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Noida: लॉजिक्स बिल्डर के एक प्रोजेक्ट मामले में कार्रवाई की सिफारिश
नोएडा: प्राधिकरण ने बकाया नहीं देने वाले बिल्डरों पर सख्ती बरतनी शुरू कर दी है. पहली बार लॉजिक्स बिल्डर की एक परियोजना पर कार्रवाई के लिए आर्थिक अपराध शाखा (ईओडब्ल्यू) को पत्र लिखा है. अब आर्थिक अपराध शाखा इस परियोजना के लिए फ्लैट खरीदारों से ली गई रकम कहां डायवर्ट की गई, इसकी जांच करेगी.
यह लॉजिक्स बिल्डर की सेक्टर-143 स्थित ब्लॉसम जेस्ट परियोजना है. इस परियोजना पर प्राधिकरण के करीब 600 करोड़ रुपये बकाया हैं. नोएडा प्राधिकरण के अधिकारियों ने बताया कि मैसर्स लॉजिक्स सिटी डेवलपर्स प्राइवेट लिमिटेड को ब्लॉसम जेस्ट परियोजना के लिए आठ अप्रैल 2011 को सेक्टर-143 का भूखंड संख्या-2 आवंटित किया गया था. यह भूखंड करीब एक लाख वर्ग मीटर का था. इस भूखंड का पट्टा प्रलेख कराते हुए 14 जून 2011 को बिल्डर को कब्जा दे दिया गया.
अधिकारियों ने बताया कि आवंटी द्वारा भूखंड की देय राशि जमा नहीं कराई गई. प्राधिकरण की ओर से राशि जमा कराने के लिए बीते सालों में कई बार नोटिस जारी किए गए. इसके अलावा तय समय में परियोजना का निर्माण कार्य भी पूरा नहीं किया. नोएडा प्राधिकरण की एसीईओ वंदना त्रिपाठी ने बताया कि इस परियोजना के प्रमोटर्स देवेंद्र मोहन सक्सेना, शक्ति नाथ, विक्रम नाथ, सुश्री मीना नाथ द्वारा इस परियोजना के फ्लैट बेचकर तृतीय पक्षीय अधिकार सृजित किए गए. परियोजना से प्राप्त राशि को प्राधिकरण में जमा न कराते हुए अन्य जगह इस्तेमाल किया. इसके चलते फ्लैट खरीदारों को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. प्राधिकरण को भी वित्तीय हानि पहुंचाई गई है. एसीईओ ने बताया कि इन सभी विसंगतियों के कारण प्राधिकरण ने बिल्डर के खिलाफ ईओडब्ल्यू के समक्ष शिकायत दर्ज कराते हुए इनके खिलाफ जांच कराने का अनुरोध किया है.
प्राधिकरण अधिकारियों ने बताया कि आर्थिक अपराध शाखा खास तौर से रुपये के डायवर्जन को लेकर जांच करेगी. फ्लैट खरीदारों से कितना पैसा आया, इस परियोजना में कितना पैसा खर्च हुआ और बाकी पैसा कहां प्रयोग में लाया गया, खास तौर से इन बिंदुओं पर जांच होगी.
अनियमितताओं के बारे आईबीबीआई को पत्र: एनसीएलटी में लंबित थ्रीसी प्रोजेक्ट प्राइवेट लिमिटेड को आवंटित भूखंड संख्या-जीएच-1ए, सेक्टर-168 लोटस जिंग, मैसर्स जीएसएस प्रोकॉन प्राइवेट लिमिटेड को आवंटित भूखंड संख्या-जीएच-1सी, सेक्टर-143 बी के प्रकरण में संपत्ति के वैल्यूएशन में हुई अनियमितताओं व अन्य विसंगतियों को लेकर भारतीय दिवाला और शोधन अक्षमता बोर्ड (आईबीबीआई) को पत्र लिखा गया है. अधिकारियों का कहना है कि इन परियोजना की आईआरपी की तरफ से कम कीमत लगाई गई है.
अधिभोग प्रमाणपत्र तक जारी नहीं हुआ: प्राधिकरण के अधिकारियों ने बताया कि इस परियोजना के एक भी टावर के लिए अधिभोग प्रमाणपत्र जारी नहीं किया गया है. ऐसे में किसी भी फ्लैट की रजिस्ट्री नहीं हो सकी है. इस परियोजना का मामला एनसीएलटी में भी चल रहा है.