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उत्तर प्रदेश
ब्रज के प्रमुख मंदिरों में सांझी की मची है धूम, रसखान समाधि पर शुरू हुआ आठ दिवसीय सांझी महोत्सव
Shantanu Roy
18 Sep 2022 6:12 PM GMT
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बड़ी खबर
मथुरा। 10 सितम्बर से श्राद्ध पक्ष शुरू होते ही मथुरा ब्रज के मंदिरों एवं स्कूलों सहित अन्य जगह सांझी महोत्सव मनाया जा रहा है। यहां मंदिरों में शाम के समय रंगबिरंगे फूलों से सांझी सजाई जा रही है, जिसमें श्रीराधाकृष्ण की लीलाओं का समावेश कर उन्हें पानी में जीवंत रूप प्रदान किया जा रहा है। इस कलाओं को देखने के लिए रविवार शाम को महावन स्थित रसखान समाधि पर सांझी महोत्सव की शुरूआत हो चुकी है, यह महोत्सव 25 सितम्बर तक जारी रहेगा। यह बात उप्र ब्रज तीर्थ विकास परिषद के डिप्टी सीईओ पंकज वर्मा ने बताई है।
गौरतलब हो कि बदलते समय में विलुप्त होती इस सांझी कला को ब्रज के मंदिर आज भी जीवंत रखे हुए है। सांझी अर्थात् शाम (सांझ) ब्रज की अधिष्ठात्रि राधारानी और भगवान कृष्ण का शाम को मिलन लीला को प्रदर्शित करने का स्वरूप है। द्वापर युग से चली आ रही यह अनूठी परंपरा समय अन्तराल के साथ विलुप्त होने के कगार पर है। फिर भी पिछले 500 वर्षों से नगर के मंदिरों में इस कला को संरक्षित करने का कार्य निरंतर जारी है। जिनमें ठा. राधाबल्लभ मंदिर, राधारमण मंदिर, भट्टजी मंदिर, शाहजहांपुर मंदिर में तो सांझी महोत्सव की धूम देखते ही बनती है। इन मंदिरों में श्राद्ध पक्ष के प्रतिदिन नए-नए तरीके की सांझी बनाई जा रही है।
उप्र ब्रज तीर्थ विकास परिषद के डिप्टी सीईओ पंकज वर्मा ने बताया कि श्राद्ध पक्ष में जब कोई उत्सव नहीं होते, तब ब्रज में सांझी उत्सव मनाया जाता है। शहरी इलाकों में रंग व फूल, जल की सांझी बनाई जाती है। वहीं ग्रामीण अंचलों में गोबर से सांझी बनाकर महोत्सव मनाया जाता है। ब्रज के मंदिरों, कुंज और आश्रमों में मिट्टी के ऊंचे अठपहलू धरातल पर रखकर छोटी-छोटी पोटलियों में सूखे रंग भर कर इस कला का चित्रण किया जाता है, जिसे सांझी कला कहते है। इसके तहत भगवान श्रीकृष्ण के भक्त रसखान की समाधि पर आज से 8 दिवसीय सांझी महोत्सव की शुरुआत हो गई है, जो 25 सितम्बर तक चलेगा।
उप्र तीर्थ विकास परिषद द्वारा श्रीकृष्णभक्त रसखान एवं ताजबीबी उपवन महावन में रविवार पहली बार आयोजित किया गया है। रविवार राजकीय संग्रहालय, मथुरा और ब्रज संस्कृति शोध संस्थान के सहयोग से विभिन्न प्रकार की जल सांझी, फूलों की सांझी, गोबर सांझी, केले के पत्तों की सांझी, कैनवास सांझी और रंगों की सांझी का प्रदर्शन किया गया। वहीं शाम को भजन संध्या का आयोजन किया गया। इसके अलावा महोत्सव में अगले सात दिनों में सांझी सेमिनार और सांझी प्रतियोगिता भी आयोजित की जाएगी। सांझी कला के साथ-साथ श्रद्धालुओं के मन को मोहित करने और ब्रज की संस्कृति के बारे में अवगत कराने के लिए रोजाना सायं 4 बजे से रात्रि 7 बजे तक भजन संध्या, सांझी समाज गायन, बनी-ठनी नाट्य रूपक, बेणी गूंथन रासलीला, लावनी लोकगीत, रसिया, ब्रज भाषा कवि सम्मेलन, लोक नृत्य और जिकड़ी भजन आदि सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे। इस आयोजन की ख़ास बात यह है कि इस महोत्सव में ब्रज के कलाकार ही प्रतिभाग कर रहे हैं।
राधाबल्लभ मंदिर के सेवायत मोहित मराल गोस्वामी ने बताया कि सांझी की शुरुआत स्वयं राधारानी द्वारा की गई थी। सर्वप्रथम भगवान कृष्ण के साथ वन में राधारानी ने ही अपनी सहचरियों के साथ सांझी बनायी थी। तभी से ब्रजवासी इस परंपरा का अनुसरण कर रहे हैं और राधाकृष्ण को रिझाने के लिए अपने घर के आंगन में सांझी बना रहे हैं। भट्टजी मंदिर के सेवायत में सांझी विशेषज्ञ विभूकृष्ण भट्ट ने बताया कि मंदिर में श्राद्ध पक्ष में बनाई जा रही सांझी में ज्यामितीय कला तथा अलंकारिक बेल-बूटों का संयोजन किया जाता है। साथ ही फूलों की सांझी, रंगों की सांझी, गाय के गोबर की सांझी, पानी पर तैरती सांझी आदि प्रतिदिन बनाई जाएगी। इन सांझियों में भगवान श्रीराधाकृष्ण की लीलाओं का मनमोहक दर्शन भक्तों को मिलता है। राधारमण मंदिर के सेवायत सुमित गोस्वामी ने बताया कि सांझी ब्रज की पारंपरिक कला है। ब्रजक्षेत्र से जुड़ी पांडुलिपियों में सांझी के अंदर 15 दिन तक विभिन्न आकृतियां गोबर से बनाई जाती हैं। प्रियाबल्लभ मंदिर के सेवायत रसिकबल्लभ नागार्च ने बताया कि सांझी की पूजा शाम को होती है और मंदिरों के पट बंद होने के बाद सांझी का विसर्जन कर दिया जाता है।
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