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थैलेसीमिया की नई दवा से ब्लड ट्रांसफ्यूजन में गिरावट
कानपूर न्यूज़: थैलेसीमिया के मरीजों के लिए नई दवा आ गई है और इसे 21 दिन पर मरीज को इंजेक्टेबल फार्म में दिया जाता है. इससे थैलेसीमिया के मरीजों में ब्लड ट्रांसफ्यूजन की स्थिति में 30 फीसदी की गिरावट आ जाती है. अभी 17 साल तक थैलेसीमिया के मरीजों को हर महीने ब्लड की एक यूनिट तो 17 साल के बाद महीने में चार यूनिट ब्लड ट्रांसफ्यूजन की जरूरत होती है.
यह बात जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के बालरोग विभाग में हुई थैलेसीमिया संगोष्ठी में उभरकर सामने आई. एसजीपीजीआई के जेनेटिक्स विभाग की एचओडी डॉ.शुभा फड़के ने दी. उन्होंने कहा कि अमेरिका में थैलेसीमिया के मरीजों को राहत देने के लिए जीन थेरेपी का ट्रायल शुरू हो गया है. आने वाले सालों में इसमें सफलता मिली तो मरीजों को लम्बी जिंदगी मिल सकती है.
उन्होंने यह भी कहा कि थैलेसीमिया जीन में विकृति आने से होता है. अगर व्यक्ति में एक जीन खराब होता है तो वह थैलेसीमिया का कैरियर या माइनर कहलाता है. दोनों जीन खराब पर थैलेसीमिया मेजर रोग होता है. माता-पिता दोनों अगर कैरियर होते हैं तो उनके बच्चों में थैलेसीमिया मेजर की आशंका 25 फीसद तक होती है इसलिए इस बीमारी से बचने के लिए कैरियर स्क्रीनिंग जरूरी है. उन्होंने सुझाव दिया कि विवाह पूर्व और गर्भावस्था की शुरुआत में स्क्रीनिंग होनी चाहिए.
मरीजों को राहत मिल सकती बाल रोग के एचओडी डॉ.एके आर्या ने बताया कि नई दवा से ऐसे मरीजों को राहत मिल सकती है. इससे पूर्व संगोष्ठी का उद्घाटन मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य प्रो. संजय काला ने किया. इस दौरान उप प्राचार्य प्रो. रिचा गिरि, डॉ.यशवंत राव, विवेक सक्सेना, डॉ.निखिल गुप्ता, डॉ.लुबना खान, डॉ.एसके गौतम, डॉ.नीना गुप्ता रहे.