उत्तर प्रदेश

'जुटान' काव्य आंदोलन के संयोजक रंजीत वर्मा के साथ 'कविता की एक शाम' का आयोजन

Gulabi Jagat
17 April 2024 10:48 AM GMT
जुटान काव्य आंदोलन के संयोजक रंजीत वर्मा के साथ कविता की एक शाम का आयोजन
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लखनऊ। जनवादी कवि तथा 'कविता 16 मई' और 'जुटान' काव्य आंदोलन के संयोजक रंजीत वर्मा (पटना) के साथ 'कविता की एक शाम' का आयोजन इंडियन कॉफी हाउस, हजरतगंज में हुआ। जन संस्कृति मंच, उत्तर प्रदेश के कार्यकारी अध्यक्ष कौशल किशोर ने इसका संयोजन किया तथा रंजीत वर्मा का स्वागत करते हुए कहा कि रंजीत वर्मा हमारे समय के सजग और सचेत कवि हैं। इनकी कविताएं व्यवस्था की विसंगतियों, विडम्बना तथा सत्ता की क्रूरता के विरुद्ध कविता में जन प्रतिरोध रचती है। इसमें सिस्टम की आलोचना के साथ आत्मालोचन का भी भाव है। मौजूदा समय के विचलन-फिसलन पर भी इनकी नजर है।
इस मौके पर रंजीत वर्मा ने अपनी चार नई कविताएं सुनाईं। काव्य पाठ की शुरुआत 'बसंत के हत्यारे' कविता से की जिसमें सत्ता के शोषक व दमनकारी स्वरूप को उजागर किया गया है। वह आमजन को छोटी-छोटी सुविधाएं देने का भ्रम पैदा करता है लेकिन वहीं उनके प्रेम, आजादी और अधिकारों का अपहरण कर रहा है। रंजीत वर्मा की चिंता में ऐसे 'डेमोक्रेट' भी हैं जिन्होंने निहित स्वार्थ के लिए हत्यारों के सामने समर्पण कर रखा है। रंजीत वर्मा का मानना है कि यह समय है जब कलम को हथियार बनाने की जरूरत है। वह कहते हैं 'कलम को संभाल कर रखो /जैसे रखा जाता है हथियार /इस स्याह समय में/सियाही से ज्यादा बारूद की जरूरत है'। अपनी एक अन्य कविता 'ए मेरे जमाने के कवियों' में ब्रेख्त को याद करते हुए कहते हैं 'उम्मीद राख नहीं हुई है अभी/ जल रही रात है यह/तानाशाह के खिलाफ/पहली जमात है यह'।
कात्यायनी ने 'फिलिस्तीन' कविता सुनाई जिसमें पूंजीवादी-साम्राज्यवादी शक्तियों की बर्बरता है, वहीं मार्मिकता और मारकता है। वह कहती हैं 'वहां हर सपने में खून का सैलाब आता है/ अमन के सारे गीत /एक वजनी पत्थर के नीचे दबे सो रहे होते हैं /फिलिस्तीन की धरती जितनी सिकुड़ती जाती है/ प्रतिरोध उतना ही सघन होता जाता है'। कविता का विस्तार कुछ यूं होता है 'मलबे में सैकड़ो मजदूर जिंदा दफ़न हो जाते हैं/ और उसी समय भारत में एकसाथ कई जगह से /कई हजार लोग दर-ब-दर कर दिए जाते हैं /कुछ भी हो सकता है ऐसे समय में/ गुजरात में गाजा की एक रात हो सकती है/ अयोध्या में इतिहास के विरुद्ध/एक युद्ध हो सकता है'।
भगवान स्वरूप कटिहार ने 'सुनी आंखों में सपना बुनो' के द्वारा नाउम्मीदी के दौर में उम्मीद की बात करते हैं -
'रात- रात भर किसान का जागना /इस बात का सबूत है कि जुल्मों के खिलाफ़ लड़ने की शुरुआत/ अभी भी हो सकती है /और हमें वही करना है /और उसी के लिए जरूरत है/हमें एक जुट होने की/और लोगों की सूनी आँखों में सपना बुनने की'। शैलेश पंडित ने अपने भाव-विचार को ग़ज़ल के माध्यम से व्यक्त किया। वे कहते हैं 'इबादतगाहों को इतना न सताया जाए/कभी मयखानों में भी सजदे को जाय जाए' और आगे 'एक मयकश ने कहा हाथ में पत्थर लेकर/ चलो, जम्हूरियत का कर्ज चुकाया जाए'।
कविता पाठ करने वाले अंतिम कवि थे कौशल किशोर। कविता के माध्यम से वे इस बात को ले आते हैं कि सत्ता राजनीति ने घर-परिवारों में नफरत को फैलाया है। इसका नकारात्मक प्रभाव हुआ है या हो रहा है। वे कहते हैं - 'मैं अपने ही घर-परिवार से निष्कासित-निर्वासित हूं/इस लोकतंत्र में असहमति के लिए कोई जगह नहीं है/नफरत के सर्प ने बाहर ही नहीं/हमारे अन्दर को भी डंस लिया है/उसका विष संबंधों की नसों में फैल रहा है/यह बचाने का समय है/हम बचाएं! प्यार को बचाएं!/अपने घर-परिवार को बचाएं!' इस अवसर पर असगर मेहदी, अजीत प्रियदर्शी और सत्यम वर्मा भी मौजूद थे और कविता की इस शाम को सार्थक किया।
इसके पहले 'प्रत्यूष' की ओर से अनुराग लाइब्रेरी, निराला नगर में 'आमने-सामने' में रंजीत वर्मा ने अपनी कुछ पुरानी तथा नए संग्रह 'यह रक्त से भरा समय है' से करीब एक दर्जन से अधिक कविताएं सुनाईं। ये कविताएं थीं - आओ मुझे गिरफ्तार करो, कविता में ईश्वरवाद आ गया है, आपको सिस्टम से बाहर निकलना होगा, औरंगजेब रहेगा लेकिन आप नहीं रहेंगे आदि। कविता पाठ के बाद रंजीत वर्मा के साथ संवाद भी हुआ। इस कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ कवि नरेश सक्सेना ने की। उन्होंने कवि और कविता के दायरे को बढ़ाने की बात की और अपनी कविता के माध्यम से कहा कि यह कविता से बाहर आने का वक्त है। कार्यक्रम का संचालन सत्यम वर्मा ने किया।
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