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मेरठ: प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जीरो टॉलरेंस नीति पर कार्य करने की हिदायत दे रखी है, लेकिन जीरो टोलरेंस पर सरकारी अधिकारी काम नहीं कर रहे हैं। नगर निगम में सड़क घोटाला सामने आ चुका है, जिसको लेकर इंजीनियरिंग विभाग शर्मसार है। इस तरह के मामले सामने आने के बाद भी सबक नहीं लिया जा रहा है। पीडब्ल्यूडी विभाग में भी टेंडर प्रक्रिया कहने को आॅनलाइन है, लेकिन घालमेल उसमें भी किया जा रहा है।
टेंडरों में ठेकेदार अपने ही एक ही ठेकेदार ने तीन अलग-अलग कंपनी के टेंडर अपने पक्ष में लगाकर टेंडर प्रक्रिया को मैनेज करने की दिशा में काम आरंभ कर दिया। यदि किसी ने भी गलती से चौथा टेंडर लगा दिया तो चार टेंडर होने पर कंपटीशन हो जाता है। ऐसे में पीडब्ल्यूडी के अधिकारी अपने ही विभाग के इंजीनियरों को टेंडर लगाने वाले ठेकेदारों से बातचीत कर टेंडर प्रक्रिया से आउट करा लेते हैं,
जिसके बाद मनमाफिक टेंडर ठेकेदार को मिल जाता है। कुछ इसी तरह का घालमेल पीडब्ल्यूडी विभाग में चल रहा है, जिसको लेकर कोई भी ध्यान नहीं दे रहा है। पीडब्ल्यूडी के टेंडरों को लेकर भाजपा विधायकों ने भी आपत्ति व्यक्त की है, लेकिन यहां भाजपा विधायकों को भी यह कहकर संतुष्ट कर दिया जाता है कि अब टेंडर प्रक्रिया आॅनलाइन हो गई है, इसमें किसी तरह का घालमेल नहीं हो सकता।
नहीं किसी ठेकेदार को ओबलाइज किया जा सकता, जबकि वास्तविकता इससे परे हैं। पीडब्ल्यूडी के अधिकारी आॅनलाइन भी जिस ठेकेदार को चाहते हैं उसी को टेंडर कराने में कामयाब हो जाते हैं, ये घालमेल किस स्तर पर किया जाता हैं, कहां पर खेल होता हैं? यह कहना मुश्किल हैं, लेकिन जो ठेकेदार चाहते हैं, वहीं रिजल्ट मिल जाता हैं। यही वजह है कि टेंडर प्रक्रिया आॅनलाइन भी हो जाती है
और अधिकारियों के चेहते ठेकेदार को काम भी मिल जाता है। अब यही खेल आॅनलाइन प्रक्रिया जब से हुई है, तभी से चल रहा है। इसको लेकर पिछले दिनों आपत्ति भी व्यक्त की गई थी, लेकिन पूरे मामले को दबा लिया गया था। ताकि मीडिया में यह मामला सुर्खियां नहीं बन सके।
एमडीए में भी हो रहा 'खेल'
मेरठ विकास प्राधिकरण (एमडीए) में भी हाल ही में टेंडर प्रक्रिया गंगानगर से संबंधित कुछ हुई है, जिसमें एक ही ठेकेदार ने अलग-अलग कंपनियों के नाम से तीन टेंडर डाले हैं। ये आठ-आठ लाख के दो टेंडर थे, जिसमें मेरठ विकास प्राधिकरण के इंजीनियरों ने सेटिंग का खेल खेला और एक ही कंपनी से तीन टेंडर लगवा दिये। जब इनसे बाहर के एक ठेकेदार ने टेंडर डाल दिया, जिसके बाद टेंडर में कंपटीशन हो गया। इसके बाद सेटिंग बिगड़ गई।
अब खेल यह हुआ कि चौथे ठेकेदार को मैनेज करने के लिए दबाव बनाया गया कि टेंडर प्रक्रिया से खुद को वापस कर ले, लेकिन इस ठेकेदार ने नाम वापस लेने से मना कर दिया। फिर इसमें आरंभ हुआ भ्रष्टाचार। ठेकेदार को कुछ पैसे लेकर मुंह बंद करने के लिए कहा गया। अब इसमें बड़ा घालमेल चल रहा है। चौथे ठेकेदार से टेंडर वापस लेने की बात प्राधिकरण के इंजीनियर कर रहे हैं, ताकि उनके मनमाफिक ठेकेदार को काम मिल सके और उसमें खूब घालमेल किया जा सके।
कुछ वैसा ही खेल प्राधिकरण के इंजीनियर भी कर रहे हैं। अब यह मामला मीडिया तक पहुंचा है तो प्राधिकरण उपाध्यक्ष अभिषेक पांडेय भी इसको लेकर इंजीनियरों से जवाब तलब कर सकते हैं। क्योंकि प्राधिकरण उपाध्यक्ष अभिषेक पांडेय जीरो टॉलरेंस नीति पर काम कर रहे हैं, जिसके चलते प्राधिकरण के इंजीनियर घबरा तो रहे हैं, लेकिन गुपचुप तरीके से इस तरह के कारनामे कर रहे हैं, जिससे प्राधिकरण की छवि खराब हो रही है। अब देखना यह है कि इस मामले में प्राधिकरण उपाध्यक्ष क्या कार्रवाई करते हैं?