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डीजीपी के चयन के लिए पैनल भेजने से पहले पुराने डीजीपी को हटाने की वजह
संघ लोक सेवा आयोग ने उत्तर प्रदेश में स्थाई डीजीपी के चयन के लिए पैनल भेजने से पहले पुराने डीजीपी को हटाने की वजह पूछी है। यूपीएससी द्वारा मांगी गई जानकारी के चलते आयोग की बैठक भी फिलहाल होती नजर नहीं आ रही है। प्रदेश सरकार ने अकर्मण्यता का आरोप लगाते हुए डीजीपी मुकुल गोयल को 11 मई, 2022 को पद से हटा दिया था।
इस महीने की शुरुआत में डीजीपी के चयन के लिए उत्तर प्रदेश सरकार ने यूपीएससी को नाम भेजे थे। उन नामों में से पैनल बनाने से पहले आयोग ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के तहत डीजीपी का कार्यकाल 2 साल का होना चाहिए। इससे पहले अगर भ्रष्टाचार, अपराधिक मामलों में सजा, भारतीय सेवा नियमों के उल्लंघन का मामला साबित होने पर ही किसी को डीजीपी पद से हटाया जा सकता है। आयोग ने पूछा है कि मुकुल गोयल के खिलाफ क्या ऐसा कोई मामला था? यदि था तो उसके दस्तावेज आयोग को उपलब्ध कराए जाएं।
सरकारें क्यों चाहती है मनमाफिक डीजीपी की नियुक्ति
राज्यों के टॉप पुलिस अफसर यानी डीजीपी की नियुक्ति कैसे और किस आधार पर की जाए, इस बारे में सुप्रीमकोर्ट की स्पष्ट गाइडलाइंस हैं। लेकिन बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि अदालतों के तमाम अन्य आदेशों और निर्देशों की तरह डीजीपी की नियुक्ति का भी निर्देश राज्य सरकारों द्वारा अपने हित में मनमानीपूर्ण तरीके से तोड़ा मरोड़ा जा रहा है। वजह साफ है : सरकारें यह नहीं चाहतीं कि उनकी कठपुतली के अलावा पुलिस विभाग का मुखिया कोई और बन सके। जब सत्तारूढ़ पार्टी और उसकी सरकार की मंशा पुलिस को अपनी जेब में रखने की हो तो उसके सामने पुलिस सुधारों यानी पुलिस को नेताओं के चंगुल से मुक्त कराने के लिए लंबी जद्दोजहद और इस बारे में शीर्ष अदालत के स्पष्ट निर्देशों की क्या कोई बिसात है? जवाब आप अपने आप से पूछिये।
राज्यों का खेल
सुप्रीमकोर्ट के आदेश को बाईपास करने के लिए कई राज्यों ने अपने बनाये कानूनी और कार्यकारी आदेशों का सहारा लिया है। राज्यों का बहाना रहा है कि 'पुलिस' और 'सार्वजनिक व्यवस्था' राज्य के विषय हैं, इसलिए डीजीपी की नियुक्ति विशेष रूप से राज्य के क्षेत्र में होनी चाहिए। राज्यों ने अपने बनाये कानूनों या कार्यकारी आदेशों के जरिये राज्य कैडर के वरिष्ठ आईपीएस अधिकारियों का एक पैनल बनाने के लिए अपनी खुद की कमेटियां बना लीं और यूपीएससी की बजाय इन्हीं कमेटियों से डीजीपी चुनने लगे। सुप्रीम कोर्ट को 2018 में बताया गया था कि 29 राज्यों में से केवल पांच राज्यों - कर्नाटक, तमिलनाडु, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और राजस्थान ने इम्पेनेलमेंट के लिए यूपीएससी से संपर्क किया था।
डीजीपी के सिलेक्शन पर सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइंस इस प्रकार हैं
- संबंधित राज्य सरकारों को मौजूदा डीजीपी के सेवानिवृत्त होने से तीन महीने पहले यूपीएससी को संभावितों के नाम भेजने होंगे।
- यूपीएससी, डीजीपी बनने के लिए उपयुक्त तीन अधिकारियों का एक पैनल तैयार करेगा और उसे सरकार को वापस भेजेगा।
- यूपीएससी, जहां तक संभव हो, उन लोगों का चयन करेगा, जिनकी स्पष्ट रूप से दो साल की नौकरी बाकी है। आयोग को कैंडिडेट की योग्यता और वरिष्ठता को उचित महत्व देना चाहिए।
- यूपीएससी द्वारा चुने गए व्यक्तियों में से एक को राज्य "तुरंत" नियुक्त करेगा।
- राज्यों द्वारा "कार्यवाहक डीजीपी" नियुक्त करने की प्रथा पर रोक लगाने के उद्देश्य से शीर्ष अदालत ने एक्टिंग या अस्थायी डीजीपी की नियुक्ति के विचार को खारिज किया है। अर्थात राज्य किसी की स्थायी डीजीपी के रूप में ही नियुक्त करेंगे।
- अदालत का यह भी फैसला है कि पुलिस अधिकारियों की नियुक्ति के विषय पर किसी भी अन्य नियम या राज्य के कानून को निलंबित रखा जाएगा। जिन राज्यों ने पुलिस नियुक्तियों पर अपना अलग कानून बनाया है, अदालत का रुख कर सकते हैं।
कौन बन सकता है डीजीपी
डीजीपी बनने के लिए एक अधिकारी को 30 साल की सेवा पूरी करनी होगी। इसके अलावा वरिष्ठता के क्रम में प्रत्येक अधिकारी का रिकॉर्ड चेक किया जाता है। यह देखा जाता है कि क्या संबंधित अधिकारी ने कोई अपराध किया है और यदि हां, तो किस वर्ष में उसे आरोप पत्र दिया गया था, और दंड दिया गया था। क्या उसने कहीं भी दंड के खिलाफ अपील दायर की है और यदि अपील की है, तो क्या उसे स्टे मिला है? यह सब जानकारी आयोग को भेजी जाती है जो फिर बैठक की तारीख तय करती है और फिर निर्णय लिया जाता है। वरिष्ठता एवं अभिलेख के अनुसार प्रथम तीन नामों का चयन कर राज्य को भेजा जाता है।
प्रकाश सिंह का केस
रिटायर्ड आईपीएस अधिकारी प्रकाश सिंह ने 1996 में सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दाखिल करके पुलिस विभाग में सुधार की मांग की थी। याचिका पर दस साल के बाद 2006 में, सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया और पुलिस सुधार लाने के उद्देश्य से 7 निर्देश दिए। अदालत ने माना कि राजनीतिकरण, जवाबदेही तंत्र की कमी और प्रणालीगत कमजोरियों की गहरी जड़ें हैं जिसके परिणामस्वरूप पुलिस का प्रदर्शन बदतर हुआ है और पुलिस के प्रति सार्वजनिक असंतोष को बढ़ावा मिला है।
न्यूज़ क्रेडिट: newstrack