- Home
- /
- राज्य
- /
- उत्तर प्रदेश
- /
- राष्ट्रीय जलीय जीव...
x
हस्तिनापुर। गंगा की गाय कही जाने वाली गांगेय डॉल्फिन के प्रति लोगों की दिलचस्पी बढ़ी तो विश्व प्रकृति निधि और सेवियर्स संस्था ने 2005 में डॉल्फिन को बचाने की मुहिम चलाई। जिसके चलते मई 2009 को पर्यावरण और वन मंत्रालय की ओर से गंगा में पाई जाने वाली डॉल्फिन को देश का राष्ट्रीय जलजीव घोषित किया गया था। जिसके बाद गंगा नदी में लगातार इनकी संख्या बढती जा रही है। सोमवार को विश्व प्रकृति निधि और वन विभाग के सयुक्त तत्वावधान में डॉल्फिन दिवस से पूर्व शुरू किये गये डॉल्फिन गणना कार्यक्रम की बिजनौर बैराज से मुख्य वन सरंक्षक मेरठ एन के जानू ने हरी झंडी दिखाकर शुरूआत की।
विश्व प्रकृति निधि और वन विभाग के संयुक्त तत्वावधान वर्ष 2015 में बिजनौर बैराज नरौरा बैराज तक पहली बार डॉल्फिन की गणना की गई। जिसमें टीम को 22 डॉल्फिन मिली वहीं 2016 में 30, वर्ष 2017 में 32, 2018 में 33, 2019 में 35 और वर्ष 2020 में डॉल्फिन की संख्या बढ़कर 41 हो गई। गणना में 35 डॉल्फिन मिली थीं। डब्ल्यूडब्ल्यूएफ के सीनियर कोआॅडिनेटर की मानें तो डॉल्फिन को दिखाई नहीं देता, यह तरंगों के आधार पर गंगा में स्वच्छंद विचरण करती हैं। जलस्तर कम होने पर सितंबर के अंतिम सप्ताह अथवा अक्टूबर के पहले सप्ताह से गंगा में डॉल्फिन आसानी से दिखाई देने लगती हैं।
बरसात के मौसम में जलस्तर अधिक होने की वजह से डॉल्फिन का दिखाई देना मुश्किल रहता है। उनका कहना है कि गंगा में डॉल्फिन के भोजन के लिए पर्याप्त मात्रा में मछली उपलब्ध हैं। वह बताते हैं कि बिजनौर बैराज के आसपास के क्षेत्र में सात से आठ डॉल्फिन हैं, जबकि बिजनौर से लेकर नरौरा तक करीब 41 डॉल्फिनों का कुनबा है। डॉल्फिन भी स्तनधारी प्राणी है। डॉल्फिन अकेले रहने के बजाय 10-12 के समूह में रहना पसंद करती हैं। यह कंपन वाली आवाज निकालती है, जो किसी भी चीज से टकराकर वापस डॉल्फिन के पास आ जाती है। इससे उसे पता चल जाता है कि शिकार कितना बड़ा और कितने करीब है। डॉल्फिन आवाज और सीटियों के द्वारा एक दूसरे से बात करती हैं। डॉल्फिन 10-15 मिनट तक पानी के अंदर रह सकती है, लेकिन पानी में सांस नहीं ले सकती।
डॉल्फिन नेत्रहीन होने के बाद भी डॉल्फिन सामान्य जीवन जीती है, लेकिन नदियों पर बांधों और बैराजों का निर्माण गांगेय डॉल्फिन को प्रभावित करता हैै। साथ ही नदियों में मछुआरों व शिकारियों के द्वारा अव्यवस्थित रूप से जालो का प्रयोग किये जाने पर उसमे इनके फंसने व मृत्यु हो जाने की सम्भावना होती है। नदियों में बढ़ता प्रदूषण से भी इनके वासस्थल को भारी छति पहुंचती है। मान्यता है कि भगवान शंकर ने स्वर्ग से गंगा के पृथ्वी पर अवतरण की घोषणा के लिए सूंस की रचना की थी। लगभग 2200 वर्ष पूर्व सम्राट अशोका ने इसके महत्व को समझते हुए डॉल्फिन के शिकार को पूर्ण रूप से प्रतिबंधित कर दिया था। इस समय डॉल्फिन को पुपुतकास के नाम ने जाना जाता था।
Tagsउत्तर प्रदेश न्यूज हिंदीउत्तर प्रदेश न्यूजउत्तर प्रदेश की खबरउत्तर प्रदेश लेटेस्ट न्यूजउत्तर प्रदेश क्राइमउत्तर प्रदेश न्यूज अपडेटउत्तर प्रदेश हिंदी न्यूज टुडेउत्तर प्रदेश हिंदीन्यूज हिंदी न्यूज उत्तर प्रदेशउत्तर प्रदेश हिंदी खबरउत्तर प्रदेश समाचार लाइवUttar Pradesh News HindiUttar Pradesh NewsUttar Pradesh Latest NewsUttar Pradesh CrimeUttar Pradesh News UpdateUttar Pradesh Hindi News TodayUttar Pradesh HindiNews Hindi News Uttar PradeshUttar Pradesh Hindi KhabarUttar Pradeshदिन की बड़ी ख़बरअपराध खबरजनता से रिश्ता खबरदेशभर की बड़ी खबरताज़ा समाचारआज की बड़ी खबरआज की महत्वपूर्ण खबरहिंदी खबरजनता से रिश्ताबड़ी खबरदेश-दुनिया की खबरराज्यवार खबरहिंदी समाचारआज का समाचारबड़ा समाचारनया समाचारदैनिक समाचारब्रेकिंग न्यूजBIG NEWS OF THE DAYCRIME NEWSLATEST NEWSTODAY'S BIG NEWSTODAY'S IMPORTANT NEWSHINDI NEWSJANATA SE RISHTABIG NEWSCOUNTRY-WORLD NEWSSTATE-WISE NEWSTODAY NEWSNEWS UPDATEDAILY NEWSBREAKING NEWS
Shantanu Roy
Next Story