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झाँसी न्यूज़: नगर निगम की आवंटित दुकानों के किराया रिवाईज से लेकर मरम्मत व नामांतरण सम्बंधी प्रस्ताव पिछले दो साल से बोर्ड की स्वीकृति मिलने के इंतजार में अटका पड़ा है. जबकि नगर निगम की सबसे बड़ी आमदनी का जरिया कर-करेत्तर वसूली को लेकर भी अफसरों की उदासीनता के चलते वित्तीय वर्ष के बजट में निगम को साढे 47 करोड़ घाटे का बजट पेश करना पड़ा.
हालांकि दीर्घकालिक योजनाओं के जरिये नगर निगम आय बढ़ाने की उम्मीद सजोंकर बैठा है. खर्चों की लम्बी सूची के आगे फिलहाल नगर निगम प्रशासन को कड़ी मशक्कत करनी होगी. नगर निगम प्रशासन की शहर में करीब 1279 दुकानें है, जिन्हे वर्षों पूर्व आवंटित किया गया था. इसमें सभी दुकानों पॉश मार्केट में होेने के कारण उनकी कीमत लाखों में है. जबकि किराये के रूप में नगर निगम आज भी ऐसी दुकानों से महज 300 से लेकर 500 रुपये किराया वसूल रहा है. इतना हीं अफसरों की लापरवाही व शिथिलता के चलते कई दुकानों की मूल पत्रावलियां तक गायब हो गई है. अफसरों की लापरवाही का हाल यह रहा कि दुकानों के स्वरूप बदल गये और दुकानों को बिना निगम प्रशासन के अनुमति के बेचकर सिकमी किरायेदार बैठा दिये गये. पिछले दिनों नगर आयुक्त ने मुर्गा-मछली मार्केट की दुकानों के किराया रिवाईज के आदेश दिये, तब कहीं जाकर जिम्मेदारों ने दुकान सम्बंधी पत्रावालियों की खोजबीन की, हालांकि उक्त सभी पत्रावलियों में आवंटन प्रक्रिया से लेकर किराया निर्धारण और आवंटित राशि जमा कराने सम्बंधी तमाम प्रक्रिया में गड़बड़ी पाये जाने के बाद प्रशासन की मद्द से तत्कालीन मजिस्ट्रेट की नियुक्ती कर करीब 20 वर्षों से बंद चार अलमारियों के ताले तोड़कर रिकार्ड सूचीबद्ध किया. बावजूद अफसर यह तय नहीं कर सके कि पत्रावलियां मिली है और कितनी गायब है? इधर अफसरों ने अनुमति की गाइड लाइन तैयार की,पिछले दो साल से बोर्ड की स्वीकृति में लटकी.