उत्तर प्रदेश

शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती महाराज के निधन से काशी के संत मर्माहत

Shantanu Roy
11 Sep 2022 6:13 PM GMT
शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती महाराज के निधन से काशी के संत मर्माहत
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वाराणसी। श्री द्वारका शारदा पीठ व ज्योतिर्मठ पीठ के जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के गोलोकवासी होने से काशी के संत मर्माहत हैं। रविवार शाम ऊर्ध्वाम्नाय श्री काशी सुमेरु पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी नरेन्द्रानन्द सरस्वती की अध्यक्षता में अस्सी डुमरावबाग स्थित पीठ के सभागार में आयोजित शोकसभा में संतों ने शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के चित्र पर श्रद्धासुमन अर्पित किया। शोक सभा में स्वामी नरेन्द्रानन्द सरस्वती ने कहा कि शंकराचार्य महाराजश्री का गोलोकवासी होना सनातन धर्म, संस्कृति की अपूरणीय क्षति है। महाराज श्री के जाने से रिक्तता आई है। उसकी पूर्ति बहुत सरल नहीं है। भगवान महाराज श्री को सायुज्य सामिप्य प्रदान करें। उनके शिष्यों एवं भक्तों को इस असहनीय कष्ट को सहन करने की शक्ति प्रदान करें। सभा में स्वामी अखण्डानन्द तीर्थ महाराज, स्वामी दुर्गेशानन्द तीर्थ, स्वामी बृजभूषणानन्द सरस्वती, सहित उपस्थित अन्य सन्यासियों ने भी द्वारिका शारदा पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य महाराज को अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की।
-कांग्रेस के नेताओं ने भी जताया शोक
श्री द्वारका शारदा पीठ व ज्योतिर्मठ पीठ के जगद्गुरु शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती महाराज के निधन से कांग्रेस के स्थानीय नेता भी शोकाकुल है। पार्टी के स्थानीय वरिष्ठ कांग्रेस नेता और प्रदेश के पूर्व मंत्री अजय राय ने कहा कि परम पूज्य जदगुरू शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महाराज का निधन सनातन धर्म की अपूरणीय क्षति है। मैं ईश्वर से प्रार्थना करता हूं कि उनकी पवित्र आत्मा को अपने श्रीचरणों में स्थान दे। स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती करोड़ों सनातन हिन्दुओं की आस्था के ज्योति स्तंभ थे। जगद्गुरु शंकराचार्य स्वयं में ज्ञान के भंडार और तपस्वी थे। सही मायने में अंधियारे में प्रकाश की लौ थे। उन्होंने नौ वर्ष की उम्र में घर छोड़ कर धर्म यात्रायें प्रारम्भ कर दी थीं। इस दौरान वह काशी पहुंचे और यहां उन्होंने ब्रह्मलीन परमपूज्य श्री स्वामी करपात्री जी महाराज से वेदं-वेदांग और शास्त्रों की शिक्षा ली। यह वह समय था जब भारत को अंग्रेजों से मुक्त करवाने की लड़ाई चल रही थी। उस वक्त में स्वतंत्रता की लड़ाई में स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती दो बार जेल यात्रा किये। उनकी पूरी जीवनी एक प्रेरणाप्रद है।
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