिवस था। नागरी प्रचारिणी सभा, देवरिया में उपस्थित साहित्यकारों ने उन्हें फूलों की माला पहनाकर अपनी शुभकामनाएं दी। कार्यक्रम का आयोजन जन संस्कृति मंच, देवरिया के संयोजक उद्भव मिश्र की पहल पर 'कौशल किशोर से मिलिए' के तहत किया गया। कौशल किशोर ने पांडेय जी को अपनी नई काव्य कृति 'समकाल की आवाज चयनित कविताएं' जन्मदिन के तोहफे के रूप में भेंट की।
इस मौके पर कौशल किशोर ने करीब आधा दर्जन कविताओं का पाठ किया। 'कविता' शीर्षक कविता में वह कहते हैं - 'कविता के लिए /मैं कहीं नहीं जाता /कोई विशेष उपक्रम भी नहीं करता /योजना भी नहीं होती/ जहां और जिनके बीच होता हूं /कविता वहीं होती है'। इसके साथ 'बलियाटिक - एक और दो', 'औकात', 'अम्मा का कोना' कविताएं सुनाईं। उनकी कविता 'वक्त कविता के हमलावर होने का है' लोकतंत्र के क्षरण व प्रतिरोध का आख्यान रचती है कि लोकशाही तानाशाही में और जनतंत्र जोरतंत्र में बदल चुका है। प्रतिरोध ही इसका जवाब हो सकता है। यह भाव कविता में कुछ यूं व्यक्त होता है- 'यह कवि का ही कहना है कि/तोप चाहे जितनी मजबूत हो/ एक न एक दिन उसका मुंह बंद होता ही है/आज भी अगर कुछ करना है/ तो तोप का मुंह तानाशाहों की ओर करना है/वक्त कविता के हमलावर होने का है'।
सरोज कुमार पांडे ने दो गीत सुनाए जिनमें एक भोजपुरी गीत था। इसमें वह कहते हैं 'गाय बिकाइल, बैल बिकाइल गदहा के सम्मान में/.... रहल सहल सगरो बिक जाइ बाड़े कउन गुमान में/ का देखले रामचनर नऊका इ हिंदुस्तान में...'। उद्भव मिश्र ने भी दो छोटी कविताओं का पाठ किया। अपनी एक कविता में वे श्रम की हो रही उपेक्षा को अपनी कविता में कुछ यूं दर्ज करते हैं 'पत्थर पर नाम खुदा है/उद्घाटन कर्ता नेता का/ठेकेदार और अभियंता का/ जब कभी इतिहास लिखा जाएगा/ उद्घाटनकर्ता को याद किया जाएगा/... उनका नाम कहां लिखा जाएगा/ जिनका पसीना गारे में घुला है/ जिनके हुनरमंद हाथों ने रखा है एक-एक ईंट'। ईश्वर चंद्र दीक्षित ने भी एक नवगीत सुनाया जिसका बोल था 'सांझ हुई दीपक जलाने कोई आएगा'।
सभी के प्रति आभार व्यक्त किया चक्रपाणि ओझा ने। इस अवसर पर कवि सतीश भास्कर, बृजेश पांडेय, ऋषिकेश मिश्रा, पूर्व सभासद सुभाष राय, सुधाकर त्रिपाठी अरविंद अग्रवाल, बृजेंद्र मिश्रा समेत अनेक साहित्यकार कविगण उपस्थित रहे।
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