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ग़ज़िआबाद : तों में जलने वाली पराली से होने वाले प्रदूषण से अब लोगों को निजात मिलनी शुरू हो गई है। यह पराली अब उद्योग को बढ़ावा दे रही है। दरअसल ईंट के भट्टों में कोयले की जगह पराली, तूड़ी व खेतों के अन्य अपशिष्ट का प्रयोग किया जा रहा है। भट्टों की चिमनी को जिगजैग तकनीकी से बनाया गया है। इससे प्रदूषण कम हो रहा है।
ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान (ग्रेप) के दौरान ईंट भट्टों के संचालन पर लगी रोक को केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने हटा दिया है। 28 फरवरी से हटी रोक 30 जून तक है। लोनी में ईंट भट्टा संचालकों ने उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब और राजस्थान से बड़ी मात्रा में पराली, तूड़ी, भूंसा, बुरादा व खेतों के अन्य अपशिष्ट को खरीदा है। सीपीसीबी ने भट्टों में ईंट को पकाने के लिए 20 प्रतिशत कोयला भी प्रयोग करने की छूट दी है।
ईंट भट्टा संचालकों के मुताबिक कोयला 20 रुपये प्रति किलो मिलता है। पराली व तूड़ी पांच से सात रुपये किलो मिल जाती है। इससे किसानों के साथ ईंट भट्टा संचालकों को फायदा हो रहा है। खेत में पराली नहीं जलानी पड़ती है। इससे प्रदूषण भी नहीं होता है।
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान 15 सितंबर से 30 नवंबर तक पराली जलाने की उत्तर प्रदेश, दिल्ली, राजस्थान, हरियाणा, पंजाब व मध्य प्रदेश में निगरानी करता है। आंकड़ों पर गौर करें तो पराली जलाने के मामलों में गिरावट आ रही है। इसका एक कारण यह भी है की पराली का प्रयोग ईंट पकाने में शुरू कर दिया गया है।