- Home
- /
- राज्य
- /
- उत्तर प्रदेश
- /
- Pratapgarh: इलाज की...
Pratapgarh: इलाज की बजाय अंधविश्वास के भरोसे छोड़ देने वाले परिजन बाल रोग की ओपीडी पहुंच रहे
प्रतापगढ़: जिले में मेडिकल कॉलेज खुल जाने के बाद भी अंधविश्वास पीछा नहीं छोड़ रहा है. छोटे बच्चों को भी इलाज की बजाय अंधविश्वास के भरोसे छोड़ देने वाले परिजन बाल रोग की ओपीडी पहुंच रहे हैं.
जब डॉक्टर समझाते हैं कि उनके बच्चे मरणासन्न होने की हालत बीमारी नहीं बल्कि खुद उनका अंधविश्वास है तो वह समझ नहीं पाते के अब क्या करें.
बाल रोग की ओपीडी तैनात डॉ. अनिल सरोज के पास मानधाता के एक गांव का दंपती गोद में डेढ़ महीने की बच्ची लेकर पहुंचा. बच्ची की मरणासन्न हालत देखते ही डॉक्टर परेशान हो उठे. पूछने पर बच्ची की मां ने बताया कि हफ्तेभर पहले से बच्ची बीमार है. बच्ची को गोंठवाया (मुंह से कुछ मंत्र जैसे शब्द निकालते हुए दो उंगली से बच्ची के ऊपर हवा में घेरा बनाने का अभिनय करना) था. लेकिन आराम नहीं हुआ तो अजीत नगर स्थित एक निजी अस्पताल ले गई थी. किन्तु वहां से उसे यहां (मेडिकल कॉलेज) भेज दिया गया. डॉक्टर ने उसे समझाया कि अब हालत बहुत बिगड़ चुकी है. इसलिए प्रयागराज या लखनऊ ले जाना पड़ेगा. यदि समय रहते अस्पताल आ गई होती तो आज बच्ची की यह न हालत होती. अन्य मरीजों को उसकी हालत के बारे में बताते हुए डॉक्टर ने समझाया कि बच्चों की रोग प्रतिरोधक क्षमता पूरी तरह विकसित नहीं हुई रहती इसलिए उसमें अंधविश्वास का प्रयोग घातक हो जाता है. यदि लोग समय पर बच्चे को अस्पताल लेकर आ जाएं तो जांच आदि से पता चल जाता है कि बच्चे की हालत कैसी है. इससे बच्चे की जान पर खतरे की आशंका बहुत कम हो जाती है.
ओपीडी में ऐसे लोग भी आते हैं जो अंधविश्वास के कारण बीमार बच्चे को लकड़ी की माला आदि पहनाए रहते हैं. उन्हें समझाया जा रहा है कि लकड़ी पहनाने, गोंठवाने आदि के बाद भी उनके बच्चे की हालत ठीक नहीं है. ऐसे में बच्चे को सबसे पहले अस्पताल लेकर आना चाहिए. जहां जांच और दवाएं उपलब्ध हैं.-डॉ. अनिल सरोज, बाल रोग, मेडिकल कॉलेज