उत्तर प्रदेश

समाज व राष्ट्र की आवश्यकताओं के अनुकूल है राष्ट्रीय शिक्षा नीति: डॉ. योगेंद्र

Admin Delhi 1
25 Feb 2023 11:24 AM GMT
समाज व राष्ट्र की आवश्यकताओं के अनुकूल है राष्ट्रीय शिक्षा नीति: डॉ. योगेंद्र
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दिल्ली: मैकाले की शिक्षा नीति युवाओं को कार्यालयीय सहायक की भूमिका तक सीमित करने वाली थी। इसमें न तो समाज का हित निहित था और न ही राष्ट्रीयता का पुट था। मैकाले की शिक्षा नीति के दिन लद गए। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 समाज व राष्ट्र की आवश्यकताओं के अनुकूल है। राष्ट्रीय सांस्कृतिक परिदृश्य को समाहित करते हुए सर्वांगीण व्यक्तित्व विकास से देश को विश्व गुरु बनाना इसका लक्ष्य है।

यह बातें इलाहाबाद विश्वविद्यालय में हिंदी एवं आधुनिक भारतीय भाषा विभाग के आचार्य डॉ. योगेंद्र प्रताप सिंह ने कही। वह महायोगी गोरखनाथ विश्वविद्यालय के तहत संचालित गुरु गोरक्षनाथ इंस्टिट्यूट आॅफ मेडिकल साइंसेस (आयुर्वेद कॉलेज) में चल रहे बीएएमएस के नवप्रवेशी विद्यार्थियों के 15 दिवसीय दीक्षा पाठ्यचर्या (ट्रांजिशनल करिकुलम) के दसवें दिन (शुक्रवार) के तृतीय सत्र को बतौर मुख्य वक्ता संबोधित कर रहे थे।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति पर व्याख्यान देते हुए डॉ. सिंह ने कहा कि 1947 के बाद मात्र कैलेंडर बदला था और कुछ नहीं। स्वतंत्र और स्वाधीन दोनों शब्दों का मंतव्य हमें स्पष्ट होना चाहिए। स्व के अधीन हो जाना ‘स्वाधीन’ है और अपने तंत्र नीति के अनुसार चलना ‘स्वतंत्र’ है। अभी तक हम अंग्रजो के बनाये हुए नियम या उनसे प्रभावित हुए लोगों द्वारा बनाये गये तंत्र के अनुसार संचालित थे। वर्तमान सरकार के द्वारा राष्ट्रीय शिक्षा के नीति के माध्यम से यह प्रयास है कि हम स्वाधीनता की तरफ बढ़ें।

उन्होंने कहा कि अभी तक हम आयुर्वेद ज्ञान सहित तमाम शास्त्रीय ज्ञान-विज्ञान को दोयम दर्जे का मान कर चल रहे थे। राष्ट्रीय शिक्षा नीति का यह उद्देश्य है कि हम प्राचीन विज्ञान को जानते हुए माडर्न चिकित्सा पद्धति को भी जानें जिससे दो पत्ती से 200 लोगों का इलाज कर सकें। डॉ. सिंह ने कहा कि आर्युवेद एक कदम आगे की बात करता है। मात्र रोग को ही ठीक करने की बात नहीं करता है। हम रोगी ही न हों, इसके बारे में भी बताता है। उन्होंने राष्ट्रीय शिक्षा नीति के प्रावधानों को भी विस्तार से समझाया।

इसके पूर्व द्वितीय सत्र में डीएवी कॉलेज सिवान में मनोविज्ञान की सहायक आचार्य डॉ. अपर्णा पाठक ने ‘मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता’ विषय पर विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए कहा कि मनोविज्ञान व्यक्ति के व्यवहार का विज्ञान है। मानसिक स्वास्थ्य वह स्थिति है जिसमें व्यक्ति को अपनी क्षमताओं का एहसास होता है। उन्होंने कहा कि बदलती जीवन शैली और काम के बोझ से उपजे तनाव से देश में मानसिक स्वास्थ्य के मामलों में बढोत्तरी हुई है। व्यक्ति अपनी पूर्व अवधारणा के तहत शर्म और डर से ग्रसित हो मनोचिकित्सक के पास नहीं जाता। अपने संवेदनाओं को दबाकर रखता है जिससे रोग और अधिक बढ़ता है। ऐसी स्थिति में यह जरूरी है कि हम मनोचिकित्सक से परामर्श लेकर समस्या दूर करने में संकोच न करें।

चतुर्थ सत्र मे मुख्य वक्ता के रूप में डॉ. दिनेश सिंह, वरिष्ठ परामर्श चिकित्सक ने ‘संस्थागत अधिकारी और स्वास्थ्य सेवा में उनकी भूमिका’ विषय पर व्याख्यान दिया। उन्होंने कहा कि संस्थागत अधिकारी वह व्यक्ति होता है जो संस्थान के लिए कार्य करने और संस्थान की ओर से कार्य करने के लिए कानूनी रूप से अधिकृत हो। डॉ सिंह ने कहा कि आर्युवेद चिकित्सा शास्त्र का अध्ययन कर आप शिक्षा के क्षेत्र में, परामर्श चिकित्सक के रूप में, शोधकर्ता और प्रशासनिक अधिकारी के क्षेत्र में जिस क्षेत्र में रूचि है, उसमें कार्य कर सकते हैं। उन्होंने विद्यार्थियों को चिकित्सक के लिए अपेक्षित गुणों के बारे में भी बताया और कहा कि श्रेष्ठ चिकित्सक बनने के लिए खुद सतत् अध्ययन करें। साथ में अपने रोगी को भी शिक्षित करें। व्याख्यान सत्रों में आयुर्वेद कॉलेज के प्राचार्य डॉ. मन्जूनाथ एनएस, डॉ. पियूष वर्षा, डॉ. प्रज्ञा सिंह, डॉ. मिनी, साधवी नन्दन पाण्डेय आदि शिक्षक व सभी विद्यार्थी उपस्थित रहे।

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