उत्तर प्रदेश

विश्व फेंफड़ा कैंसर दिवस पर जानें कैसे टीबी ही नहीं, कैंसर भी हो सकती है लंबी खांसी, ये है इसके लक्षण

Renuka Sahu
1 Aug 2022 12:55 AM GMT
On World Lung Cancer Day, learn how not only TB, cancer can also be a long cough, these are its symptoms
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फाइल फोटो 

लंबे समय तक खांसी है। बलगम के साथ खून भी निकलने लगा है। आम तौर पर इसे टीबी के लक्षण माना जाता है।

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। लंबे समय तक खांसी है। बलगम के साथ खून भी निकलने लगा है। आम तौर पर इसे टीबी के लक्षण माना जाता है। इस भुलावे में न रहिएगा। यह लंग कैंसर (फेंफड़ों का कैंसर) भी हो सकता है। इसलिए टीबी के साथ इसकी जांच भी करा लेना ठीक रहेगा। वरना फेंफड़ों का कैंसर मौत के मुंह तक ले जा सकता है। फेंफड़ों के कैंसर का सबसे बड़ा कारण धूम्रपान ही है।

लंबे समय तक बीड़ी, सिगरेट, चिलम, हुक्का पीने से तंबाकू के धुएं और दूसरे कार्सिनोजेन्स की वजह से जानलेवा रसायन फेफड़ों के संपर्क में आते हैं। इससे डीएनए में बदलाव हो जाता है। यही आगे चलकर फेफड़ों के कैंसर बनता है। कार्सिनोजेन्स के कारण सांस तंत्र को नुकसान पहुंचता है। फेंफड़ों का कैंसर बनने के बाद वापस आना मुश्किल हो जाता है। हां, शुरूआती स्टेज पर अगर इसका पता लग जाता है तो इलाज की सफलता का दर 70-80 प्रतिशत तक हो सकता है।
लंग कैंसर के शुरुआती लक्षण
- लगातार खांसी, वजन में कमी, भूख की कमी
- खून के साथ खांसी या जंग के रंग वाला बलगम
- सीने में दर्द- गहरी सांस लेने या खांसी होने पर बढ़ जाता है
- सांस लेने में दिक्कत, सामान्य तौर पर कमजोरी
- आवाज का बैठना, फेफड़ों के कैंसर के आम लक्षण
- बलगम में खून आना, बिना कारण के वजन कम होना
- सांस लेने में दिक्कत, भूख लगने में कमी
- समझी न जा सकने वाली, लंबे समय तक चलने वाली खांसी
पांच तरह के लंग कैंसर
1. स्मॉल सेल कैंसर
2. नॉन-स्मॉल सेल कैंसर
3. एडेनोकार्सिनोमा
4. स्क्वैमस सेल कार्सिनोमा
5. लार्ज सेल कार्सिनोमा
इस तरह हो सकती है जांच
1. सीने का एक्स-रे
2. लो डोज सीटी
3. एचआरसीटी
4. पीईटी-सीटी
5. फेफड़ों की बायोप्सी (पुष्टि के लिए)
आखिरी स्टेज पर आते हैं मरीज
वरिष्ठ कैंसर विशेषज्ञ एसएनएमसी, डा. सुरभि मित्तल का कहना है कि इलाज में कैंसर सेल का प्रकार और उसकी स्टेज सबसे महत्वपूर्ण होती है। हमारे यहां एक महीने में इस तरह के सात से आठ मरीज आते हैं। दिक्कत यह कि सभी आखिरी स्टेज (चौथी) में आते हैं। ऐसे में उन्हें कीमोथेरेपी ही दी जा सकती है। उन्हें लंबे समय तक बचाए रखना मुश्किल होता है।
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