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उत्तरप्रदेश | इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मथुरा की छाता तहसील में शाहपुर गांव स्थित मंदिर बांके बिहारी के नाम दर्ज जमीन को 13 अगस्त 1970 को गांवसभा के नाम दर्ज करने फिर 21 साल बाद 30 अक्तूबर 1991 के आदेश से पोखर के रूप में दर्ज करने के आदेशों को रद कर दिया है. कोर्ट ने तहसीलदार/एसडीएम को एक माह में इस जमीन को मंदिर बांके बिहारी जी विराजमान के नाम दर्ज करने की कार्यवाही पूरी करने का निर्देश दिया है.
कोर्ट ने कहा कि प्लाट संख्या 1081 एम रकबा 0.3450 हेक्टेयर व 1081 एम रकबा 15.9700 हेक्टेयर कब्रिस्तान के नाम दर्ज है और प्लाट संख्या 1081 जो बाद में बदलकर 1081/1 कर दिया गया, का रकबा 0.1460हेक्टेयर है. यह मंदिर की जमीन है, जिसे बिना कानूनी प्रक्रिया अपनाए राजस्व अधिकारियों ने पहले पुरानी आबादी व बाद में पोखर के नाम दर्ज किया गया. मंदिर के हिस्से की जमीन से कब्रिस्तान का कोई सरोकार नहीं है. कब्रिस्तान की जमीन मंदिर की जमीन से अलग है. कोर्ट ने शुरुआत में मंदिर के हिस्से की जमीन पर मंदिर का नाम दर्ज करने का आदेश दिया है. यह आदेश न्यायमूर्ति सौरभ श्रीवास्तव ने श्री बिहारी जी सेवा ट्रस्ट की याचिका को स्वीकार करते हुए दिया है.
गौरतलब है कि प्लाट 1081 रकबा 0.36 एकड़, जो 0.1460 हेक्टेयर होता है,1375 फसली से 1377 फसली तक मंदिर की भूमिधरी जमीन थी. मंदिर के नाम राजस्व अभिलेख में दर्ज थी. प्लाट संख्या 108 चकमार्ग था. 2004 में भोला खान व एजेंट ने मुख्यमंत्री को अर्जी देकर प्लाट संख्या 1081 व 108/4, 108/5 व 1093/190 पर कब्रिस्तान दर्ज करने की मांग की. तीन दिसंबर 2004 को तीनों प्लाट उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड के नाम दर्ज हो गए. बाद में प्लाट 1081 भी कब्रिस्तान के नाम दर्ज हो गया. इसका पता चलने पर गांव वालों ने 16 जून 2020 को एसडीएम को अर्जी दी. आठ सदस्यीय कमेटी गठित की गई.
उसने जांच रिपोर्ट पेश की. प्लाट 1081 से कब्रिस्तान का नाम हटाने को कहा गया लेकिन कई अर्जियों के बाद भी कुछ नहीं हो सका. पांच नवंबर 2021 को याची ने रिकॉर्ड दुरुस्त करने की अर्जी दी. डीजीसी से विधिक राय ली गई. लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई. इस पर याचिका की गई.
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