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Prayagraj प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने तलाक के एक मामले में सुनवाई करते हुए अपने महत्वपूर्ण आदेश में कहा कि हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 14 के अनुसार विवाह की तिथि से एक वर्ष की अवधि के भीतर तलाक के लिए याचिका प्रस्तुत नहीं की जा सकती। विवाह से एक वर्ष के भीतर ऐसी याचिका पर तभी विचार किया जा सकता है, जब दूसरे पक्ष द्वारा असाधारण कठिनाई या कदाचार की शिकायत की जाये।
इसमें प्रावधान है कि अगर किन्हीं परिस्थितियों में कोर्ट द्वारा तलाक की डिक्री पारित की जाती है, तो वह विवाह की तिथि से एक वर्ष की समाप्ति से पहले प्रभावी नहीं होगी। यह आदेश न्यायमूर्ति सौमित्र दयाल सिंह और न्यायमूर्ति डोनाडी रमेश की खंडपीठ ने अलका सक्सेना की याचिका स्वीकार करते हुए पारित किया, जिसमें प्रधान न्यायाधीश परिवार न्यायालय फिरोजाबाद के आदेश को चुनौती दी गई है। इसके साथ ही अपीलकर्ता को 50 हजार रुपये का भुगतान करने के साथ ट्रायल कोर्ट के आदेश को भी रद्द कर दिया। मामले के अनुसार पक्षकारों का विवाह 15 जनवरी 1999 में हुआ था। विवाह के 11 महीने के भीतर पति ने हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 9 के तहत वैवाहिक अधिकारों की प्रतिपूर्ति ना होने का दावा करते हुए तलाक की याचिका दाखिल की। जिसके विरुद्ध पत्नी ने अधिकारों की बहाली के लिए मुकदमा दाखिल किया। अपीलकर्ता के अधिवक्ता का तर्क है कि ट्रायल कोर्ट ने पत्नी द्वारा दाखिल आपत्तियों पर विचार किए बिना एकतरफा आदेश पारित कर दिया। अंत में कोर्ट ने माना कि अधिनियम की धारा 14 के विशिष्ट प्रावधान के अनुसार विवाह के एक वर्ष के अंदर तलाक की याचिका दाखिल नहीं की जा सकती है, जब तक दूसरे पक्ष द्वारा अत्यंत क्रूरता या असाधारण दुराचार का मामला सिद्ध ना हो।
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Tara Tandi
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