उत्तर प्रदेश

सजा दें-सिला दें, बना दें-मिटा दें, मगर वो कोई फैसला तो सुना दें…कहां और क्यों अटक गई BJP जिलाध्यक्षों की लिस्ट

SANTOSI TANDI
15 Sep 2023 7:17 AM GMT
सजा दें-सिला दें, बना दें-मिटा दें, मगर वो कोई फैसला तो सुना दें…कहां और क्यों अटक गई BJP जिलाध्यक्षों की लिस्ट
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BJP जिलाध्यक्षों की लिस्ट
उत्तर प्रदेश: में घोसी विधानसभा उपचुनाव हारने के बाद एक और मुद्दे ने बीजेपी कार्यकर्ताओं की नींद उड़ा रखी है. विधानसभा के ठीक सामने मौजूद बीजेपी के स्टेट मुख्यालय में अंदर से बाहर तक, गाजियाबाद से गाजीपुर तक और बिजनौर से लेकर बलिया तक एक ही चर्चा है, लिस्ट कब आएगी? खबर है कि संघ, संगठन और सरकार के त्रिकोणीय समीकरण साधने की वजह से लिस्ट लेट हो रही है.
यूपी बीजेपी में पार्टी ज़िलाध्यक्षों की जिस सूची का इंतज़ार सबको है, उसके बारे में हर बार अटक-अटक कर सिर्फ़ ख़बर ही आ रही है, लिस्ट नहीं. चुनावी मैनेजमेंट में सभी राजनीतिक दलों के लिए मिसाल बनने वाली पार्टी आखिरकार देश के सबसे बड़े सूबे में वो तेज़ी और हुनर क्यों नहीं दिखा पा रही? क्यों अब तक ज़िलाध्यक्षों की सूची नहीं जारी हो सकी है? इसका जवाब यूपी बीजेपी के लोग हर रोज़ ज़िले से लेकर लखनऊ तक तलाश रहे हैं.
किसके नाम पर लगी अंतिम मुहर?
बीजेपी ज़िलाध्यक्षों की रेस में किस-किस का नाम है, किसका नाम जुड़ गया, किसका नाम काट दिया गया, किसका नाम फाइनल हो रहा है और किसके नाम पर अंतिम मुहर लग रही है? इन सब सवालों के जवाब हर रोज़ कार्यकर्ता अपने नेताओं से, पत्रकारों से, संघ के लोगों से और सरकार के लोगों से पूछ रहे हैं. लेकिन, जवाब कहीं से नहीं मिल रहा. हर बार ये ख़बर आती है कि लिस्ट आज रात तक आ जाएगी, कल शाम तक आ जाएगी. मगर, पार्टी कार्यकर्ताओं का इंतज़ार बढ़ता जा रहा है.
आते-आते फिर क्यों लटक गई लिस्ट?
प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी की ओर से ज़िलाध्यक्षों की लिस्ट जन्माष्टमी के फौरन बाद यानी 8-9 सितंबर तक जारी होनी थी. सब तरफ़ चर्चा होने लगी कि लिस्ट आ रही है. 9 और 10 सितंबर को पार्टी कार्यकर्ताओं का दिन बड़े नेताओं के यहां ‘परिक्रमा’ करते हुए बीता. लेकिन, लिस्ट तब भी नहीं आई. सूत्रों के हवाले से ख़बर है कि लिस्ट जारी होते-होते रह गई. तो सवाल ये है कि लिस्ट क्यों और किस वजह से रोकी गई?
पार्टी सूत्रों का दावा है कि ज़िलाध्यक्षों की लिस्ट पूरी तरह फाइनल हो गई थी. सिर्फ़ उसे जारी करना था. लेकिन अचानक संघ और संगठन के बड़े नेताओं ने एक बार फिर लिस्ट पर नज़र फेरने की इच्छा जताई. इसके बाद विचार करने को कहा गया. फिर बैठक का दौर चला. इसके बाद लिस्ट लटक गई. ‘अपनों’ को ज़िलाध्यक्ष की कुर्सी पर बिठाने के लिए लंबी रस्साकशी हुई. लेकिन, अब उम्मीद है कि जल्द मंथन का तूफ़ान थमेगा और लिस्ट बाहर आएगी.
35% से ज़्यादा ज़िलाध्यक्ष नहीं बदले जाएंगे?
ज़िलाध्यक्षों की सूची को लेकर सिर्फ़ लखनऊ नहीं बल्कि बीजेपी हाईकमान तक भी ज़ोर लगा रहा है. ख़बर है कि हाईकमान ने साफ कहा है कि 35% से ज़्यादा ज़िलाध्यक्षों को नहीं बदलेंगे. यानी जो मौजूदा ज़िलाध्यक्ष हैं, उनमें से 65% कोे रिपीट किया जाए. हाईकमान का ऐसा तर्क इसलिए है, क्योंकि सामने लोकसभा चुनाव है. ज़िलाध्यक्ष पार्टी के लिए ज़िले में सबसे बड़ी इकाई होती है. ज़्यादा ज़िलाध्यक्ष बदलने से असंतोष का दायरा ज़्यादा बड़ा हो सकता है.
