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Noida: छह साल बाद भी बाल चिकित्सालय में किडनी विभाग शुरू नहीं हुआ
नोएडा: छह साल बाद भी बाल चिकित्सालय में किडनी चिकित्सकीय विभाग शुरू नहीं हो पाया. न्यूरो विभाग भी सात साल से बंद है. ऐसे में मरीजों को इलाज के लिए दिल्ली के सरकारी अस्पतालों पर निर्भर रहना पड़ रहा है. बाल चिकित्सालय प्रबंधन का कहना है कि साक्षात्कार होने के बावजूद भी डॉक्टर नहीं मिल पा रहे.
बाल चिकित्सालय एवं स्नातकोत्तर संस्थान में 2017 में किडनी विभाग को शामिल किया गया. इसके बाद से किडनी रोग विभाग शुरू नहीं हो पाया. इसके कारण न तो ओपीडी शुरू हुई न ही भर्ती विभाग शुरू को सका. किडनी के सामान्य मरीजों को यूरोलॉजी विभाग के डॉक्टर देखा करते थे, लेकिन गंभीर मामला होने पर उसे रेफर कर दिया जाता है. पहले अस्पताल में डायलिसिस यूनिट थी, लेकिन अब इसका काम लगभग बंद पड़ा हुआ है. बाल चिकित्सालय एवं स्नातकोत्तर संस्थान के चिकित्सा अधीक्षक डॉ. आकाश राज बताते हैं कि शासन के निर्देश के अनुसार प्रत्येक साल खाली विभागों के डॉक्टरों के लिए साक्षात्कार होते हैं. कुछ दिन पहले भी इस संबंध में साक्षात्कार हुए, लेकिन डॉक्टर नहीं मिल पाया. अस्पताल के सभी चिकित्सकीय विभागों में डॉक्टरों की नियुक्ति करने का प्रयास चल रहा है, ताकि मरीजों को किसी भी तरह की परेशानी का सामना न करना पड़े.
आठ माह से न्यूरो विभाग बंद: बाल चिकित्सालय का न्यूरो विभाग आठ महीने से बंद है. अक्तूबर में डॉक्टर का बांड खत्म हो गया. इसके बाद अस्पताल को चिकित्सक नहीं मिला. अक्तूबर तक अस्पताल में प्रतिदिन 15-20 मरीज ओपीडी में इलाज कराने आते थे. फॉलोअप में 2000 से ज्यादा मरीज थे, लेकिन डॉक्टर के चले जाने के बाद से विभाग पूरी तरह से बंद हो गया. बंद होने के बाद भी मरीज महीने तक इलाज के लिए आते रहे, लेकिन विशेषज्ञ डॉक्टर की अनुपस्थिति में मरीजों की संख्या कम होती गई. अब इस विभाग से संबंधित इक्का-दुक्का मरीज ही इलाज के लिए आते हैं. जिन्हें जेनेटिक्स या अन्य विभाग के डॉक्टर देखते हैं.
डॉक्टरों के छोड़ने का सिलसिला थमा: कोरोना महामारी से पहले बाल चिकित्सालय में प्रत्येक वर्ष 10-12 डॉक्टर छोड़कर चले जाते थे, जिससे चिकित्सकीय विभागों का काम प्रभावित होता था. अब यह सिलसिला थोड़ा थमा है. हालांकि अभी भी प्रत्येक साल 4-5 डॉक्टर अस्पताल को छोड़कर चले जाते हैं. यही कारण है कि अस्पताल के प्रत्येक विभाग में पूरे डॉक्टर नहीं हैं, जिससे अस्पताल प्रबंधन को प्रत्येक महीने वॉक इन इंटरव्यू आयोजित करना पड़ रहा है.