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Prayagraj: कोर्ट ने सैकड़ों सहायक अध्यापकों की याचिकाएं खारिज की

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने समग्र शिक्षा अभियान के तहत ब्लॉक और न्याय पंचायतों में स्थापित संसाधन केंद्रों में कार्यरत एकेडमिक रिसोर्स पर्सन (ARP) को नई चयन प्रक्रिया से बाहर करने के खिलाफ दायर सैकड़ों सहायक अध्यापकों की याचिकाएं खारिज कर दी हैं।
कोर्ट ने कहा कि बच्चों में भाषाई और गणितीय कौशल बढ़ाने और राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के तहत आदर्श विद्यालय विकसित करने की सरकार की नीतिगत योजना में हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता। अदालत ने माना कि तीन वर्ष तक कार्यरत शिक्षकों को विद्यालयों में वापस भेजकर उनके अनुभव का लाभ लेना और नए शिक्षकों को एआरपी बनने का अवसर देना किसी भी प्रकार से विभेदकारी या अनुचित नहीं है।
सरकार का निर्णय छात्रों के व्यापक हित में
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि सरकार द्वारा तीन वर्ष से अधिक समय तक एआरपी रहे शिक्षकों को अयोग्य घोषित कर नए शिक्षकों को चयनित करने का निर्णय छात्रों के बृहत्तर हित में है और यह नीति पूरी तरह तार्किक है। यह आदेश न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी ने दिलीप कुमार सिंह राजपूत और 20 अन्य याचिकाओं को खारिज करते हुए दिया।
याचियों की दलीलें: याचियों ने तर्क दिया कि 2 फरवरी 2019 से नई व्यवस्था लागू की गई थी, जिसमें चयन के मानक तय थे। एआरपी का प्रारंभिक कार्यकाल एक वर्ष का था, जिसे कार्य की प्रकृति के अनुसार अधिकतम तीन वर्षों तक बढ़ाया जा सकता था। याचीगण पिछले पांच वर्षों से एआरपी के रूप में कार्यरत हैं। अब सरकार ने नई नियुक्ति प्रक्रिया शुरू की है, जिसमें तीन वर्ष पूरे कर चुके शिक्षकों को चयन से बाहर कर दिया गया है। इसी निर्णय को याचिका में चुनौती दी गई थी, जिसे हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया।