ज़िलों में ज़्यादा अध्यक्ष बदलने से उनके समर्थक नाराज़ हो सकते हैं. फिर मंडल से लेकर बूथ तक बदलाव होंगे. नए-नए गुट बनेंगे. पुराने और नए अध्यक्ष के बीच अपनों को लेकर गुटबाज़ी शुरू हो सकती है. सबका आपस में टकराव बढ़ सकता है. इसी वजह से बदलाव तो करना है, लेकिन उसका दायरा घटाकर रखना है. यानी हाईकमान के हिसाब से ज़िलाध्यक्षों की लिस्ट बनी होगी, तो बदलाव सिर्फ़ 35% यानी नाममात्र का होगा.
संघ और संगठन में ‘अपनों’ पर ठन गई?
बीजेपी के ज़िलाध्यक्षों की सूची को लेकर नाम फाइनल हो गए थे. ज़िले से लेकर क्षेत्रीय टीम तक ने अपने-अपने हिसाब से नाम तैयार करके लिस्ट भेज दी थी. क्षेत्रीय टीम के साथ बैठक भी हो चुकी थी. प्रदेश टीम ने ज़िलाध्यक्षों के संभावित नामों को लेकर प्रभारी बनाए. वो प्रभारी ज़िलों में गए और संभावित नाम वाली लिस्ट लेकर आए. इसके अलावा क्षेत्रीय टीम ने भी लिस्ट भेजी.
प्रदेश संगठन तक पहुंची सभी लिस्ट में से कुछ कॉमन नाम तय कर लिए गए. उन्हीं नामों पर विचार होने लगा. ज़िले के सांसद, विधायक, पंचायत अध्यक्ष समेत संगठन के लोगों से फीडबैक लिया गया. इसके बाद कुछ नामों पर कैंची चली. अंत में हर ज़िले की लिस्ट में 3-4 नाम ही बचे. उन पर मंथन हुआ. कई दौर की बैठक हुईं. कई लोगों से राय ली गई. अंत में जिनका नाम फाइनल होना था, उन पर मुहर लगी. लेकिन, लिस्ट जारी होने से क़रीब 24 घंटे पहले संघ की ओर से ज़िलाध्यक्षों के नामों पर फिर मंथन की बात कही गई. इसके बाद नए सिरे से बैठक होने लगी.
जो नाम फाइनल थे, अब उन पर संशय!
बीजेपी के जिन ज़िलाध्यक्षों का नाम लिस्ट में अब तक फाइनल बताया जा रहा था, उन्हें लेकर अब संशय है. पार्टी सूत्रों के मुताबिक संघ ने आख़िरी वक़्त में नामों पर फिर से विचार करने की बात कही. इस पर संगठन ने भी अपनी अलग राय दे दी. कुल मिलाकर दोनों ओर से अपने-अपने नाम दिए जाने लगे. किसी को ज़िलाध्यक्ष क्यों रिपीट किया जाए और किसी को क्यों हटाया जाए, इस पर भारी मंथन हुआ.
चुनावी समीकरण देखकर ही तय होंगे नाम
आख़िरकर संघ और संगठन के बीच तय हुआ कि जिलाध्यक्षों के नाम 2024 के चुनावी समीकरण देखकर ही तय होंगे. यानी इसे चार बिंदुओं के तहत मैनेज किया जा रहा है. एक तो उन ज़िलाध्यक्षों को नहीं छेड़ा जाएगा, जिनका स्थानीय नेताओं, सांसद और विधायकों में विरोध नहीं है. दूसरा उन ज़िलाध्यक्षों को नहीं हटाया जाएगा, जिनकी बिरादरी का वोटबैंक बड़ा है. सूत्रों के मुताबिक तीसरा आधार ये रखा गया है कि जो ज़िलाध्यक्ष अपने अपने ज़िलों में हर तरह से प्रभावशाली हैं, उन्हें फिलहाल ना हटाया जाए.
इन जिलाध्यक्षों के मिल सकता है अभयदान
बीजेपी ज़िलाध्यक्षों को रिपीट करने या हटाने के नज़रिये से चौथा प्वॉइंट ये रखा गया है कि जिन ज़िलाध्यक्षों के हटने से संगठन कमज़ोर हो सकता है, उन्हें भी फिलहाल अभयदान मिल सकता है. यानी जो ज़िलाध्यक्ष 2024 के लिहाज़ से हर कसौटी पर खरा होगा, उसके सामने कोई चुनौती नहीं है. लेकिन सवाल ये है कि तमाम कसौटी पर परखने के बावजूद लिस्ट कब तक अटकी रहेगी? बहरहाल, अब तो लखनऊ में बड़े नेताओं के यहां परिक्रमा करने वाले संभावित ज़िलाध्यक्ष या मौजूदा ज़िलाध्यक्षों ने कहना शुरू कर दिया है कि “भाईसाहब अब किसी का भी नाम फाइनल कर दीजिए, लेकिन कर दीजिए”.
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