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बातचीत में समस्या व अटपटा व्यवहार तो ऑटिज्म डिस्ऑर्डर
झाँसी न्यूज़: रोते बिलखते बच्चों को टीवी के सामने बिठाकर या फिर मोबाईल फोन देकर शांत कराने का फंडा उनको मानसिक रूप से बीमार कर रहा है. वह आटिज्म डिस्ऑर्डर का शिकार हो रहे हैं. टीवी व मोबाईल फोन तक उनकी दुनिया सीमित रहती है. इस कारण उनको समझने, समझाने व बातचीत में परेशानी होती है. हरकतें भी अटपटी रहती है.
जन्म लेने के बाद अभिभावक बच्चे की देखरेख में उसके खानपान का तो भरपूर ख्याल रखते लेकिन बदलते परिवेश में खेलकूद की सामग्री किनारे रखकर उसको टीवी के सामने बिठाने लगे. टीवी बंद होने पर बिलखते बच्चे को कार्टून लगाकर मोबाईल फोन दिया जाने लगा. लगातार ऐसा करने से बच्चों का टीवी व मोबाईल फोन, उनमें दिखने वाले कार्टून फिल्मों से मानसिक जुड़ाव हो जाता है और वह इसको ही अपनी दुनिया मान बैठते हैं. बढ़ती उम्र के साथ यह बच्चे टीवी, मोबाईल फोन, इंटरनेट आदि के लती हो जाते हैं. इसके बिना इनका समय नहीं गुजरता है. इसका उनके बौद्धिक स्तर पर बहुत बुरा असर पड़ता है. वह आटिज्म डिस्ऑर्डर का शिकार हो जाते हैं. उनके समझना, समझाने की क्षमता बहुत कमजोर हो जाती है. किसी भी विषय पर वह अधिक देर तक ध्यान नहीं दे पाते हैं. उनका लोगों से परस्पर जुड़ाव नहीं होता और बौद्धिक स्तर कमजोर रहता है. स्कूल के कामकाज में वह पिछड़ने लगते हैं. जिला चिकित्सालय स्थित मन कक्ष में एक सप्ताह के भीतर इस समस्या से ग्रसित औसतन दो बच्चे अभिभावकों के साथ पहुंच रहे हैं.
खेल खिलौनों से दूरी व मोबाइल से जुड़ाव वजह
पहले बच्चों को खेलने के लिए तरह-तरह के खिलौने दिए जाते थे. जिसके इस्तेमाल से उनकी मानसिक व शारीरिक कसरत होती थी. लेकिन, बदलते समय के साथ इन खिलौनों को अभिभावकों ने बच्चों से दूर कर दिया और उनके जीवन में मोबाईल फोन व टीवी का दखल बढ़ा दिया. लगातार मोबाईल फोन व टीवी देखने से वह आटिज्म डिस्ऑर्डर का शिकार हो रहे हैं.