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नोएडा प्राधिकरण न्यूज़: सीएजी जांच में गड़बड़ी मिलने के तीन साल बाद भी कार्रवाई नहीं
नोएडा: नोएडा प्राधिकरण के बीते एक साल के कामकाज की सीएजी जांच एक बार फिर शुरू हो गई, लेकिन पहले के सालों में हुए हजारों करोड़ के घोटाले में एक भी अफसर पर कार्रवाई नहीं हुई. सीएजी की जांच में वर्ष 2004-05 से लेकर 2017-18 तक के दौरान 30 हजार करोड़ रुपये से अधिक के घोटाले का खुलास हुआ, पर कार्रवाई किसी पर नहीं हुई.
उत्तरप्रदेश में भाजपा की सरकार आने के बाद सीएजी ने वर्ष 2017 में पहली बार प्राधिकरण में जांच के लिए कदम रखा. प्रदेश सरकार के निर्देश पर पहले चरण में वर्ष 2004-05 से लेकर वर्ष 2017-18 तक के कामकाज की जांच की गई. इसको परफार्मेंस ऑडिट का नाम दिया गया. इसमें प्राधिकरण की तरफ से तैयार किए आवंटन नियमों के अंतर्गत जांच की गई. इस दौरान 200 से अधिक आपत्तियां लगाते हुए करीब 400 पन्नों की रिपोर्ट तैयार की गई. सीएजी को 30 हजार करोड़ रुपये की गड़बड़ी मिली.
इसकी रिपोर्ट वर्ष 2021 अंत में विधानसभा में रखी गई. दावा किया गया कि जिम्मेदार अफसरों पर कार्रवाई की जाएगी. इसके बाद लोक लेखा समिति विभाग वार इन आपत्तियों को लेकर सुनवाई कर रही है, लेकिन तीन साल बाद हजारों करोड़ों रुपये की गड़बड़ी के मामले में किसी भी अफसर पर कार्रवाई नहीं हुई.
सीएजी की जांच दोबारा शुरू कर दी गई है, जबकि, इससे पहले हुई जांच में कोई कार्रवाई नहीं हुई. जांच का औचित्य तब तक पूरा नहीं होता, जब तक कि उसका कोई निष्कर्ष न निकले. जब तीन साल पहले जांच में खुलासा हो चुका है तो जिम्मेदार अफसरों पर कार्रवाई होनी चाहिए. -अभिषेक कुमार, अध्यक्ष, नेफोवा
बिल्डर और अफसरों की सांठगांठ का नतीजा है कि खरीदार आज भी अपना आशियाना पाने के लिए भटक रहे हैं. बिल्डरों को फायदा पहुंचाने वाले अफसरों पर जल्द कार्रवाई होनी चाहिए.-रवि, सेक्टर-76, आम्रपाली सिलिकॉन सिटी सोसाइटी
व्यावसायिक भूखंडों को संस्थागत श्रेणी में दिया
व्यावसायिक भूखंडों को संस्थागत श्रेणी में बेचने से 3031 करोड़ 87 लाख रुपये का नुकसान प्राधिकरण को हुआ. इससे प्राधिकरण के साथ-साथ निबंधन विभाग को भी 151 करोड़ 59 लाख रुपये का नुकसान पहुंचा. इसके अलावा 153 आईटी-आईटीएस भूखंड भी सस्ती दरों पर दिए गए. इससे 7 करोड़ 40 लाख रुपये का नुकसान हुआ. बिल्डरों ने बिना रॉयल्टी के 244 करोड़ की मिट्टी-रेत बेचने का खुलासा भी सीएजी जांच में हुआ. इसके अलावा भूलेख समेत अन्य विभाग के कामकाज पर आपत्तियां लगाई गई थीं.