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मुजफ्फरनगर: विजय कौशल जी महाराज, जाति के आधार पर नहीं देखना चाहिए भगवान और महापुरुषों को
सिटी न्यूज़: मानस मर्मज्ञ संत विजय कौशल जी महाराज ने देश के नेताओं को आईना दिखाते हुए कहा है कि भगवान और महापुरुषों को जाति के आधार पर नहीं देखना चाहिए क्योंकि किसी भी व्यक्ति का जन्म तो किसी ने किसी सामाजिक व्यवस्था में ही होगा लेकिन कोई भी महापुरुष किसी एक जाति के उत्थान के लिए नहीं आता। महापुरुष राष्ट्र और समाज के धरोहर हैं और उनकी जाति का अपने स्वार्थ की राजनीतिवश लाभ उठाना पाप समान है। वृंदावन गार्डन में कंसल परिवार द्वारा आयोजित श्री राम कथा के पांचवे दिन श्रीराम बारात का अलौकिक वर्णन करते हुए कथा व्यास मानस मर्मज्ञ विजय कौशल जी महाराज ने कहा कि श्री राम और महर्षि परशुराम दोनों ही देश के अवतारी पुरुष से महापुरुष है मंदिर नहीं है उन्हें जातिवादी राजनीति में पेश करना बेहद निंदनीय है जातिवादी राजनीति देश के लिए घातक है और हमेशा याद रखें कि महापुरुष देश और समाज के हैं उनका जीवन सभी के लिए कल्याणकारी है। श्री राम परशुराम प्रसंग को आगे बढ़ाते हुए महाराज श्री ने कहा कि
नाथ शम्भु धनु भंजन हारा
होइ कोई एक, दास तुम्हारा।
भूप सहस्र- दस एक ही बारा ,
लगे उठावन ,टरै न टरा।
इतने बड़े धनुष को भंग करने के बाद भी भगवान् राम कहते हैं आपकी कृपा से आपके बल से ही वह धनुष किसी आपके सेवन ने ही तोड़ा होगा। जब भी जीवन में किसी बड़ी उपलब्धि पर मन में गर्व आये -श्रीराम की विनम्रता को याद कर लेना। महाराज श्री ने कहा कि श्री राम और श्री कृष्ण दोनों में मात्र इतना अंतर है कि जहां श्री कृष्ण अपने प्रभाव से जाने जाते हैं वही श्रीराम अपने सरल शील स्वभाव से जाने जाते हैं उन्होंने समाज में मर्यादाए कायम की।राम ने अपने चरित की सारी लीलाएं लोकव्यवहार ,लोकमान्यताओं के आलोक में ही की हैं। राम का चरित हमारे लिए एक आचार संहिता के समान ही है जिसे सुनने से हमारा उत्थान और उन्नयन होता है।
महाराष्ट्र में आज धनुष लीला के बाद बारात निमंत्रण कोमा मिथिला में श्री राम बरात का दर्शन तथा वरमाला और कन्यादान से जुड़े प्रसंग बड़े ही मनोहारी रूप में श्रद्धालुओं के समक्ष रखे तो चारों ओर से पुष्प वर्षा होने लगी कंसल परिवार सहित अन्य श्रद्धालु भावविभोर होकर नाचने झूमने लगे बधाई गीत सुनकर लोक पुलकित हो उठे। महाराज श्री ने याद दिलाया कि आधुनिकता के प्रभाव के कारण भले ही कुछ मर्यादाए शिथिल पड़ गई हो लेकिन उस समय बेटी का बहुत सम्मान था मायके वाले यदि बेटी की ससुराल में जाते थे तो अन्य जल तक ग्रहण नही करते थे तब बेटी को देने का भाव था लेकिन आज व्यवस्थाएं बदल रही है उन्होंने कहा कि बेटी को खूब पढ़ाइए और उसे अच्छे संस्कार दीजिए एक बेटी दो परिवारों को संस्कारित और एकजुट करती हैं।
महाराजश्री ने कहा कि श्री राम जानकी के साथ-साथ महाराजा दशरथ के आग्रह पर राजा जनक अपनी तीन अन्य बेटियों को भी इसी मंडप में ब्याह दिया ।जनक जी ने , मांडवी जी को भरत के साथ ,उर्मिला जी को लक्ष्मण जी के साथ , सुकीर्तिजी को शत्रुघ्न के साथ विवाह बंधन में बांधा।
चारों दम्पति जब दसरथ जी को प्रणाम करने आये दशरथ जी भावावेश में एक शब्द नहीं बोल पाये ,इतने भाव -विभोर हो गए -जैसे चारों पुरुषार्थ धर्म -अर्थ -काम -मोक्ष एक साथ पा गए हों। विवाह के बाद विदाई कपासन और भी मार्मिक हॉ उठा जब बेटी को संदेश देते हुए पिता जनक और मां सुनैना ने कहा कि पति जिस व्यवहार से प्रसन्न हों वैसा ही आचरण करना बेटी । दोनों परिवारों की लाज अब ये तुम्हारे हाथों में है ।और जानकी जी इस स्थिति का पालन तब भी करती हैं जब उन्हें अयोध्या छोड़कर जाना पड़ता है वह भी तब जब वह आठ माह की गर्भवती होतीं हैं। आज कथा सुनने के लिए भारी भीड़ उमडी। महाराष्ट्र का स्वागत और भगवान की मंगल आरती लाला फूल चंद कंसल किशन कंसल भीम कंसल अनिल कंसल अंजना कंसल और अन्य परिजनों के साथ साथ श्रद्धालुओं ने भाव विभोर होकर किया।