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उत्तर प्रदेश
बौद्धिक गुलामी से मुक्ति के लिए शुरू हुआ राष्ट्रधर्म : दत्तात्रेय होसबाले
Rani Sahu
30 Nov 2022 4:58 PM GMT
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लखनऊ (आईएएनएस)| राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने बुधवार को डालीबाग स्थित गन्ना संस्थान के सभागार में राष्ट्रधर्म मासिक पत्रिका के विशेषांक 'राष्ट्रीय विचार-साधना' अंक का लोकार्पण किया। इस अवसर पर सरकार्यवाह ने राष्ट्रधर्म की वेबसाइट का भी शुभारंभ किया। उन्होंने कहा कि कहा कि बौद्धिक गुलामी से मुक्ति के लिए राष्ट्रधर्म का प्रकाशन शुरू हुआ था। उन्होंने कहा कि 15 अगस्त 1947 को देश को राजनीतिक स्वतंत्रता तो मिल गई, लेकिन बौद्धिक स्वतंत्रता नहीं मिली। बौद्धिक गुलामी से मुक्ति के लिए ही पंडित दीनदयाल उपाध्याय और अटल बिहारी बाजपेयी ने राष्ट्रधर्म का प्रकाशन शुरू किया।
होसबाले ने कहा कि अपने विचार को पकड़कर जिस अधिष्ठान पर राष्ट्रधर्म चला है, उसको न छोड़ते हुए वैचारिक यात्रा जारी है। देश स्वाधीन होने के 15 दिन के अंदर देश की जनता के प्रबोधन के लिए राष्ट्रधर्म शुरू हुआ। राष्ट्रधर्म के पहले अंक में छपी अटल जी की कविता 'हिंदू तन मन हिंदू जीवन रग-रग हिंदू' मेरा परिचय ने राष्ट्रधर्म क्या है, इसका परिचय कराया।
दत्तात्रेय होसबाले ने कहा कि 'कृण्वन्तो विश्वमार्यम' राष्ट्रधर्म का ध्येय वाक्य है। सारे विश्व का कल्याण होना चाहिए, यह भारत की मिट्टी का स्वभाव है। यहां के लोग छोटे मन से सोचते नहीं है। "राष्ट्रधर्म तो कल्पवृक्ष है संघ शक्ति ध्रुवतारा है, भारत फिर से जगद्गुरु हो यह संकल्प हमारा है।" राष्ट्रधर्म की इन दो पंक्तियों में राष्ट्रधर्म का उद्देश्य स्पष्ट हो जाता है।
सरकार्यवाह ने कहा कि स्वाधीनता की प्रथम किरणें जब आईं, तब भारत को विश्वगुरु बनाने का संकल्प राष्ट्रधर्म ने लिया। राष्ट्रधर्म वैचारिक अधिष्ठान को लेकर चल रहा है। राष्ट्रधर्म को भूलकर हम कुछ भी नहीं कर सकते। उन्होंने कहा कि कार्यपालिका, न्यायपालिका, विधायिका और पत्रकारिता लोकतंत्र के इन चारों स्तंभों में सामंजस्य होना चाहिए।
दत्तात्रेय होसबाले ने कहा कि देश की हर क्षेत्र में उन्नति और प्रगति होनी चाहिए, लेकिन वैचारिक स्पष्टता और वैचारिक शुद्धता भी चाहिए। आर्य द्रविड़ मिथक को स्थापित करने का प्रयास इस देश में किया गया। भारत एक देश है ही नहीं, ऐसी बातें कही गईं। अंग्रेजों के जमाने से शुरू हुआ षड्यंत्र आजादी के 75 वर्षो तक जारी रहा।
सरकार्यवाह ने बताया कि स्वतंत्रता के बाद भी भारत की संसद में बजट शाम पांच बजे पेश होता था। अटल जी जब प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने यह परंपरा बदली। राजपथ को कर्तव्यपथ बनाने का काम हुआ। देश को मानसिक गुलामी से बाहर लाना होगा।
होसबाले ने कहा, "भारत एक राष्ट्र है। विविधता यहां का सौंदर्य है। हम सब एक हैं। विविधता के साथ हम युगों से साथ रहते आए हैं। इस एकता एकात्मता को हम सब भारत के लोगों ने पकड़कर रखा है। इसे तोड़ने के लिए अंग्रेजों ने प्रयत्न किया। हमारे इतिहास को गलत ढंग से पेश किया गया। मानसिक गुलामी को तिलांजलि देनी चाहिए और इस दिशा में राष्ट्रधर्म प्रयास कर रहा है। राष्ट्रधर्म का जन प्रबोधन का कार्य हमेशा आगे बढ़ता रहे।"
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए न्यायमूर्ति (अवकाश प्राप्त) दिनेश कुमार त्रिवेदी ने कहा कि राष्ट्रधर्म सबसे बड़ा धर्म है। उन्होंने कहा कि देशवासियों में चेतना जगाने के लिए राष्ट्रधर्म की स्थापना की गई थी। उन्होंने कहा कि जो इस राष्ट्र में रहता है, वह किसी धर्म को माने, लेकिन राष्ट्रधर्म सबसे ऊपर है। राष्ट्र पर जब भी कोई आपदा आती है तो प्रत्येक भारतवासी उसके साथ खड़ा हो जाता है, यही राष्ट्रधर्म है।
वरिष्ठ पत्रकार के. विक्रम राव ने कहा कि विचार पत्रिका तटस्थ नहीं होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि पत्रकार को पक्षपात नहीं करना चाहिए। के.विक्रम राव ने कहा कि देश में त्रिभाषा फार्मूला लागू होना चाहिए। राष्ट्रधर्म के संपादक प्रो. ओम प्रकाश पांडेय ने कहा कि देश के विभाजन के बाद देश उद्देलित था। क्रांतिकारियों की अवज्ञा की जा रही थी। ऐसे समय में राष्ट्रधर्म ने वैज्ञारिक यज्ञ शुरू करने का काम किया था।
इस अवसर पर सरकार्यवाह ने राष्ट्रधर्म के पूर्व संपादक आनंद मिश्र अभय और वीरेश्वर द्विवेदी का सम्मान किया। इसके अलावा राष्ट्रधर्म की संपादन टोली, विज्ञापन प्रतिनिधियों और अभिकर्ताओं का सम्मान किया गया।
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